आज का वेद मंत्र 🕉️🚩

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    २५ सितम्बर २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - -   रविवार 



  🌑 तिथि - - -  अमावस्या (२७:२६ तक तत्पश्चात प्रतिपदा )



🪐 नक्षत्र -  -  पूर्वाफाल्गुन ( ७:१२ तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुन)


पक्ष  - -  कृष्ण 


 मास  - -   आश्विन 


ऋतु  - -  शरद 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः  ६:१५ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १८:११ पर 


🌑 चन्द्रोदय  - -  ५:३०  पर 


🌑चन्द्रास्त  - -  १७:५७  पर 


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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🔥वेदों  का प्रकाश सब के

 लिए!!!

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  🌷यथेमाम वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः । ब्रह्मराजान्याभ्याम शूद्रायचार्याय च स्वाय चारणायच ।

यजुर्वेद (२६ -२ )


   अर्थात परमेश्वर कहता है कि

जैसे मै अपनी कल्याणकारी वेद वाणी का मनुष्य मात्र के लिए उपदेश करता हूँ वैसे ही तुम भी किया करो । मैंने ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों, शूद्रों तथा अतिशूद्रों आदि सभी के लिए वेदों का प्रकाश किया है ।


   स्त्री शुद्रो ना धीयताम

पृथिवी आदि के उपभोग के सामान ही वेदों के अध्ययन में भी मनुष्य मात्र का अधिकार है । जैसे  द्विज आदि वैसे ही शुद्र भी भगवान् की उत्पादित प्रजा है । पृथिवी, जल, वायु, अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा, औषधि, वनस्पति, अन्नादि सृष्टि में जितने भी पदार्थ हैं उनके उपभोग का अधिकार सबको सामान रूप से प्राप्त है। इसी प्रकार ईश्वर के दिए ज्ञान वेद का अध्ययन कर उसी के अनुसार आचरण करने का अधिकार भी मनुष्य मात्र को है। ईश्वर की सृष्टि में सभी प्राणी बराबर हैं। ईश्वरीय विधान में सबको बुद्धि के अनुसार अवसर की समानता प्राप्त है। उसका लाभ उठाना प्रत्येक जीव के अपने अपने सामर्थ्य पर निर्भर है ।


  अतः वेद रूपी ईश्वरीय ज्ञान से किसी वर्ग विशेष को वंचित कर देना कितना बड़ा अन्याय है ।

स्त्री शुद्रो ना धीयताम के अनुसार स्त्री तथा शुद्र को वेद पढ़ना मना है । ये कहाँ तक उचित है ?

 मेरे विचार से इसका इतना ही अभिप्राय होगा कि जो कोई ब्रह्मचर्य के अभाव में , बौद्धिक दोष, चरित्रहीनता ,उद्दण्डता आदि के कारण ज्ञान के अर्जन के अनुपयुक्त हो उसे पढ़ाना व्यर्थ है ।


   किसी भी शैक्षिक संस्था  में यह घोषित करने के बाद भी कि इस संस्था के द्वार सबके लिए खुले हुवे हैं , उसमे दाखिला लेने के  निर्धारित न्यूनतम शैक्षिक योग्यता , बौद्धिक एवं शारीरिक स्तर कि जांच आदि शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है । उसी तरह वैदिक ज्ञान के लिए भी कुछ योग्यता निर्धारित कि गयी है । यही बात गीता में भी कही गयी है 


  इदं ते नापस्काय नाभक्ताय कदाचन ।

न चाशुश्रषवे वाच्यं न च माम योअभ्यसूयति । (गीता --१८-६७ )  


  यह अध्यात्मिक ज्ञान ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहिए जो तपस्वी ना हो , विद्या के प्रति  भक्ति ना रखता हो , आचार्य के प्रति  जिसमे आदर व सेवा भाव न हो, जो ईश्वर के प्रति आस्तिक बुद्धि रखने वाला न हो ।


  कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य मात्र में शास्त्र अध्यन का आधार कुछ विशिष्ट गुण हैं न कि किसी वर्ग विशेष में जन्म ।


  शुद्र कुल में जन्म लेने के कारण किसी के वेदाध्यन का अधिकारी न होने का कहीं संकेत तक नहीं है ।


   इस छोटी सी व्यवहारिक बातों को न समझ के  पौराणिक आचार्यों ने अपनी दूषित भावनाओं को आरोपित कर इतना बड़ा अनर्थ कर डाला कि उसके कारण सभ्य समाज में वैदिक धर्माभिमानी लोगों का मुह काला हो गया ।


   सब से बड़े दुःख कि बात ये है कि चराचर जगत को एक ब्रह्म का ही रूप मानने वाले  आदि गुरु शंकराचार्य ने भी उक्त सूत्र का भाष्य करते हुवे लिखा --


  “शुद्र का विद्या में अधिकार नहीं है । क्यों की स्मृति शुद्र के लिए वेद के सुनने वेद के अध्यन करने तथा वेद के ज्ञान एवं अनुष्ठान का निषेध करती है । इस लिए समीप से वेद के अध्ययन को सुनने वाले शूद्रों के कान में सीसे एवं लाख भर देना चाहिए । शुद्र चलता फिरता शमशान है । इसलिए शुद्र के समीप अध्ययन नहीं करना चाहिए । यदि शुद्र वेद का उच्चारण करे तो उसकी जीभ काट देनी चाहिए ।  यदि वेद को याद करे तो शरीर  के टुकड़े टुकड़े कर देना चाहिए । ब्राह्मण को चाहिए की शूद्रों को वेद का ज्ञान न दे।“


   रामानुजाचार्य , वल्लभाचार्य , माधवाचार्य , निम्बार्काचार्य , आदि सभी पौराणिक आचार्यों ने आदि शंकराचार्य की बातों की ही पुष्टि की है ।


  परन्तु ये सब अर्थ इन आचार्यों की निकृष्ट एवं अवैदिक विचारधारा के परिचायक हैं । आर्ष साहित्य में कहीं से भी इनका समर्थन नहीं होता।

वेद के नाम पर प्रचलित वचन - स्त्री शुद्रो ना धीयताम को प्रस्तुत कर के प्रायः स्त्रियों तथा शूद्रों के वेद पढने पढ़ाने के अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाया जाता रहा है ।


  वास्तव में देखा जाए तो वेदों में ही नहीं अपितु अन्य प्रमाणिक ग्रंथों में भी यह वचन उपलब्ध नहीं है ।यह तो स्वार्थी तथा धूर्त लोगों की कपोल कल्पना है जिसके आधार पर विश्व के लगभग तीन चौथाई मानव  जाति  को वेद ज्ञान से वंचित रखने की घृणित चेष्टा की जाती रही है ।


   यथेमाम वाचं  कल्याणीमावदानी जनेभ्यः । ब्रह्मराजान्याभ्याम  शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय च ।

यजुर्वेद (२६ -२ )


    अर्थात परमेश्वर कहता है की

जैसे मै अपनी कल्याणकारी वेद वाणी का मनुष्य मात्र के लिए उपदेश करता हूँ वैसे ही तुम भी किया करो । मैंने ब्राह्मणों, क्षत्रियो, वैश्यों, शूद्रों तथा अतिशूद्रों आदि सभी के लिए वेदों का प्रकाश किया है । 


  महर्षि मनु की दृष्टि में वेद से बढ़ कर  दूसरा अन्य प्रमाण नहीं । उक्त मन्त्रों का भाष्य करते हुवे पौराणिक विद्वान् महीधर ने भी इसे उचित ठहराया है

इतिहास में कवष , ऐलूश आदि अनेक मंत्र द्रष्टा ऋषिओं के नाम मिलते हैं जिन्होंने शुद्र कुल  में उत्पन्न हो कर भी ऋषितत्व प्राप्त किया ।


   वेद पढने का उन्हें अधिकार नहीं होता तो वे कैसे पढ़ते ? बिना पढ़े मन्त्रों का मंत्रार्थ या प्रत्यक्ष कैसे करते ?


   ब्राह्मण ग्रन्थ वेद के व्याख्या ग्रन्थ हैं । ऋग्वेद के ऐतरेय ब्रह्मण का रचयिता दासी पुत्र महिदास था ।

शुद्र कुल में उत्पन्न मातंग आदि अनेक ऋषिओं का ब्राह्मनत्व प्राप्ति इतिहास प्रसिद्द है ।


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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


   🔥ओ३म् सहस्रशीषा पुरूष: सहस्राक्ष: सहस्रपात्।स भूमिं सर्वत स्पृत्वात्यतिष्ठदद्दशांगुलम्।।( यजुर्वेद ३१|१)


  💐 अर्थ:-  हे मनुष्यों! जिस पूर्ण परमात्मा में हम मनुष्य आदि प्राणियों के असंख्य सिर,आँख, पाँव आदि विद्यमान है, जो भूमि आदि पांच स्थूल और पांच सूक्ष्म भूतों से युक्त जगत् को अपनी सत्ता से परिपूर्ण करके, जहाँ जगत् नही है वहाँ भी पूर्ण हो रहा है, उस सबके निर्माता, परिपूर्ण, सच्चिदानंदस्वरूप, नित्यशुद्धबुद्धमुक्त- स्वभाव वाले परमेश्वर को छोड़कर अन्य की उपासना तुम कभी न करों, किन्तु इसकी उपासना से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करों ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, आश्विन -मासे ,कृष्ण  - पक्षे, -  अमावस्यायां  तिथौ,  - पूर्वाफाल्गुन नक्षत्रे, रविवासरे तदनुसार  २५ सितम्बर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,  रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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