हैदराबाद के रज़ाकार क्रांतिकारी नहीं जिहादी थे -आर्यवीर पूर्वनाम मुहम्मद अली

 हैदराबाद के रज़ाकार क्रांतिकारी नहीं जिहादी थे 


-आर्यवीर पूर्वनाम मुहम्मद अली 


#HyderabadLiberationDay


हैदराबाद के ओवैसी ने कहा है कि हैदराबाद लिबरेशन डे बनाने का कोई औचित्य नहीं है। कुछ दिनों पहले यूटयूब पर एक वीडियो देखने में आया जिसमें एक मोमिन चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की हैदराबाद के रजाकार क्रांतिकारी थे और उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था। सत्य इसके ठीक विपरीत है। रजाकारों ने हैदराबाद में हिन्दुओं का 'क़त्लेआम' किया था। खेद है कि इतिहासकारों ने उनके अत्याचारों का कभी वर्णन ही नहीं किया। क्योंकि एक नीति के तहत पिछले 1200 वर्षों में हिन्दुओं पर जितने  विधर्मियो ने किये थे उन्हें चालाकी से छिपा दिया गया।  


वर्ष 1948 में सितंबर और अक्तूबर के महीनों में, ब्रितानी राज ख़त्म होने के कुछ ही समय बाद, हैदराबाद में हज़ारों लोग मारे गए थे। रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) थी जो निजाम ओसमान अली खान आसफ जाह VII के शासन को बनाए रखने तथा हैदराबाद को नव स्वतंत्र भारत में विलय का विरोध करने के लिए बनाई थी। यह सेना कासिम रिजवी द्वारा निर्मित की गई थी। रजाकारों ने यह भी कोशिश की कि निजाम अपनी रियासत को भारत के बजाय पाकिस्तान में मिला दे। रजाकारों का सम्बन्ध 'मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन' नामक राजनीतिक दल से था।


रजाकार हथियार लेकर गलियों में झुण्ड के झुण्ड बनाकर जिहादी नारे लगते हुए गश्त करते थे। उनका मकसद केवल एक ही था। हिन्दू प्रजा पर दहशत के रूप में टूट पड़ना। इन रजाकारों का नेतृत्व MIM का कासिम रिज़वी ही करता था।


इन रजाकारों ने अनेक हिन्दुओं को बड़ी निर्दयता से हत्या की थी। हज़ारों अबलाओं का बलात्कार किया था, हजारों हिन्दू बच्चों को पकड़ कर सुन्नत कर दिया था । यहाँ तक की इन लोगों ने जनसंख्या का संतुलन बिगाड़ने के लिए बाहर से लाकर मुसलमानों को बसाया था। आर्यसमाज के हैदराबाद के प्रसिद्ध नेता भाई श्यामलाल वकील की रजाकारों ने अमानवीय अत्याचार कर जहर द्वारा हत्या कर दी।


सन् 1948 की बात है। 13 सितंबर का दिन था। हैदराबाद में भारतीय सेना ने 5 दिवसीय अभियान "पोलो आपरेशन' के नाम से चला रखा था। भारतीय सेना 5 भागों में विभाजित होकर "नलदुर्ग पुल', "हाकिमपेट', "बेगमपेट', "हैदराबाद नगर', "तालमुड', कल्याणी', "होमनाबाद', "बीदर', "जहीराबाद', "राजसुर', सदारस्कोपेट आदि मोर्चों पर निजाम और रजाकारों के सरगना कासिम रिजवी की संयुक्त 2 लाख 52 हजार सशस्त्र सैनिकों से युद्ध कर रही थी। इनमें 2 लाख तो रजाकार ही थे। इन सेनाओं का कमाण्डर था मेजर जनरल सैयद अहमद। इसके अलावा आस्ट्रेलियाई हवाबाज सिटनी काटन, ब्रिटिश लेफ्टिनेन्ट टी.टी. मूर, मेजर जनरल एल. एंडÜज भी निजाम के पक्ष में मुस्लिम सेना की तरफ से युद्धरत थे। भारतीय सेना का नेतृत्व संभाले हुए थे लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह तथा मेजर जनरल चौधरी। इस अभियान के पूर्व रजाकार न सिर्फ हिन्दू जनता का कत्ल कर रहे थे वरन हिन्दू बहन-बेटियों का अपहरण करके उन पर अत्याचार कर रहे थे। रजाकार सरगना कासिम रिजवी ने इस कत्लेआम को "जिहाद' का नाम दिया था। "हथियार-हफ्ता' के दौरान उसने 31 मार्च, 1948 को अपने भाषण में कहा था, "मुसलमानो, जिहाद शुरू करो। सभी हिन्दुस्थानी मुस्लिम हमारे लिए "फिफ्थ कालमिस्ट' (पंचमांगियों) का काम करेंगे।' फिर अप्रैल में रिजवी ने कहा "वह दिन करीब है जब बंगाल की खाड़ी से उठने वाली लहरें निजाम की कदमबोसी करेंगी। अगर हिन्दुस्थान ने हैदराबाद पर हमला किया तो उसे यहां डेढ़ करोड़ हिन्दुओं की हड्डियां ही मिलेंगी'। रिजवी उन दिनों निजाम का खास सलाहकार बना हुआ था। इसी बीच 11 सितंबर 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना दुनिया से कूच कर गए।


वर्षा-काल था। अभी सूर्योदय नहीं हुआ था कि 13 सितंबर को भारतीय सेना ने नलदुर्ग पुल जीतकर उस पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश लेंफ्टिनेंट टी.टी. मूर उस पुल को उड़ाने के लिए भेजा गया था। उसे पकड़ लिया गया। इस युद्ध में दुश्मनों के 632 सैनिक मारे गये, 14 घायल हुए। उधर भारतीय सेना के 8 सैनिक शहीद हुए और 8 ही सैनिक घायल हुए। शत्रु सेना के 20 सैनिक कैद कर लिये गये। दूसरी ओर तुलजापुर के मोर्चे पर रजाकारों के साथ पठान सैनिक तथा 4 रजाकार स्त्रियां भी लड़ाई में भाग ले रही थीं। यह देखकर भारतीय सेना की मेवाड़ इन्फेन्टरी के राजपूत सैनिकों ने आगे बढ़कर उन चारों रजाकार स्त्रियों को एक ओर कर दिया। मेवाड़ी सैनिकों ने वहां रजाकारों और पठानों की तो लाशें गिरा दीं और तुलजापुर को जीत लिया, परन्तु रजाकारों की उन 4 स्त्रियों पर न तो हाथ उठाया, न उनका कोई अपमान किया और न हीं उन्हें गिरफ्तार किया। तब वे सशस्त्र रजाकार स्त्रियां स्वयं ही चकित-स्तंभित होती हुईं अपने पड़ाव पर लौट गईं। शत्रु की स्त्रियों पर हथियार न उठाना, यह हिन्दुत्व की ही विशेषता है जो हैदराबाद के युद्ध में भी व्यक्त हुई।


अंततः सभी मोर्चे जीत लिये गये। रजाकारों ने भारतीय एजेन्ट जनरल के.एम. मुंशी को कैद कर रखा था। वे मुक्त हुए और 18 सितंबर को सायं 4 बजे मेजर जनरल एंडयूज ने हैदराबादी फौजों का बिना शर्त समर्पण कर भारत में हैदराबाद के पूर्ण विलय को स्वीकार किया। निजाम का अली मंत्रिमंडल बरखास्त कर दिया गया। कासिम रिजवी और अली-मंत्रिमंडल के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिये गये। इस विलय का श्रेय भी सरदार पटेल को ही था।


सलंग्न चित्र में निज़ाम के खुनी जिहादी रजाकार सिपाहियों से अपनी इज्ज़त की रक्षा करने के लिए ट्रेनिंग लेती हैदराबाद की हिन्दू महिलाएं।

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