दयानन्दयुगपुरुष

   दयानन्दयुगपुरुष

हे युगद्रष्टा ! हे युगस्रष्टा !

नवयुग नायक, युग-ऋषि महान् !

जन-जन-मानस के मान्य मुनि,

युग के युग-युग तक हों प्रणाम!

हे ब्रह्मचर्य प्रतिमा अनुपम,

हे वेदपुरुष वैदिक प्रमाण !

तुम थे वेदों से प्राणवान् 

या वेद तुम्हीं से? हूँ अजान॥

हे वेदसिद्ध, हे कर्मनिष्ठ, 

हे लौहपुरुष कोमल उदार !

तुम द्रवित हृदय धर्मावतार,

पीड़ित शोषित जन की पुकार॥

तेरे सद्भावों के रवि से, 

ज्यों ओस लुप्त त्यों एक साथ।

क्या ऊँच-नीच क्या छूत-छात,

सब भेदभाव सब जात-पात॥

जिस ओर तुम्हारे बढ़े कदम, 

समरसता की फूटी बयार।

कट गए अविद्या बन्ध विकट,

पाखण्ड कुरीति अन्ध जाल॥

शिक्षा - समानता - स्वाभिमान,

पाकर नारी लहलहा उठी।

मानवता में कोंपल फूटी, 

सामाजिकता मुस्करा उठी॥

तुम मूक प्राणियों की वाणी,

विधवा की आँखों के चिराग।

तुम थे स्वराज्य प्रथमोद्घोष,

स्वातन्त्र्य-समर के रौद्र-राग॥

वैदिक संस्कृति के विमल मन्त्र,

नव-राष्ट्र-चेतना-उषा-राग।

सत्यार्थ-प्रकाशक सत्यनिष्ठ, 

एकेश उपासक वीतराग॥

हे भस्मकाम पूर्णाप्तकाम,

तुम चिर-नवीन तुम चिर-पुराण।

आचरणसिद्ध आचार्यवृद्ध,

तुम दिव्य कर्म, तुम दिव्य ज्ञान॥

हे शान्तिशील! हे क्रान्तिदूत!

गंगा की पावन विमल धार।

आनन्दकन्द यति दयानन्द,

नत-नयन-कोटिजन नमस्कार॥

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