हिन्दू धर्म की उपेक्षा
हिन्दू धर्म की उपेक्षा
कोई भी भारतीय नागरिक ऐसा नहीं होगा जिसने इन दुःखद समाचारों को पढ़ा या सुना न होगा
१- धर्म निरपेक्ष शासन की आड़ में एक दूसरे धर्म को प्रोत्साहन देता तथा संवैधानिक कानून का उल्लंघन करना ।
२- कुछ दिन पूर्व गोरक्षा आन्दोलन प्रारम्भ हुआ परन्तु निराश होकर ढीला पड़ गया । एतएव इस बात में कोई सन्देह नहीं कि भारतवर्ष के अन्दर छब्बीस करोड़ हिन्दुओं की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है । एक समाचार पत्र में मैंने पढ़ा कि अब हमारे राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन ने राष्ट्रपति भवन के अन्दर प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी से मस्जिद बनवाने की स्वीकृति प्राप्त कर ली है । परन्तु ध्यान रहे हमारे संविधान में भारत वर्ष को धर्म निरपेक्ष शासन बतलाया है । राष्ट्र की सम्पूर्ण वस्तुवें किसी एक धर्म के प्रयोग करने के लिए नहीं हैं । किसी भी राष्ट्र के नेता को यह अधिकार नहीं है कि वह सरकारी सर्विस , सरकारी पदों , सरकारी इमारतों या किसी भी राष्ट्रीय सम्पत्ति का उपयोग करने के लिए किसी एक जाति , धर्म , या समाज को विशेष रूप से सुविधाएं प्रदान करे । हमारे देश का नाम हिन्दुस्तान है परन्तु यहां पर धर्म निरपेक्ष शासन होते हुए भी आज जो हिन्दुओं के साथ घोर अन्याय किया जा रहा है , ऐसी दशा में प्रत्येक हिन्दु का कर्तव्य है कि वे उसका डटकर मुकाबला करें ।
ध्यान रहे हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्रप्रसाद ने भूतपूर्व प्रधान मन्त्री स्वर्गीय पं० जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि " पण्डित जी राष्ट्रपति भवन के अन्दर एक मन्दिर स्थापित होना चाहिये " परन्तु पं० जवाहर लाल नेहरू ने एक ही उत्तर दिया था " भारतवर्ष एक धर्म निरपेक्ष एतएव राष्ट्रपति भवन के अन्दर किसी भी धर्म को विशेष सुविधाएं प्रदान नहीं की जा सकती। राष्ट्र की प्रत्येक वस्तु का समस्त देश के नागरिक बिना किसी भेद भाव के उपयोग कर सकते हैं , कोई भी जाति , धर्म , या समाज विशेष रूप से सुविधाएं प्राप्त नहीं कर सकते "
परन्तु आज बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि उन्हीं स्वर्गीय पं ० जवाहर लाल की पुत्री ने वह कार्य करके दिखला दिया जिसको उनके पिता ने स्वप्न में भी स्वीकृत नहीं किया था ।
क्या इस पॉलियामेंट के अन्दर कोई भी ऐसा क्षत्रिय नहीं है जो कि देवी इन्दिरा से कहे कि ऐ इन्दिरा ! जो तूने यह कुकृत्य किया है वह धर्म निरपेक्ष शासन का घोतक नहीं है अपितु धर्म सापेक्ष शासन का समर्थक है । तथा उसके कानों को खोलता हुआ कहे कि आज तूने राष्ट्रपति भवन के अन्दर मस्जिद निर्माण की स्वीकृति देकर अपने पिता जी का ही अपमान नहीं किया अपितु धर्म निरपेक्ष शासन को महान पक्का पहुंचाया है । यदि आज राष्ट्रपति भवन के अन्दर मस्जिद बनी तो मन्दिर , गुरुद्वारा , गिरजा , इत्यादि अवश्य बनवानें पड़ेंगे जिनके निर्माण में राष्ट्र का करोड़ों रुपया व्यर्थ व्यय हो जाएगा , तथा पुनः देश के अन्दर जाति - पाति की भावना आ जाएगी जिसके फलस्वरूप हमारा देश अवनति के गर्त में गिर जायेगा । मेैं तो इसी पक्ष में हूँ कि धर्म प्रत्येक मनुष्य का वैयक्तिक प्रश्न है , सरकार का उसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इसलिए धर्म निरपेक्ष शासन के अन्दर किसी भी एक धर्म को राष्ट्र की ओर से सहारा देना आर्यावर्त में रहने वाली अनेक धर्मावलम्बी जातियों के साथ अन्याय करना होगा । अतः एव राष्ट्रपति भवन के अन्दर पूजा करने के लिए कोई भी धार्मिक स्थान नहीं बनना चाहिये ।
२- दूसरा प्रश्न उठता है गोवध निषेध का ।
इतना प्रयत्न करने के बाद भी हमारी सरकार ने गोवध बन्द नहीं किया । गो हिन्दुओं का पवित्र पशु है । आर्यावर्त एक कृषि प्रधान देश है अतः एव देश के प्रत्येक भाग में बैलों से खेती की जाती है । परन्तु बड़ा दुःख है कि फिर भी हमारे देश में गोवध बन्द नहीं होता है । मैं इस देश के कांग्रेसियों से पूछना चाहता हूँ कि यदि ये कांग्रेस सरकार गोवध बंद नहीं कर सकती है तो वे दो बैलों की जोड़ी को अपना चुनाव चिन्ह क्यों बनाती है । क्या तुम ऐ राम और कृष्ण की सन्तानो ! तुम आज स्वतन्त्र होते हुए भी परतन्त्र हो । सब मिलकर के गोवध बन्द नहीं करा सकते हो । आज तुम्हारे सामने प्रतिदिन सूर्योदय से पहले पहले हजारों लाखों गौवें मौत के घाट उतार दी जाती हैं । आम चुनाव से पहले जिस उत्साह और शक्ति के साथ गोरक्षा आन्दोलन प्रारम्भ किया था उससे भी कई गुणा अधिक बढ़कर तुमको कार्य करना चाहिए था । परन्तु तुम तो निरुत्साह होकर पुनः गौमाता की पुकार को भूल गए हो । क्या इस भूपृष्ठ पर कोई भी ऐसा क्षत्रिय नहीं रहा जो कि हिन्दु जाति के साथ प्रतिदिन बढ़ते हुए अत्याचार का सामना कर सके ? यह सब उस समय हो सकता है जबकि हमारे अन्दर एकता होगी । मात्र हमारे देश के अन्दर सबसे अधिक संख्या हिन्दुओं की है परन्तु एकता के अभाव के कारण हिन्दुओं की बातों को स्वीकृत नहीं किया जाता है । अतः एव आज सब हिन्दुओं को एकता के सूत्र में अन्य करके नारा लगाना चाहिये -
चूर - चूर हो जायेंगे ,
गौ के प्राण बचायेंगे ।
प्रत्येक हिन्दु का कर्तव्य है कि वह अपने परिवार में कम से कम एक गाय अवश्य रक्खे । पहले हमारे देश के धन्दर कामधेनु जैसी गाय पाली जाती थी परन्तु अब तो हमको यह बात असम्भव सी प्रतीत होती है । अब भी यदि गो की सेवा करें तो प्रत्येक वस्तु को प्राप्त कर सकते हैं । राजा दिलीप सन्तान रहित थे परन्तु नन्दिनी गाय की सेवा करने से उन्होंने सन्तान को प्राप्त कर लिया था । आाज भी गौमाता की पुकार को हमें सुनना चाहिए । मैं एक पद्य के द्वारा गौमाता की हिन्दू नौजवानों के सामने पुकार प्रस्तुत करता हूँ -
गौमाता पर पड़ी विपत्ति चलती रोज कटार।
उठो नौज्वानों अब हो जाओ तैयार ।
सबसे पहले दयानन्द ने था ये कदम उठाया।
संभालके में फूलसिंह ने था हत्था तुड़वाया ।
अरे दुष्टो अब सब मिलकर के छोड़ो मांसाहार ।। १ ।।
अमृत तुल्य दूध पिला कर हमें बलवान बनाती ।
खाद और बछड़े देकर के खाद्य समस्या सुलझाती ।
मृत्यु बाद भी गौमाता करती है परउपकार ॥ २ ॥
प्यारे भारत में पहले तो दूध की नदियां बहती थीं ।
भारत में घर - घर के अन्दर गौमातायें रहती थीं ।
द्वापर में करते थे कृष्ण जी गौओं की रखवार ॥ ३ ॥
जरा याद करो जो नित्यप्रति हमको है दूध पिलाती ।
रक्षा हेतु अब वही गौमाता तुमको पास बुलाती ।
मारी जाती हैं गौवें सरकार ये गद्दार ॥ ४ ॥
जननी से भी गौमाता है हम सबको ही प्यारी ।
कसम उठायो अब से आगे जाऐ ना गौएं मारी ।
दया करो हे ' देव ' विनय करते हम बारम्बार ॥ ५ ॥
लेखक -देवराज मलिक , गुरुकुल भैंसवाल
स्त्रोत - समाज संदेश सितंबर 1967
प्रस्तुति - अमित सिवाहा