आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏
🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - १३ अक्तूबर २०२२ ईस्वी
दिन - - गुरूवार
🌖 तिथि - - - चतुर्थी ( २७:०८+ तक तत्पश्चात पंचमी )
🪐 नक्षत्र - - कृत्तिका (१८:४१ तक तत्पश्चात रोहिणी )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - कार्तिक
ऋतु - - शरद
,
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ६:२० पर
🌞 सूर्यास्त - - १७:५४ पर
🌖 चन्द्रोदय - - २०:०८ पर
🌖चन्द्रास्त - - ९:३१ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२३
कलयुगाब्द - - ५१२३
विक्रम संवत् - - २०७९
शक संवत् - - १९४४
दयानंदाब्द - - १९८
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥मोक्ष के लिए कुछ शर्तें
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मेरा व्यक्तिगत मानना है कि मोक्ष के लिए कुछ शर्तें हैं और जो उन शर्तों को पूरा कर लेगा उसे निस्सन्देह मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।वे कुछ शर्तें हैं वैराग्य की पराकाष्ठा को प्राप्त हो जाना।ज्ञान-ज्ञान तो अनन्त हैं परन्तु एक मोक्षार्थी को थोड़ा ज्ञान चाहिए।बस इतना ही की वह एक चेतनशक्ति है,निराकार,नित्य,अविनाशी, ज्ञाता,द्रष्टा, अनुभवकर्त्ता है।वह यह हाड़-मांस का पुतला नहीं है।वह इससे पृथक् है।उसे इस शरीरादि की आवश्यकता नहीं है।बस इतनी ही। इच्छाएं, कामनाओं से रहित हो जाना और शुद्धता ,पवित्रता, निर्मलता की पराकाष्ठा को प्राप्त हो जाना।यह जो अंतिम शर्त है ,यही मुख्य है और अन्य शर्तें इसी में समाहित हो जाते हैं।
क्योंकि मोक्ष का स्वरूप कोई कुछ भी माने।कोई भी शास्त्र, पुस्तक में आस्था रखे।शास्त्र वाक्यों का कुछ भी अर्थ लगाए।किसी भी ईश्वर, ब्रह्म, भगवान्, गॉड आदि को माने परन्तु वे सब अत्यन्त शुद्ध, पवित्र,निर्मल हैं और वे चाहते हैं कि हमारा अनुयायी, भक्त जो मुझे पाना चाहता है वह भी मेरे ही जैसे शुद्ध, पवित्र, निर्मल हो।
शुद्धता, पवित्रता से मेरा तात्पर्य है बुद्धि में किसी भी प्रकार की गन्दगी का न होना।राग, द्वेष, काम,क्रोधादि ये जो असंख्य दोष हैं इनको बाहर निकाल फेंकना।काम,क्रोधादि तो स्थूल अशुद्धियाँ हैं।यह तो सबकी समझ में आ जाती है।जब हम इन स्थूल अशुद्धियों को नष्ट कर देते हैं,तब हमारी बुद्धि इतना तीक्ष्ण हो जाती है कि फिर वह सूक्ष्म से सूक्ष्म अपवित्रता को पकड़ने में समर्थ हो जाती है और उनको भी नष्ट करने में लग जाती है ।जब
सारे सूक्ष्म अपवित्रता भी नष्ट हो जाती है तब वह आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित हो जाता है,जैसे वह मोक्ष में पहले था।
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩
🌷ओ३म् धृष्टिरस्यपा ग्ने अग्निमामादं जहि निष्क्रव्यादँसेधा देवयजं वह
ध्रुवमसि पृथिवीं दृहँ ब्रह्मवनि त्वा क्षत्रवनि सजातवन्युपदधामि भ्रातृव्यस्य वधाय।। ( यजुर्वेद ०१\१७ )
💐 अर्थ :- इस मन्त्र में श्लेषालंकार है । सर्वशक्तिमान ईश्वर ने यह भौतिक अग्नि आम अर्थात कच्चे पदार्थ जलानेवाला बनाया है । इस कारण भस्म रूप पदार्थों के जलाने को समर्थ नहीं है । जिससे कि मनुष्य कच्चे-कच्चे पदार्थों को पकाकर खाते हैं (वह आमात) तथा जिस करके सब प्राणियों का खाया हुआ अन्न आदि द्रव्य पकता है (वह जठर) और जिस करके मनुष्य लोग मरे हुए शरीर को जलाते हैं, वह क्रव्यात् अग्नि कहाता और जिसमें दिव्य गुणों को प्राप्त करानेवाली विद्युत बनी है तथा जिससे पृथिवी का धारण और आकर्षण करनेवाला सूर्य बना है और जिसे वेदविद्या के जाननेवाले ब्राह्मण वा धनुर्वेद के जाननेवाले क्षत्रिय वा सब प्राणिमात्र सेवन करते हैं तथा जो सब संसारी पदार्थों में वर्तमान परमेश्वर है, वही सब मनुष्यों का उपास्य देव है तथा जो क्रियाओं की सिद्धि के लिए भौतिक अग्नि है, यह भी यथायोग्य कार्यद्वारा सेवा करने के योग्य है ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे, रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, कार्तिक -मासे , कृष्ण - पक्षे, - चतुर्थ्यां तिथौ, - भरणी नक्षत्रे, गुरूवासरे, तदनुसार १३ अक्टूबर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे