आज का वेद मंत्र
🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - २० अक्तूबर २०२२ ईस्वी
दिन - - गुरूवार
🌘 तिथि - - - दशमी ( १६:०४ तक तत्पश्चात एकादशी )
🪐 नक्षत्र - - - आश्लेषा ( १०:३० तक तत्पश्चात मघा)
पक्ष - - कृष्ण
मास - - कार्तिक
ऋतु - - शरद
,
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ६:२५ पर
🌞 सूर्यास्त - - १७:४७ पर
🌘 चन्द्रोदय - - २६:१४ + पर
🌘चन्द्रास्त - - १५:०८ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२३
कलयुगाब्द - - ५१२३
विक्रम संवत् - - २०७९
शक संवत् - - १९४४
दयानंदाब्द - - १९८
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
यक्ष और युधिष्ठिर संवाद- अनमोल संवाद जिसमे मनुष्य जीवन के सारे प्रश्नों के उत्तर निहित हे!!!
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यक्ष – जीवन का उद्देश्य क्या है?
युधिष्ठिर – जीवन का उद्देश्य प्राणी मात्र मे स्थित आत्मा को जानना है जो जन्म और मरण केबन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
यक्ष – जन्म का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
यक्ष – जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
यक्ष – वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
युधिष्ठिर – जैसी वासनाएं वैसा जन्म।यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
यक्ष – संसार में दुःख क्यों है?
युधिष्ठिर – लालच, स्वार्थ, भय संसार के दुःख का कारण हैं।
यक्ष – तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
युधिष्ठिर – ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
यक्ष – क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या रुप है उसका? वह स्त्री है या पुरुष?
युधिष्ठिर – हे यक्ष! कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है।
तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।
यक्ष – उसका स्वरूप क्या है?
युधिष्ठिर – वह सत्-चित्-आनन्द है, वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है
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यक्ष – वह अनाकार स्वयं करता क्या है?
युधिष्ठिर – वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।
यक्ष – यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
युधिष्ठिर – वह अजन्मा अमृत और अकारण है
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यक्ष – भाग्य क्या है?
युधिष्ठिर – हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
यक्ष – सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
युधिष्ठिर – सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं।
असत्य, अनाचार, घृणा व क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
यक्ष – चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – कामनाएं चित्त में उद्वेग उतपन्न करती हैं। कामनाओ पर विजय चित्त पर विजय है।
यक्ष – सच्चा प्रेम क्या है?
युधिष्ठिर – स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
यक्ष – तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
युधिष्ठिर – जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
यक्ष – आसक्ति क्या है?
युधिष्ठिर –नशवर देह व वस्तु से अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
यक्ष – बुद्धिमान कौन है?
युधिष्ठिर – जिसके पास सत्संग से प्राप्त विवेक है।
यक्ष – नशा क्या है?
युधिष्ठिर –नश्वर माया मे आसक्ति।
यक्ष – चोर कौन है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।
यक्ष – जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
युधिष्ठिर – जो आत्मा रूपी परमात्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
यक्ष – कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
युधिष्ठिर – यौवन, धन और जीवन।
यक्ष – नरक क्या है?
युधिष्ठिर – इन्द्रियों की दासता नरक है।
यक्ष – मुक्ति क्या है?
युधिष्ठिर – अनासक्ति ही मुक्ति है।
यक्ष – दुर्गति का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – मद और अहंकार।
यक्ष – सदगति का कारण क्या है?
युधिष्ठिर – सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव।
यक्ष – सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
युधिष्ठिर – जो सब छोड़ने को तैयार हो।
यक्ष – मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है?
युधिष्ठिर – गुप्त रूप से किये गए पाप।
यक्ष –किस बात का विचार सदैव रहना चाहिए?
युधिष्ठिर – सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।
यक्ष – संसार को कौन जीतता है?
युधिष्ठिर – जिसमें सत्य और श्रद्धा है।
यक्ष – भयमुक्ति कैसे संभव है?
युधिष्ठिर – परमार्थ से।
यक्ष – मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – जो अज्ञान से परे है।
यक्ष – अज्ञान क्या है?
युधिष्ठिर – आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
यक्ष – दुःखों से मुक्त कौन है?
युधिष्ठिर – लोभी सदैव भयभीत रहता हे संतोषी जीव कभी क्रोध नहीं करता वह मुक्त हे।
यक्ष – वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
युधिष्ठिर – माया।
यक्ष – माया क्या है?
युधिष्ठिर – नाम और रूपधारी नाशवान जगत।
यक्ष – मनुष्य का साथ कौन देता है?
युधिष्ठिर ने कहा – धैर्य व धर्म मनुष्य का साथ देते है.
यक्ष – इस लोक व परलोक मे गति एकमात्र उपाय क्या है?
युधिष्ठिर – दान.
यक्ष – हवा से तेज कौन चलता है?
युधिष्ठिर – मन.
यक्ष – विदेश जानेवाले का साथी कौन होता है?
युधिष्ठिर – विद्या.
यक्ष – किसे त्याग कर मनुष्य निर्मल हो जाता है?
युधिष्ठिर – अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर.
यक्ष – किस गुण से मनुष्य अप्रिय हो जाता हे ?
युधिष्ठिर – क्रोध.
यक्ष – किस कारन मनुष्य पापी बनता है?
युधिष्ठिर – लोभ.
यक्ष – वन्दनीय होना किस बात पर निर्भर है? जन्म पर, विद्या पर, या शीतल स्वभाव पर?
युधिष्ठिर – शीतल स्वभाव पर.
यक्ष – कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
युधिष्ठिर – स्वयं का शीतल स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है.
यक्ष – सर्वोत्तम लाभ क्या है?
युधिष्ठिर – आरोग्य.
यक्ष – धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है?
युधिष्ठिर – दया और परमार्थ
यक्ष – कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
युधिष्ठिर – सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती.
यक्ष – इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर – रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩
🌷 ओ३म् मा भेर्मा संविक्था अतमेरुर्यज्ञो तमेरुर्यजमानस्य प्रजा भूयात् त्रिताय त्वा द्विताय त्वैकताय त्वा ।(यजुर्वेद ०१\२३ )
💐 अर्थ :- ईश्वर सब मनुष्यों को आज्ञा और आशीर्वाद देता है कि मनुष्य को यज्ञ, सत्याचार और विद्या के ग्रहण से डरना वा चलायमान कभी न होना चाहिए, क्योंकि मनुष्यों को उक्त यज्ञ आदि अच्छे-अच्छे कार्यों से ही उत्तम-उत्तम संतान शारीरिक, वाचिक और मानस विविध प्रकार के निश्छल सुख प्राप्त हो सकते हैं ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे, रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, कार्तिक -मासे , कृष्ण - पक्षे, - दशम्यां
तिथौ, - आश्लेषा नक्षत्रे, गुरूवासरे , तदनुसार २० अक्टूबर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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