बिल्ली की गिरफ्त में चूहा

बिल्ली की गिरफ्त में चूहा 

(दलित-मुस्लिम एकता का झुनझुना बजाने वालो इतिहास से सीखो)

1906 में ढाका में नवाब सलीमुल्लाह, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और वकार-उल-मुल्क द्वारा मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी।

29 दिसबर 1916 ई को लखनऊ समझौते में कोंग्रेस ने मुसलमानो और सिक्खो के लिए पृथक निर्वाचक मंडलों के सिद्धांत पर अनुमति की अपनी मोहर लगा दी , बल्कि उन्हें प्रमुखता भी प्रदान कर दी अर्थात् उनको उनकी जनसख्या से भी अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया । इसमे यह व्यवस्था करी गई कि विभिन्न प्रांतीय निर्वाचन सभाओं में निर्वाचित सदस्यों में मुसलमानो का वास्तविक अनुपात इस प्रकार होगा ।

पंजाब में 50 % , संयुक्त प्रान्त में 25 % , बंगाल में 40% , बिहार 25 % , मध्य प्रान्त और बरार में 15% , मद्रास में 15 % , बम्बई प्रेजिडेंसी में ३३-१/३ % । 

इसके अतिरिक्त इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व बढाकर निर्वाचित भारतीय सदस्यों का १/३ कर दिया गया । ये मुस्लिम प्रतिनिधि अनेक प्रान्तों के पृथक मुस्लिम निर्वाचक मंडलों द्वारा चुने गए थे ।

1940 के लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर यह कहा गया कि मुस्लिम लीग का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान का निर्माण है।

1946 में संविधान सभा के लिए हुए चुनाव में जहाँ कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष एजेंडा के साथ चुनाव मैदान में उतरी, वही मुस्लिम लीग यह चुनाव अपने पाकिस्तान की मांग पर मुस्लिमों के मध्य एक जनमत संग्रह के रूप में लड़ी । वही अम्बेडकर और जोगेंद्र नाथ मण्डल की पार्टी शेड्यूल कास्ट फेडरेशन भी लड़े ।

इस चुनाव के परिणामों से यह बात साफ हो गयी कि मुस्लिम लीग इस देश में मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधित्व करने के दावे तक पहुँच चुकी थी ।

मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इसने लगभग 90% से ज्यादा मत पाए तथा कुल मुस्लिम मतों का लगभग 80% मत और शेष दलित वोट भी मुस्लिम लीग को मिले ।

मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में या तो मुस्लिम लीग को बहुमत प्राप्त हुआ या वह वहां सबसे बड़े दल के रूप में उभरी ।

इन चुनावों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता थी मुस्लिम साम्प्रदायिकता के आधार पर वोट डाले जाना और दलित - मुस्लिम गठबन्धन ।

दूसरी तरफ इन चुनावों में हिन्दुओं के हितों की बात करने वाली हिन्दू महासभा का पूर्णरूप से सफाया हो गया ।

क्योकि हिन्दू सेक्युलर होते है ।

इस चुनाव परिणाम के आधार पर लीग ने वस्तुतः अपनी पाकिस्तान की मांग पर विजय पा ली ।

लीग विधायक दल के बैठक को संबोधित करते हुए जिन्ना ने अलग पाकिस्तान के सवाल पर किसी भी प्रकार के समझौते से इंकार कर दिया और साथ ही ब्रिटिश सरकार को चेतावनी भी दी कि अगर ब्रिटिश सरकार ने मुस्लिम हितों को नज़रअंदाज करते हुए कांग्रेस के साथ किसी प्रकार के समझौते की कोशिश की तो उसके गंभीर परिणाम होगें ।

अपनी पाकिस्तान की मांग को बल प्रदान करने के लिए मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को “सीधी कार्यवाही” की घोषणा की जिसके परिणाम स्वरुप देश में भीषण दंगे हुए. देश में एकप्रकार का अराजकता की स्थिति पैदा हो गयी. दंगों की लहर आने वाले समय में बिहार, बंगाल, संयुक्त प्रान्त, दिल्ली और पंजाब तक फ़ैल फ़ैल गयी, जिससे देश में धार्मिक विभाजन की खाई और चौड़ी हो गयी. विभिन्न धार्मिक समूहों के मध्य अविश्वास की भावना इस दौरान अपने चरम पर थी ।

इस प्रकार 9 दिसम्बर 1946 को हुई संविधानसभा के प्रथम बैठक का लीग ने बहिष्कार किया और देश में मुस्लिमों के मध्य पाकिस्तान की आवाज़ को बुलंद करने की अपील की, जिससे देश में भीषण दंगे हुए. जीवन भर संवैधानिक राजनीति के विश्वास करने वाले कायदे-आज़म जिन्ना के लिए अंततः संवैधानिक तरीकों को अलविदा कहने और अपने मुस्लिम राष्ट्र को आन्दोलन की राजनीति के लिए तैयार करने का वक़्त आ चूका था. (वोल्पर्ट 2000 : 344 द्वारा उदधृत)

योजना के अनुसार जुलाई, 1946 ई० में संविधान सभा का चुनाव हुआ. कुल 389 सदस्यों में से प्रांतों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिय चुनाव हुए. इसमें कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 स्थान एवं 15 अन्य दलों के तथा स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए ।

इसके बाद संविधान सभा में जाने के लिए मुस्लिम की ओर से 3 सदस्यों को शामिल किया गया , जिनमे इस्माइल चुंदरिगर को वाणिज्य , अब्दुल रब नश्तर को डाक व तार एवम अम्बेडकर साहब के मित्र और पार्टी के सहयोगी जोगेंद्र नाथ मण्डल को कानून मंत्रालय मुस्लिम लीग द्वारा दिया गया ।

बाद में डॉ अम्बेडकर साहब भी बंगाल जहां मुस्लिम लीग सत्ता में थी वहां से संविधान सभा में चुने गए ।

इस प्रकार लगातार होने वाले मुस्लिमो संचालित सांप्रदायिक दंगो के दौर में अगस्त 1947में भारत का धार्मिक विभाजन राजनीतिक विभाजन के रूप में परिवर्तित हो गया और धार्मिक आधार पर एक नए राष्ट्र पाकिस्तान का उदय हुआ ।

डॉ अम्बेडकर मुसलमानों के व्यवहार से परिचित थे। उन्होंने हिन्दू दलितों को पाकिस्तान और बांग्लादेश छोड़कर भारत आने को कहा। मगर उनकी सलाह के विपरीत जोगेन्दर मंडल पाकिस्तान में रुक कर सरकार में मंत्री बना। उसने लाखों दलितों को वही रोक लिया। बाद में उसकी और अन्य दलित हिन्दुओं की मुसलमानों ने अपने स्वभाव के अनुसार काफिर करार देकर जीना मुश्किल कर दिया। उसे भाग कर वापिस भारत आना पड़ा। वह तो आ गया मगर उसके समर्थक हिन्दू दलित मुसलमानों के शिकंजे मैं ऐसे फस गए जैसे बिल्ली के पंजे में चूहा। कभी कोई पाकिस्तानी मुसलमान अपने रसूख से उनकी लड़की उठा ले जाता है। कभी कोई उनकी बेटियों से बलात्कार हो जाता है। कभी कोई पाकिस्तानी मुसलमान उनके बच्चों की सुन्नत कर उन्हें मुसलमान बना डालता हैं। अनेक वाल्मीकि दलित ईसाई भी बन गए। अब उनके चर्चों में बम फूटते हैं। मगर कोई सुनवाई नहीं। बांग्लादेश में रहने वालों की भी वस्तुत: यही स्थिति है। उनकी हालात अब पछताए होत जब चिड़िया चुग गई खेत जैसी है।आज वो हिन्दुओं से दगा करेंगे कल उनके समर्थन करने वालों की गर्दने कितनी सुरक्षित रहेगी। यह सोचने की बात है। 

हमारे देश के हिन्दुओं ने अपने इतिहास से कुछ नहीं सीखा। आज भी स्थिति वैसी ही बन रही है। कुछ दलित/सेक्युलर नेता फिर से दलित-मुस्लिम एकता का नारा लगा रहे हैं। उनका उद्देश्य येन-केन प्रकारेण सत्ता को हासिल करना हैं। यह लेख पढ़ कर हमारे देश के सभी हिन्दुओं को इतिहास से सीख ले लेनी चाहिए। अन्यथा उनकी हालात भी बिल्ली की गिरफ्त में चूहे जैसी होने वाली हैं।

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