आध्यात्मिक कङ्गाल🌷

 🌷आध्यात्मिक कङ्गाल🌷*

कपिल वस्तु के विशाल नगर में महात्मा बुद्ध भिक्षा-पात्र हाथ में लिये हुए भिक्षा माँगने के लिए चक्कर लगा रहे थे।सारे नगर में यह समाचार अग्नि की भाँति फैल गया कि राजकुमार सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) जो इस नगर में सुन्दर और बहुमूल्य,सजे हुए रथों में सवार होकर निकला करते थे,अब घर-घर जाकर भिक्षा माँग रहा है।उसके हाथ में मिट्टी का भिक्षापात्र है।बुद्ध का पिता यह समाचार सुनते ही बुद्ध के पास पहुँचा।उसे ऐसा करने से रोकने के लिए वह उसे अपने महल में ले गया।

महल में जाते ही बुद्ध ने कहा-"महाराज! यह एक प्रथा है कि जब किसी को कोई गुप्त कोश मिलता है-छिपा हुआ धन मिलता है,तब वह उसमें से सबसे बहुमूल्य रत्न अपने पिता के सामने उपस्थित करता है।आज्ञा दो कि मैं अपने कोश को आपके समक्ष खोल दूँ,जो धर्म का कोश है और ये जवाहरात आप मुझसे स्वीकार कर लें"तब बुद्ध के पिता ने इसे स्वीकार कर लिया।बुद्ध ने अपने पिता को गुप्त कोश प्रदान किया।इतिहास बताता है कि राजा ने इसे स्वीकार किया।सारा वंश का वंश बुद्ध का शिष्य बन गया और उसके मत को स्वीकार कर लिया।

परन्तु कितनी उलटी रीति है,कितना उल्टा चलन है कि आज आर्य-पिता अपने पुत्र को आर्यधर्म का-वैदिक धर्म का कोश नहीं देता।हम देखते हैं कि आर्यपिताओं के पुत्र आर्यधर्म के कोश से रिक्त होते हैं,जिसके कारण आध्यात्मिक कङ्गाली उन्हें अन्तिम सीमा तक सताती है और उनके पतन का कारण बनती है।

बुद्ध ने अपने पिता को धार्मिक कोश देकर उन्हें मालामाल कर दिया,परन्तु ! आज के आर्य विनाश लाने वाली सम्पत्ति तो बच्चों को उत्तराधिकार में दे देते हैं,परन्तु आर्यधर्म की सम्पत्ति उन्हें नहीं देते।क्या पता यह सम्पत्ति स्वयं उनके पास नहीं है अथवा वे जानबूझकर अपने बच्चों को इस सम्पत्ति से वञ्चित रखते हैं।यह दृश्य अत्यन्त ह्रदयवेधक है।आर्य माता-पिता आज इस पर विचार करें और अपने बच्चों को आर्यधर्म के कोश से वञ्चित करके इन्हें आध्यात्मिक कङ्गाल न बनाएँ।सांसारिक निर्धनता निःसन्देह कष्ट देती है और मनुष्य को गिरा देती है ,परन्तु आध्यात्मिक कङ्गाली ऐसा गिराती है कि फिर मनुष्य को कहीं का नहीं रखती।सांसारिक कङ्गाली भूखों मारती है और आध्यात्मिक कङ्गाली मानवीय शक्ल को दूर करके पाशविक और दानवी शक्ल ले-आती है।इस रहस्य को समझो और अपनी सन्तान को आध्यात्मिक कङ्गाल मत बनाओ।

[ साभार: "महात्मा आनन्द स्वामी", अमृतपान पुस्तक से ]

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