ओम तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताचछुक्रमुच्चरत

 ओम तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताचछुक्रमुच्चरत ! पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात !! (यजु. ३६.८)

प्रभु सूर्य और उसकी संसृति, कर दर्श पर्श तल्लीन जिएं !

सौ वर्ष जिएँ या अधिक जिए, पर होकर के स्वाधीन जिएँ !!

उदय हो रहा प्राज्ञ दिशा में

पहले से ही पूर्व दिशा में !

दी द्रष्टि इसी रवि ने सबको

द्रश्य दीखते निशा उषा में !

हे ईश सूर्य भव विश्व पूर्य, हम होकर के भय हीन जिएँ !

सौ वर्ष जिएँ या अधिक जिएँ, पर होकर के स्वाधीन जिएँ !!

प्रभु सूर्य विश्व प्रिय मनभावन

सौ वर्ष तक देखें पावन !

सौ वर्ष तक इनको जी लें

सौ वर्ष सुनें श्रुति का गायन !

सौ वर्ष बोल व्याख्यान करें, गुण गान ईश लबलीन जिएँ !

सौ वर्ष जिएँ या अधिक जिएँ, पर होकर के स्वाधीन जिएँ !!

हों नहीं दीन सौ वर्षों में

या अधिक आयु आकर्षों में !

उत्कर्ष हर्ष के साथ जिएँ

कर विजय सभी संघर्षो में !

हम जितना भी जीवन पायें , प्रभु से कर हृदय विलीन जिएँ !

सौ वर्ष जिएँ या अधिक जिएँ , पर होकर के स्वाधीन जिएँ 

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