मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम◼️ ✍🏻 लेखक - महर्षि वाल्मीकि (वाल्मी

 ◼️मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम◼️

✍🏻 लेखक - महर्षि वाल्मीकि (वाल्मीकि रामायण)

 प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’

🔥तपः स्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम्। 

नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुंगवम्॥१॥ 

तप और स्वाध्याय में निरत, वक्ताओं में चतुर एवं मुनियों में श्रेष्ठ नारदजी से तपस्वी वाल्मीकि मुनि ने पूछा-

🔥कोन्वस्मिन्साम्प्रतं लोके गुणवान्कश्च वीर्यवान्। 

धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः॥२॥ 

भगवन्! इस समय इस संसार में गुणवान्, शूरवीर, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़-प्रतिज्ञ कौन है ? 

🔥चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः। 

विद्वान्कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः ॥३॥ 

सदाचार से युक्त, सब प्राणियों का हित करने वाला, विद्वान्, सामर्थ्यवान् और प्रिय-दर्शन कौन है ? 

🔥आत्मवान्को जितक्रोधो द्युतिमान्कोऽनसूयकः। 

कस्य बिभ्यति देवाश्च जातरोषस्य संयुगे॥४॥ 

धैर्ययुक्त, काम-क्रोधादि शत्रुओं का विजेता, कान्तियुक्त, ईर्ष्या तथा निन्दा न करनेवाला तथा युद्ध में क्रुद्ध होने पर देवताओं को भी भयभीत करनेवाला कौन है? 

🔥एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे। 

महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवं विधं नरम्॥५॥ 

हे महर्षे ! ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति के सम्बन्ध में जानने की मुझे उत्कट अभिलाषा है और आप इस प्रकार के मनुष्य को जानने में समर्थ हैं। 

🔥श्रुत्वा चैतत् त्रिलोकज्ञो वाल्मीके रदो वचः। 

श्रूयतामिति चामन्त्र्य प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत्॥६॥ 

यह सुन, तीनों लोको का वृत्तान्त जाननेवाले देवर्षि नारद प्रसन्न होकर कहने लगे - 

🔥बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः। 

मुने वक्ष्याम्यहं बुद्ध्वा तैर्युक्तः श्रूयतां नरः ॥७॥

हे मुने! आपने जिन बहुत-से तथा दुर्लभ गुणों का वर्णन किया है, उनसे युक्त मनुष्य के सम्बन्ध में सुनिए-मैं सोच-विचार के पश्चात् कहता हूँ।। 

🔥इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः। 

नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान्धृतिमान्वशी॥८॥ 

इक्ष्वाकु-वंश में उत्पन्न, राम नाम से लोगों में विख्यात, श्रीरामचन्द्र नियतस्वभाव (मन को वश में रखनेवाले) अतिबलवान्, तेजस्वी, धैर्यवान् और जितेन्द्रिय हैं। 

🔥बुद्धिमान्नीतिमान्वाग्मी श्रीमाञ्छत्रुनिबर्हणः। 

विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवो महाहनुः॥९॥ 

🔥महोरस्को महेष्वासो गूढजत्रुररिन्दमः। 

आजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः॥१०॥ 

वे श्रीराम बुद्धिमान्, नीतिज्ञ, मधुरभाषी, श्रीमान्, शत्रुनाशक, विशाल कन्धोंवाले, गोल तथा मोटी भुजाओंवाले, शंख के समान गर्दनवाले, बड़ी ठोड़ीवाले और बड़े भारी धनुष को धारण करनेवाले हैं। उनके गर्दन की हड्डियाँ मांस से छिपी हुई हैं । वे शत्रु का दमन करनेवाले हैं। उनकी भुजाएँ घुटनों तक लटकती हैं। उनका सिर सुन्दर एवं सुडौल है, माथा चौड़ा है। वे अच्छे विक्रमशाली हैं। 

🔥समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्णः प्रतापवान्। 

पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवाञ्छुभलक्षणः ॥११॥

उनके अङ्गों का विन्यास सम है। वे न बहुत छोटे हैं, न बहुत बड़े। उनके शरीर का रंग चिकना एवं सुन्दर है। वे बड़े प्रतापी हैं। उनकी छाती उभरी हुई है और नेत्र विशाल हैं। उनके सब अङ्ग-प्रत्यङ्ग सुन्दर हैं और वे शुभ लक्षणों से सम्पन्न हैं। 

🔥धर्मज्ञः सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः। 

यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यः समाधिमान्॥१२॥ 

वे धर्मज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ, परोपकारी, कीर्तियुक्त, ज्ञाननिष्ठ, पवित्र, जितेन्द्रिय और समाधि लगानेवाले। 

🔥प्रजापतिसमः श्रीमान्धाता रिपुनिषूदनः। 

रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता ॥१३॥ 

🔥रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता। 

वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः॥ १४॥ 

वे प्रजापति ब्रह्मा के समान प्रजा के रक्षक, अतिशोभावान् और सबके पोषक हैं । वे शत्रुओं का नाश करनेवाले हैं। वे प्राणिमात्र के रक्षक और धर्म के प्रवर्तक हैं। वे अपने प्रजा-पालनरूप धर्म के रक्षक, स्वजनों के पालक, वेद और वेदाङ्गों के मर्मज्ञ तथा धनुर्वेद में निष्णात हैं (शास्त्र और शस्त्र दोनों में प्रवीण हैं)। 

🔥सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः स्मृतिमान्प्रतिभानवान्। 

सर्वलोकप्रियः साधुरदीनात्मा विचक्षणः ॥१५॥ 

वे सब शास्त्रों के तत्त्वों को भली-भाँति जाननेवाले, उत्तम स्मरणशक्ति से युक्त, प्रतिभा-शाली (सूझ -बूझवाले), सर्वप्रिय, सज्जन, कभी दीनता न दिखाने वाले और लौकिक तथा अलौकिक क्रियाओं में कुशल हैं। 

🔥सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः। 

आर्य: सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शनः ॥१६॥ 

जिस प्रकार नदियाँ समुद्र में पहुँचती हैं उसी प्रकार उनके पास सदा सज्जनों का समागम लगा रहता है। वे आर्य हैं, वे समदृष्टि हैं और सदा प्रियदर्शन हैं।

🔥स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः। 

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ॥१७॥ 

🔥विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत्प्रियदर्शनः। 

कालाग्निसदृशः क्रोधे क्षमया पृथिवीसमः। 

धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः॥ १८॥ 

वे सब गुणों से युक्त और कौसल्या के आनन्द को बढ़ानेवाले हैं। वे गम्भीरता में समुद्र के समान, धैर्य में हिमालय के तुल्य, पराक्रम में विष्णु के सदृश, प्रियदर्शन में चन्द्रमा-जैसे, क्षमा में पृथिवी की भाँति और क्रोध में कालाग्नि के समान हैं। वे दान में कुबेर के समान और सत्य-भाषण में मानो दूसरे धर्म हैं। 

✍🏻 लेखक - महर्षि वाल्मीकि (वाल्मीकि रामायण)

प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’

॥ओ३म्॥

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