‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    २९ सितम्बर २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - -  गुरूवार



  🌒 तिथि - - - चतुर्थी ( २४:११ + तक तत्पश्चात पंचमी )



🪐 नक्षत्र -  -  स्वाति ( ८:०३ तक तत्पश्चात विशाखा )


पक्ष  - -  शुक्ल  


 मास  - -   आश्विन 


ऋतु  - -  शरद 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः  ६:१७ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १८:०६ पर 


🌒 चन्द्रोदय  - -  ९:२२  पर 


🌒चन्द्रास्त  - -  २०:२६  पर 


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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🚩‼️ओ३म् ‼️🚩


🔥"  ईश्वर की संध्या करने के लाभ " 

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🌷महर्षि दयानन्द सरस्वती ने १० अप्रैल, सन् १८७५ को आर्यसमाज की स्थापना की थी। आर्य समाज वेद प्रचार आन्दोलन है। वेद ईश्वरीय ज्ञान है और वेद में सभी सत्य विद्यायें बीज रूप में उपस्थित हैं। सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते है उन सबका आदि मूल परमेश्वर है। परमेश्वर से विद्या प्राप्त कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए सन्ध्या का विधान किया गया है। सन्ध्या करने से न केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है अपितु अन्य अनेक लाभ भी होते हैं। स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती जी ने सन्ध्या से होने वाले लाभों की चर्चा अपनी पुस्तक ‘सन्ध्या-प्रभाकर’ में की है। उनके अनुसार सन्ध्या सबको करनी चाहिये और इससे अनेक लाभ होते हैं। वह कहते हैं कि ईश्वर आराधना तथा ओ३म् एवं वेद मन्त्रों का जप में कोई मिट-अमिट, पवित्रता-अपवित्रता सूतक-असूतक का प्रश्न नहीं। प्रत्येक व्यक्ति आर्य हो अनार्य, रोगी हो अरोगी, धनी-निर्धन, ध्यानी-ज्ञानी, स्त्री व पुरुष कोई भी हो, सब को सन्ध्या करनी चाहिये। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र, गुण कर्म व स्वभाव पर आधारित सभी वर्णों के लोगों को सन्ध्या करने का एक समान अधिकार है।


    सन्ध्या करने से मन के मल व विकार दूर होकर अन्तःकरण शुद्ध होता है और दुःख दूर होकर सुख की प्राप्ति होती है। सुख की कामना किसको नहीं है? कौन नहीं चाहता कि मेरे दुःख दूर हों और मुझे सुख मिले। बस, जिसको दुःख दूर कराने और सुख पाने की चाह है, वह सन्ध्या अवश्य करे। 


 महर्षि पतंजलि ने उपासना के लाभ बताते हुए लिखा है--


ततः प्रत्यक् चेतनाधिगमोण्य्पन्तराया भावश्य। (योग० १ - २९)


   अर्थात् ईश्वरोपासना से ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त होता है जिससे व्याधि आदि नौ प्रकार के विघ्न नहीं होते और बुद्धि-वृत्तियों के अनुसार अनुभव करने वाले जीवात्मा को अपने शुद्ध स्वरूप का दर्शन भी हो जाता है। यही स्वरूप दर्शन ही परमात्म दर्शन में भी कारण बनता है। 


   सन्ध्या करने में जो नौ प्रकार विघ्न दूर होते हैं वह निम्न हैं:


   १- व्याधि, २- अकर्मण्यता-कर्म करने की योग्यता का न होना, ३ - संशय, ४- प्रमाद-समाधि के साधनों के अनुष्ठान में प्रयत्न तथा चिन्ता न करना, ५ - आलस्य, ६ - चित्त की विषयों में तृष्णा का बना रहना, ७ - विपरीत ज्ञान, ८ - समाधि की प्राप्ति न होना और ९ - समाधि अवस्था को प्राप्त होकर भी चित्त का स्थिर न होना। सन्ध्या करने से यह जो नौ प्रकार के विघ्न दूर होते हैं वह कोई कम लाभ नहीं हैं। 


  सन्ध्या करने से एक और लाभ होता है। वह है सन्ध्या करने से आयु भी बढ़ती है। महाभारत में आया है-


  ऋषयो नित्य सन्ध्यत्वात्। दीर्घायुरवाप्नुवन्।। ( महाभारत अनु० १०४)


   इसका अर्थ है कि नित्य प्रति सन्ध्या करने से ऋषियों ने दीर्घ आयु प्राप्त की। इस कारण से मनुष्यों को सन्ध्या अवश्य करनी चाहिये।


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🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩


🌷ओ३म् भरेष्विन्द्रं सुहवं हवामहेऽहोमुचं सुकृतं दैव्मं जनम्।  अग्नि: मित्रं वरूणं सातये भगं द्यावापृथिवी मरूत: स्वस्तये। (ऋग्वेद १०|६३|९)


💐अर्थ  :- संग्रामो में परम ऐश्वर्य वाले, सहज में पुकार सुनने हारे, पाप से छुड़ाने हारे, सुकर्मी विद्वद् जनो के हितकारी, समस्त संसार के उत्पादक, ज्ञास्वरूप परमेश्वर का (अग्नि-वायु-जल-ऐश्वर्य-सूर्य वा भूमि तथा शूरवीर विद्वानों) सबका सम्मान से हम आत्मरक्षा एवं कल्याण के लिए आह्वान करते हैं। 


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, आश्विन -मासे , शुक्ल - पक्षे, - चतुर्थयां   तिथौ,  - स्वाति  नक्षत्रे, गुरूवासरे तदनुसार  २९ सितम्बर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,  रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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