आज का वेद मंत्र 🕉️

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    ०८ सितम्बर २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - - गुरूवार


  🌔 तिथि - - -  त्रयोदशी ( २१:०२ तक तत्पश्चात चतुर्दशी )



🪐 नक्षत्र -  -  श्रवण ( १३:४६ तक तत्पश्चात धनिष्ठा )


पक्ष  - -शुक्ल


 मास  - -   भाद्रपद 


ऋतु  - -  शरद 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः  ६:०२ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १८:३५ पर 


🌔 चन्द्रोदय  - -  १७:३२  पर 


🌔चन्द्रास्त  - -  २८:३२ + पर


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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 🚩‼️ ओ३म् ‼️🚩


🔥 आध्यात्मिक उन्नति के तीन साधन १ - ईश्वर भक्ति  २- सत्संग  ३ स्वाध्याय!!!

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  ओ३म् मिमीहि श्लोकमास्ये पर्जन्य इव ततन: । गाय गायत्रमुक्थ्यम् ।।

―(ऋ० १/३८/१४)

हे विद्वान् मनुष्य ! तू (आस्ये) अपने मुख में (श्लोकम्) वेद की शिक्षा से युक्त वाणी को (मिमीहि) निर्माण कर और उस वाणी को (पर्जन्य इव) जैसे मेघ वृष्टि करता है, वैसे (ततन:) फैला और (उक्थ्यम्) कहने योग्य (गायत्रम्) गायत्री छन्दवाले स्तोत्ररुप वैदिक सूक्तों को (गाय) पढ़ तथा पढ़ा।


   वेद मनुष्य को प्रेरणा दे रहा है कि तू वेदवाणी का स्वाध्याय कर। वेदवाणी के स्वाध्याय से जो ज्ञान तुझे प्राप्त हो, तू उसे ऐसे फैला जैसे बादल वर्षा फैलाता है।अर्थात् ज्ञान को अपने तक ही सीमित न रक्खें बल्कि उसको लोगों में फैलायें, प्रचार करें।


  स्वाध्याय और प्रवचन दोनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। स्वाध्याय शब्द के दो अर्थ हैं। स्वाध्याय का पहला अर्थ है वेद और वेदसम्बन्धी ग्रन्थों का अध्ययन। दूसरा अर्थ है स्व + अध्याय अर्थात् अपना अध्ययन। अपने अध्ययन से अभिप्राय है आत्म-निरीक्षण 


  स्वाध्याय का पहला अर्थ है सद्ग्रन्थों का पाठ। आध्यात्मिक उन्नति के तीन साधन हैं―ईश्वरभक्ति, सत्सङ्ग और स्वाध्याय। सदग्रन्थों का पाठ अमृतपान के समान होता है और असदग्रन्थों का पाठ विष-पान के समान। 


   वैदिक साहित्य में स्वाध्याय की बहुत महिमा गाई गई है। 

स्वाध्यायान्मा प्रमद: ।

–(तैत्तिरीयोपनिषद् १/११)

'स्वाध्याय करने में प्रमाद न करना।'


   योगदर्शन में स्वाध्याय की महिमा का वर्णन करते हुए महर्षि पतञ्जलि ने लिखा है―


   तप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग: ।

―(योग० २/१)

तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान इनको क्रियायोग कहते हैं। 


   क्रियायोग का अर्थ है योग के साधन। इनके करने से अस्थिर चित्तवाला भी योग को प्राप्त हो जाता है। इन तीनों में एक 'स्वाध्याय' है

आगे कहा है―


   समाधिभावनार्थ: क्लेशतनूकरणार्थश्च ।

―(योग० २/२)

उक्त क्रियायोग समाधि को सिद्ध करता है और अविद्यादि क्लेशों को शिथिल करता है।


  कहने का आशय यह है कि समाधि को सिद्ध करने और क्लेशों को शिथिल करने का एक साधन स्वाध्याय भी है।


  मनुमहाराज ने मनुस्मृति में स्वाध्याय पर बहुत बल दिया है। गृहस्थ के लिए मनु महाराज ने पाँच यज्ञों का विधान किया है। उन पाँच में से पहला यज्ञ ब्रह्मयज्ञ है―


   अध्यापनं ब्रह्मयज्ञ: ।

―(मनु० ३/७०)

अर्थात् स्वाध्याय, सन्ध्या और योगाभ्यास ब्रह्मयज्ञ कहलाते हैं।


   ब्रह्मयज्ञ का अर्थ है―ईश्वरभक्ति और स्वाध्याय।

आगे कहा है―


   स्वाध्यायेनार्चयेतर्षिन्।

–(मनु० ३/८१)

स्वाध्याय से ऋषियों की पूजा करे अर्थात् ऋषियों की पूजा स्वाध्याय से होती है।


   मनु महाराज ने नित्य कर्मों और स्वाध्याय में किसी प्रकार की छुट्टी नहीं मानी है―


    नैत्यके नास्त्यनध्यायो ब्रह्मसत्रं हि तत्स्मृतम् ।

ब्रह्माहुतिहुतं पुण्यमनध्यायवषट्कृतम् ।।

―(मनु० २/१०६)

भावार्थ― नित्य कर्मों में कभी छुट्टी नहीं हुआ करती। यह तो निश्चय से ब्रह्म-सत्र ही होता है। यज्ञ, सन्ध्या, स्वाध्याय पुण्य के कारण होते हैं। अनध्याय तो निन्दित कर्मों में होना चाहिए।


चाणक्य जी ने भी स्वाध्याय के सन्दर्भ में कहा है―


श्लोकेन वा तदर्धेन पादेनैकाक्षरेण वा ।

अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययनकर्मभि: ।।

―(चा० नी० २/१३)

भावार्थ―मनुष्य को चाहिए कि प्रतिदिन एक श्लोक, आधा श्लोक, एक पाद अथवा एक अक्षर का स्वाध्याय करे और दान-अध्ययन करता हुआ ही दिन को सार्थक करे।


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 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


🌷 ओ३म् हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। योऽसावादित्ये पुरूष: सऽ सावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म ।।( यजुर्वेद ४०|१७ )


💐 अर्थ :- ( हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य मुखम् अपिहितम्।)


  ज्योतिर्मय चमकीले ढक्कन से सत्य स्वरूप परमात्मा का मुंह ढका हुआ है, अर्थात संसार की चमक-दमन, भोग - विलासों के अत्यन्त आकर्षण के कारण मनुष्य से भगवान ओझल हो गया है ।जिस दिन हमने इस संसार की चमक-दमन से, संसार के इन लुभावने भोग - विलासों से अपने को उभार लेंगे, अर्थात इस ढक्कन को उठा लेंगे, उसी समय हमें उस प्रकाश स्वरूप प्रभु का भान हो जायेगा और वही हमें अपने स्वरूप का साक्षात् कराता हुआ कहेगा कि 


( य: असौ आदित्ये पुरूष: )

  जो वह आदित्य में, सूर्यमंडल में व्यास हुआ पुरूष  -- पूर्ण परमेश्वर है।


 ( स: असौ अहम् ) वह पुरुष में ही ( ओ३म् खं ब्रह्म) ओ३म् नाम से विख्यात, सब जगत् का रक्षक, आकाश के समान सर्वत्र व्यापक और गुण - कर्म - स्वभाव की दृष्टि से सबसे महान  -- बड़ा हूँ ।


   संसार के रमणीय भौतिक ऐश्वर्य के आवरण से सत्य स्वरूप प्रभु का स्वरूप ढका हुआ है । जिस दिन मानव यम -- ( अहिंसा - सत्य  - अस्तेय आदि)  - नियम   ---  ( शौच  - सन्तोष  - तप - स्वाध्याय आदि  ) आसन  - प्राणायाम  - प्रत्याहार आदि से इस सांसारिक लुभावने आवरण को उतारकर परे फैंक देगा और श्रद्धा- भक्ति निष्ठापूर्वक धारणा  - ध्यान- समाधि द्वारा उसमें समाहित होकर उसका अनुभव प्राप्त करेंगा, उस दिन वह प्रभु भी उसके सम्मुख अपना पूर्ण परिचय  देकर कण - कण में सर्वत्र उसको अपना भान करता हुआ कहेगा " जो वह आदित्यमण्डल  - सूर्यमण्डल में परिपूर्ण हुआ उसको अपने नियम में चलाने वाला पुरुष है,  सो वह में ही  ' ओ३म् ' नाम से प्रसिद्ध, सबका रक्षक, आकाश के तुल्य सर्वत्र व्यापक, सबसे सब दृष्टि से ज्येष्ठ और श्रेष्ठ पुरूष परमेश्वर हूँ ।


   साधकों को चाहिए कि वे जप -  तप आदि द्वारा इन सांसारिक भोग  - विलासों से ऊपर उठे, इन बाहरी आकर्षणों से विरक्त होकर,  अद्वितीय,  सर्वत्र परिपूर्ण हुए, 'ओ३म्' नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध सबके रक्षक, कण- कण और क्षण- क्षण  में बसने वाले आकाशवत् सर्वत्र व्यापक महान् परमेश्वर का साक्षात करने का हार्दिक प्रयास करें ।


   क्योंकि यदि इस मानव चोले में आकर भी इस मुख्य लक्ष्य  - प्रभु के साक्षात करने से वञ्चित हो गये तो फिर यह महती विनष्टि होगी ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, भाद्रपद -मासे , शुक्ल    - पक्षे, - त्रयोदश्यां - तिथौ,  -  उत्तराषाढ़ नक्षत्रे, गुरूवासरे,  तदनुसार  ०८ सितम्बर, २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,


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