नास्तिक - आस्तिक - संवाद🌷

 नास्तिक - आस्तिक - संवाद🌷


नास्तिक― इस संसार का कर्त्ता,धर्त्ता,संहर्त्ता कोई नहीं।आग,हवा,मिट्टी,पानी चारों तत्व स्वतः अपने आप स्वभाव से मिलते हैं और उससे जगत की उत्पत्ति हो जाती है।

आस्तिक― बिना चेतन परमेश्वर के निर्माण किये जड़ पदार्थ स्वयं आपस में स्वभाव से नियमपूर्वक मिलकर उत्पन्न नहीं हो सकते।यदि स्वभाव से ही होते हों तो द्वितीय सूर्य,चन्द्र,पृथिवी,नक्षत्र आदि आप से आप क्यों नहीं बन जाते।

दूसरे बनाने वाले के बिना कोई वस्तु नहीं बनती, यह जो संसार बना हुआ है,कार्य रुप है अतः इसका भी कोई न कोई कर्त्ता अवश्य होना चाहिये।जो ज्ञानपूर्वक इस जड़ प्रकृति को कारण रुप से कार्य रुप में ले आयें अथवा कार्यरुप से कारण रुप में परिवर्तित कर दे,ऐसा केवल सर्वज्ञ सृष्टि कर्ता ईश्वर ही कर सकता है दूसरा कोई नहीं।

इसलिए वेदान्त दर्शन कहता है "जन्माद्यस्य यतः२-२-२

अर्थात् जो संसार की उत्पत्ति,स्थिति और प्रलयकर्ता है वही ईश्वर है।

तीसरे इस शरीर के एक-एक अंग को देखो।देखने से पता चलेगा कि ऐसी अदभूत रचना कोई जीव नहीं कर सकता।जीव तो शरीर का एक रोम भी नहीं बना सकता।

नास्तिक ― यदि ईश्वर की रचना से ही सृष्टि होती है तो माता पिता आदि की क्या आवश्यकता है बिना माता पिता के ही सन्तान की उत्पत्ति हो जाये?

आस्तिक ― सृष्टि रचना दो प्रकार की है एक ऐश्वरी दूसरी जैवी,ऐश्वरी सृष्टि का कर्त्ता ईश्वर है जैवी सृष्टि का नहीं क्योंकि जो जीवों का कर्म है।वह जीव ही कर्त्ता है ईश्वर नहीं जी से वृक्ष,फल ,ओषधि आदि ईश्वर ने उत्पन्न किये हैं उसी को लेकर मनुष्य। यदि कूटे पिसे नहीं,न ही रोटी आदि

बनाये ओर न ही खाये तो क्या मनुष्यों के बदले यह कार्य भगवान करेगा?कभी नहीं क्योकि यह कार्य जीव

का है भगवान का नहीं।

इसलिए आदि सृष्टि में जीव के शरीरों रुपी सांचों को बनाना ईश्वर का कार्य है । तत्पश्चात् उनसें पुत्रादि की उत्पत्ति करना जीव का कार्य है।

नास्तिक ― यदि ईश्वर है तो उसका प्रत्यक्ष क्यों नहीं होता।जिससे लोगों को उसके प्रति विश्वास हो जाये कि वस्तुतः ईश्वर है।

आस्तिक―यह कहना सर्वथा अशुद्ध और भ्रमपूर्ण है कि ईश्वर का कभी प्रत्यक्ष नहीं होता।

हां प्रत्यक्ष दो प्रकार का है एक वाह्य प्रत्यक्ष जो इन्द्रियों द्वारा होता है।यथा आंख से रुप का,नासिका से गन्ध का,कान से शब्द का ,रसना से रस का और त्वचा से स्पर्श का।दूसरा आन्तरिक प्रत्यक्ष जो अन्तःकरण(मन बुद्धि चित्त अहंकार) द्वारा किया जाता है।

जैसे सुख,दुःख,राग,द्वेष,भूख-प्यास आदि एवं आत्मा और परमात्मा का प्रत्यक्ष वाह्य इन्द्रियों द्वारा नहीं,अपितु आन्तरिक इन्द्रिय शुद्ध मन द्वारा होता है।वाह्य इन्द्रियां स्थूल हैं इस कारण स्थूल वस्तुओं का ही ग्रहण करती हैं,अति सूक्ष्म वस्तुओं का नहीं।

इसलिए योगीजन ही सूक्ष्म बुद्धि एवं शुद्ध अन्तःकरण द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार करते हैं अन्य जन नहीं।

इसलिए सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद सरस्वती ने लिखा है कि–

जो पापाचरणेच्छा समय में भय,लज्जा और शंका उत्पन्न होती है,वह अन्तर्यामी ईश्वर की और से ही होती है।इससे भी परमात्मा का प्रत्यक्ष होता है।"

जब जीवात्मा शुद्ध होकर परमात्मा का विचार करता है तब उसे अपना तथा परमात्मा दोनों का साक्षात्कार होता है।

केनोपनिषद् में भी कहा है कि

दृश्यते त्वग्रया बुद्धया सूक्ष्मया सूक्ष्म दर्शिभिः ।

अर्थात्― सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले योगी और तपस्वी लोग अपनी अत्यन्त सूक्ष्म बुद्धि द्वारा उस परमात्मा देव का साक्षात्कार करते हैं।

ऐसे ही श्वेताश्वर उपनिषद में भी कहा गया है कि-

"ते ध्यान योगानुगता अपश्यन्"

अर्थात् उन्होनें(योगियों) ने ध्यान योग में समाधिस्थ होकर उस ब्रह्म का प्रत्यक्ष किया।और जिन्होंने प्रत्यक्ष किया वह मस्ती में झूमकर पुकार उठे―

त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि,त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि

ऋतं वदिष्यामि,सत्यं वदिष्यामि ।-तैत्तिरीयोपनिषद्)

हे ईश्वर मैने तुझे प्रत्यक्ष कर लिया है तू प्रत्यक्ष ब्रह्म है,तुझमें प्रत्यक्ष ब्रह्म को ही मैं ब्रह्म कहूंगा।ठीक ठीक कहूंगा,सत्य ही कहूंगा।

अतः उपरोक्त प्रमाणों से सिद्ध होता है कि ब्रह्म का वास्तव में प्रत्यक्ष होता है।यह सर्वथा सत्य है परन्तु साथ ही यह भी स्मरण रहे कि –

हर जगह मौजूद है पर वह नजर आता नहीं।

योग साधन के बिना उसको कोई पाता नहीं।

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💐🙏आज का वेद मंत्र 💐🙏

🌷ओ३म् तस्माद्यज्ञात्सर्हुत ऽ ऋच: सामानि जज्ञिरे।छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।।( यजुर्वेद ३१|७)

💐भावार्थ-- सृष्टि विद्या का उपदेश-- जिस पूर्ण, पूजनीय, सबके ग्रहण करने योग्य, सर्वस्य समर्पण करने योग्य परमात्मा से ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद उत्पन्न हुए हैं।उसी परमात्मा की उपासना करो।वेदों का अध्ययन करों। वेदों एवं परमात्मा की आज्ञा के अनुकूल वर्त्ताव करके सुखी रहों।


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🕉🙏ज्ञान रहित भक्ति अंधविश्वास है 

🕉🙏भक्ति रहित ज्ञान नास्तिकता है

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