आज का वेद मंत्र

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    २७ सितम्बर २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - -  मंगलवार



  🌒 तिथि - - -  द्वितीया ( २६:३० तक तत्पश्चात तृतीया )



🪐 नक्षत्र -  -  हस्त ( १८:१० तक तत्पश्चात स्वाति)


पक्ष  - -  शुक्ल  


 मास  - -   आश्विन 


ऋतु  - -  शरद 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः  ६:१६ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १८:०८ पर 


🌒 चन्द्रोदय  - -  ६:२०  पर 


🌒चन्द्रास्त  - -  १९:०६  पर 


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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🚩‼️ओ३म्‼️🚩


🔥यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति।

स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः।।

अथर्ववेद १०\८\१

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 🌷जो भूत, भविष्य और सब में व्यापक है, जो दिव्यलोक का भी अधिष्ठाता है, उस परमेश्वर को नमस्कार है। वही हम सबके लिए प्रार्थनीय और पूजनीय हैं।


  वेद में ईश्वर के बारे में गहराई पूर्वक बहुत कुछ बताया गया है। वेदों के अनुसार ईश्वर और मानव के बीच किसी बिचौलिए एजेंट की आवश्यकता नहीं है। जैसे कि अन्य धर्मो में पैगम्बर, गुरु या धर्मगुरु होते हैं।


   वह ईश्वर ही सम्पूर्ण सृष्टि का रचयिता है। वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एक सा समाया हुआ है। उसकी सत्ता सृष्टि के कण कण में व्याप्त है। जिसे वेद में नेति नेति कह के पुकारा गया है। यहां नेति नेति का अर्थ है न इति न इति अर्थात उसका कोई आदि नही है कोई अंत नही है कोई मध्य नही है। वह अनन्त है, अखण्ड है, वह समस्त सृष्टि में अंदर और बाहर हर तरफ ओत प्रोत है।


    उस ईश्वर के सम्बंध मे जो भी काल्पनिक बातें कही जाती हैं हम बस यूं ही उसे रटने लगते हैं मानने लगते हैं। हम जरा भी यह समझने की कोशिश नही करते कि उस ईश्वर के सम्बंध में जो भी कहा जा रहा है क्या वो सत्य भी है। तर्क संगत है। क्या वह अवतार ले सकता है। क्या वह कहीं और से इस धरती पर उतर सकता है? क्या हमारे हृदय में ईश्वर नही है ?  वास्तव में वह हमारे हृदय में मौजूद है तो हम उससे प्रार्थना करने या उससे कुछ मांगने के लिए कहीं और दूर स्थित किसी काल्पनिक मूर्ति के सामने ही क्यों मांगते हैं। 

किसी शायर ने क्या खूब कहा है 


जिधर देखूं उधर तेरा जुत्सजूँ है। हर शय में तेरा जलवा हूबहू है।।


   अर्थात ईश्वर की तरह ईश्वर का जलवा, (ईश्वर की सत्ता) सृष्टि के कण कण में व्याप्त है।  हमें जरूरत है उसे हृदय की गहराई से जानने की और उसके आनन्द को आत्मसात करने की।


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 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


   🌷वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् ।

देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ।। यजुर्वेद ०१\०३


   💐  अर्थ:-  जो मनुष्य पूर्वोक्त यज्ञ का सेवन करके पवित्र होते हैं उन्हीं को जगदीश्वर बहुत सा ज्ञान देकर अनेक प्रकार के सुख देता है,  ऐसी क्रियाओं के करने वाले वा परोपकारी होते हैं, वे ही सुख को प्राप्त होते हैं , आलस्य करने वाले कभी नहीं । 


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, आश्विन -मासे , शुक्ल - पक्षे, - द्वितीयायां  तिथौ,  - हस्त  नक्षत्रे, मंगलवासरे तदनुसार  २७ सितम्बर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,  रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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