ओ३म् -वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का शरदुत्सव सोल्लास सम्पन्न-

 ओ३म्

-वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का शरदुत्सव सोल्लास सम्पन्न-

“ऋषि दयानन्द ने देश एवं मानव जाति के कल्याण के लिए वेदों की ओर लौटने की प्रेरणा की थीः आचार्य आशीष दर्शनाचार्य”

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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के शरदुत्सव का समापन समारोह दिनांक 16-10-2022 को आश्रम के भव्य सभागार में हुआ। इससे पूर्व अथर्ववेद महायज्ञ की पूर्णाहुति हुई। पूर्णाहुति के बाद यजमानों को आशीर्वाद देने के साथ यज्ञ प्रार्थना, भजन तथा डा. वेदपाल जी का सम्बोधन हुआ। इसका विवरण हम कल एक लेख के द्वारा प्रस्तुत कर चुके हैं। आश्रम के सभागार में आयोजन प्रातः 10.00 बजे आरम्भ हुआ। आरम्भ में अमृतसर से पधारे पंडित दिनेश पथिक जी के भजन हुए। पथिक जी द्वारा गाये गये पहले भजन के बोल थे ‘लड़ने वाले हजारों को बेहाल कर गया, वो ऋषि था अकेला जो कमाल कर गया।’ पथिक जी ने दूसरा भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘प्रभु सारी दुनिया में ऊंची  तेरी शान है, कितना महान है तू कितना महान है।’ पथिक जी के भजनों के बाद आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने समारोह में पधारे विद्वान अतिथियों का परिचय दिया। सभी अतिथियों को ओ३म् वा गायत्री मन्त्र का पटका पहना कर सम्मानित किया गया। 


समारोह में पहला सम्बोधन आगरा से पधारे विद्वान पं. उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का हुआ। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि धर्म के विषय में इतना पाखण्ड चल रहा है कि व्यक्ति धर्म के महत्व को नहीं समझ पा रहा है। उन्होंने कहा कि जिन कामों से इहलोक एवं परलोक बनता है वह सब काम धर्म कहलाते हैं। मरने के बाद भी मनुष्य का लोक व परलोक बनता है। धर्म की चर्चा कर उन्होंने कहा कि तुम्हारी आत्मा को जो प्रिय हो वही व्यवहार दूसरों से करें। ऐसा करना धर्माचरण है। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने गम्भीर चिन्तन करके कहा है कि सत्य का आचरण करना ही धर्म है। आचार्य जी ने कहा कि अधर्म वह होता है जहां सत्य का पालन नहीं किया जाता। उन्होंने कहा कि गलत काम करने से समाज बिगड़ रहा है। आचार्य जी ने कहा कि ईश्वर सर्वान्तर्यामी है। वह हमारे सब कर्मों का साक्षी होने से उन्हें यथावत् जानता है और सबको न्याय प्रदान करता है। आचार्य जी ने कहा कि जो व्यक्ति दैनिक यज्ञ करता है वह न तो कभी मिलावट करेगा और न किसी को धोखा देगा। उन्होंने कहा कि यज्ञ का करना धर्म में शामिल है। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी के सम्बोधन के बाद कुलश्रेष्ठ जी, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, डा. नवदीप कुमार तथा पं. सूरत राम शर्मा जी का सम्मान किया गया। 


आचार्य उमेशचन्द्र जी के बाद श्री विजयपाल आर्य ने सभा को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि आपने आश्रम में विद्वानों से जो सुना है उसे घर जाकर अपने बच्चों को बतायें। हमें धर्म विषय का जो ज्ञान है उसे भी हमें अपने परिवार वा बच्चों को बताना चाहिये। श्री आर्य ने आर्यसमाज के अनुयायी तीन प्रसिद्ध परिवारों का उल्लेख कर उनकी अवनति की कथा बताई और कहा कि इसका कारण उन व्यक्तियों का अपने बच्चों को वैदिक संस्कार न दे पाना था। इस सम्बोधन के बाद वैदिक मंगलाचरण द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की 7 ब्रह्मचारिणियों द्वारा किया गया। इन कन्याओं ने एक भजन भी सुनाया। 


समारोह में उपस्थित वेदविदुषी आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी का सम्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि तपोवन में ज्ञान की गंगा बहती है। इस ज्ञान से आप अपने भावी जीवन में पापों को करने से बच सकते हैं। परमात्मा ने संसार बनाया है। हमें ईश्वर की रचना सृष्टि को देखना है व सृष्टि रचना पर भिन्न -2 पहलुओं से विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि जीवात्मा का एकमात्र सच्चा सखा व बन्धु परमात्मा है। परमात्मा ने ही सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया था। वेद ज्ञान मनुष्यों का परमहितकारी है। आचार्या जी ने कहा कि हमें वेदमन्त्रों को ठीक ढंग से समझना है। उन्होंने कहा कि यज्ञ में किसी प्रकार की भी हिंसा नहीं की जाती है। यज्ञ से ऊर्जा उत्पन्न होती है। आचार्या जी ने कहा कि हमें यह मनुष्य शरीर परोपकार करने के लिए मिला है।  ऋषि दयानन्द द्वारा सन् 1875 में आर्यसमाज की स्थापना करने के बाद से हमें वेदों का पवित्र ज्ञान सुलभ हुआ है। हमें ऋषि दयानन्द से सत्यार्थप्रकाश जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी मिला है जो सभी मनुष्यों के अज्ञान को दूर कर ज्ञान को प्राप्त कराता है। आचार्या जी ने कहा कि वेदों की हमें शिक्षा है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की रक्षा करे। वेद गाय को न मारने व उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट देने की शिक्षा देते हैं। वेद गोवध का निषेद्ध करते हैं। आचार्या जी ने कहा मनुष्य को भीतर से ऊर्जावान होना चाहिये। अपने सम्बोधन को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को वैदिक शिक्षा देकर संस्कारित करना चाहिये। आचार्या जी के बाद प्रसिद्ध विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी का सम्बोधन हुआ।    


आचार्य आशीष जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने देश व मानवजाति के कल्याण के लिए वेदों की ओर लौटने की प्रेरणा की थी। उन्होंने कहा चार वेद सब सत्य विद्याओं का खजाना हैं। आचार्य जी ने कहा कि सन् 1903 में राइट बन्धुओं ने विमान बनाकर उड़ाया था। यह विश्व की पहली घटना नहीं थी। इससे आठ वर्ष पूर्व सन् 1895 में ऋषि दयानन्द के एक शिष्य वैदिक वैज्ञानिक श्री शिवकर तलपदे जी ने चैपाटी, मुम्बई में अपने प्रयत्नों से एक विमान बनाकर सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उड़ाया था। यहां प्रमुख लोगों में बडोदरा नरेश गायकवाड एवं महादेव गोविन्द रानाडे भी मौजूद थे। तलपदें जी का बनाया यह विमान लगभग 1500 फीट की ऊंचाई तक उड़ा था। आचार्य जी ने कहा कि इतिहास में यह घटना दर्ज नहीं हो पायी। आचार्य आशीष जी ने कहा कि इतिहास में इस सत्य घटना का दर्ज न होने का कारण देश में अंग्रेजों का राज्य होना था। आचार्य जी ने कहा कि जिन व्यक्तियों में सरलता हो तथा वेदाध्ययन की इच्छा हो उन्हें वह वेदमन्त्रों का अर्थ वा रहस्य हृदयंगम कराने का प्रयत्न कर सकते हैं। उन्होंने ऐसे व्यक्तियों को उनसे मिलने का निमन्त्रण दिया। 


शरदुत्सव समारोह में आश्रम के एक 89 वर्षीय साधक श्री ओम्प्रकाश पालीवाल जी एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती ललिता पालीवाल का अभिनन्दन किया गया। उन्हें एक अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया जिसका वाचन आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने किया। श्री ओम्प्रकाश पालीवाल व उनकी धर्मपत्नी जी को शाल, ओ३म् का पटका, ऋषि दयानन्द का चित्र आदि वस्तुयें भी भेंट की गईं। आश्रम के पदाधिकारियों एवं विद्वानों के साथ उनके चित्र लिये गये।


शीर्ष वैदिक विद्वान डा. वेदपाल जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि महर्षि दयानन्द जी समाज सुधारक थे, यह कहकर हम महर्षि दयानन्द जी का अवमूल्यन करते हैं। उन्होंने कहा कि तटस्थ मूल्यांकन करना कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि हम ऋषि का अधिमूल्यन करते हैं तथा दूसरे लोग उनका अवमूल्यन करते हैं। आचार्य जी ने कहा कि जो मार्गदर्शन करने में सबसे आगे रहे उसे पुरोधा कहते हैं। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द को किसी एक पक्ष में बांधना उनका अवमूल्यन करना है। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने अर्थ पर भी चिन्तन दिया है। उन्हें आर्थिक चिन्तन का पुरोधा भी माना जाता है। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द द्वारा उदयपुर नरेश महाराणा सज्जन सिंह को सन् 1882-1883 में लिखे पत्र का उल्लेख कर बताया कि महर्षि ने पत्र में लिखा था कि जो व्यक्ति 30 वर्ष तक राज्य की निर्दुष्ट सेवा करे उसको राज्य की ओर से उसके योगक्षेम हेतु पचास प्रतिशत पेंशन दी जाये। आचार्य जी ने अन्य कुछ बानगियां और प्रस्तुत की जो ऋषि दयानन्द के आर्थिक चिन्तन पर प्रकाश डालती है। आचार्य जी ने पत्रव्यवहार के आधार पर ऋषि दयानन्द की अर्थशुचिता के उदाहरण भी दिये। अपने वक्तव्य का उपसंहार करते हुए उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द 19वी शताब्दी के वास्तविक नवजागरण के पुरोधा थे। 


कार्यक्रम में कपकोट के विधायक श्री सुरेश गरिया जी भी उपस्थित थे। उन्होंने वेदों के ज्ञान की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वेदों में परलोक का वर्णन भी है। उन्होंने आगे कहा कि वेदों से ही दुनियां का कल्याण होगा। बागेश्वर के विधायक एवं कैबिनेट मंत्री श्री चन्दन राम दास जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि स्वामी दयानन्द जी का जीवन विश्व के लिए प्रेरणादायक है। उनके चिन्तन से ही ज्ञान विज्ञान की परम्परा चल रही है। उन्होंने कहा कि वेदों के कारण ही हम दुनियां में श्रेष्ठ देशों में गिने जाते हैं। इसका श्रेय महर्षि दयानन्द को है। महर्षि दयानन्द ने देश ओर दुनियां को नई दिशा दी थी। उन्होंने कहा कि आर्थिक तथा धार्मिक क्षेत्र में जो नाम दयानन्द जी का है वह कार्लमाक्र्स का नहीं है। हमं ऋषि दयानन्द की परम्पराओं को आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे। मंत्री जी के सम्बोधन के बाद आर्यसमाज के पूर्व प्रधान श्री महेश कुमार शर्मा जी की एक पुस्तक ‘प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857 एवं महर्षि दयानन्द’ का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण के पश्चात शर्मा जी ने अपनी पुस्तक की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला। 


समारोह में उपस्थित गुरुकुल पौंधा के वरिष्ठ आचार्य डा. यज्ञवीर जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि धर्म वह है जो प्रजा को धारण करता है। उन्होंने कहा कि धर्म का मूल अर्थ है। अर्थ का मूल राज्य है। राज्य का मूल इन्द्रिय-जय है। उन्होंने कहा कि प्रजा को वश में करने के लिये राजा को जितेन्द्रिय बनना पड़ेगा।


कार्यक्रम का संचालन ज्वालापुर से पधारे वैदिक विद्वान ऋषिभक्त श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने बहुत उत्तमता से किया। उन्होंने अनेक प्रेरक प्रसंग भी सुनाये। कार्यक्रम व्यवस्थित रूप से चला तथा समय पर समाप्त हुआ। कार्यक्रम में पूरे समय रोचकता बनी रही। इसके लिए आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी साधुवाद के पात्र हैं।  


कार्यक्रम का समापन करते हुए आश्रम के प्रधान श्री विजय आर्य जी ने उत्सव में पधारे विद्वानों के सहयोग की प्रशंसा की। उन्होंने विद्वानों एवं श्रोताओं का धन्यवाद भी किया। प्रधान जी ने आश्रम की पर्वतीय इकाई में आगामी 10 से 19 मार्च, 2023 तक होने वाले यजुर्वेद-सामवेद पारायण यज्ञों की जानकारी दी और इस कार्यक्रम में पधारने का अनुरोध सभी श्रोताओं एवं विद्वानों से किया। इसी के साथ शरदुत्सव समारोह का समापन हो गया। इसके बाद सभी बन्धुओं ने ऋषि लंगर का लाभ लिया। सभी विद्वान एवं श्रोता अपने अपने निवास स्थानों पर लौट गये। हम निजी तौर पर अनुभव करते हैं कि आजकल आर्यसमाज के कार्यक्रमों में श्रोताओं की उपस्थिति घट रही है। यह चिन्ता का विषय है। इसका समाधान विद्वानों व संगठन के बन्धुओं को करना व सुझाना चाहिये। ओ३म् शम्।


-मनमोहन कुमार आर्य

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