आज का वेद मंत्र

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    २२  सितम्बर २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - -  गुरुवार 



  🌘 तिथि - - -  द्वादशी (२५:२०+ तक तत्पश्चात त्रयोदशी  )



🪐 नक्षत्र -  -  आश्लेषा ( पूरी रात्रि)


पक्ष  - -  कृष्ण 


 मास  - -   आश्विन 


ऋतु  - -  शरद 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः  ६:१३ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १८:१४ पर 


🌘 चन्द्रोदय  - -  २७:३४ +  पर 


🌘चन्द्रास्त  - -  १६:१६   पर 


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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 🔥गायत्री मंत्र का अर्थ सहित जाप!!!

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  🌷ओ३म् भूर्भुवः स्वः । तत्सवितुर्वरेण्यं  भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात्॥

   

    हें सर्वरक्षक प्रभो ! आप नाना प्रकार से , अनन्त प्रकारों से सतत् मेरी रक्षा कर रहे हो। मैं आपकी सुरक्षा में सतत् सुरक्षित हूँ। कृपा करके मुझे और सुरक्षा प्रदान करो प्रभो! और सुरक्षा प्रदान करो। (भू ) आप भूः स्वरुप हो , प्राण दाता हो । मैं आपके कारण प्राणों को धारण कर रहा हूँ। आप प्राण से भी प्रिय हो। मैं आपको सर्वप्रिय स्वीकार करता हूँ  , आप भूः स्वरूप हो । ( भुवः ) आप समस्त दुःखो से रहित हो , अपने भक्तों के सम्पूर्ण दुःखों को दूर करते हो । करुणा करके मुझ भक्त के सम्पूर्ण दुःखों को दूर कीजिये । आप भुवः स्वरूप हो। ( स्वः ) आप आनन्द से परिपूर्ण हो । अपने भक्तों को आनन्द से परिपूर्ण करते हो दया कर के मुझे अपने भक्त को भी अपने आनन्द से आनन्दित करो , आनन्दित करो। ( सवितुः ) आप सम्पूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाले सृष्टिकर्ता हो , सर्वोत्पादक हो , जनक हो। सविता स्वरूप हो। ( भर्गः ) आप शुद्ध , निर्मल , पवित्र हो । आप में न काम है , न क्रोध है , न लोभ है , न मोह है , न ईर्ष्या है , न अहंकार है। आप समस्त मलिनताओं से रहित हों । आप शुद्ध , पवित्र , निर्मल भर्ग: स्वरूप हों। (देवस्य ) आप दिव्य गुणों से युक्त हो । आपमें अनन्त गुण , कर्म स्वभाव हैं। अनन्त ज्ञान , अनन्त बल , अनन्त सामर्थ्य , अनन्त दया ,अनन्त करूणा ,अनन्त कृपा । आप उत्तम - उत्तम गुण -कर्म - स्वभावों से परिपूर्ण हो । दिव्य स्वरूप हो । दिव्य गुणों से युक्त देव स्वरूप हो।


    तत् - ऐसे आपके भूः स्वरूप को , तत् ऐसे आपके स्वः स्वरूप को ,तत् एसे आपके सविता स्वरुप को, तत् ऐसे आपके भर्ग: स्वरूप को , तत् ऐसे आपके देव स्वरूप को , (वरेण्यम् ) मैं वरण करता हूँ , प्रभो! आप वरणीय हो , अपनाने योग्य हो , स्वीकार करने योग्य हो। ऐसे आपके वरणीय प्राण - प्रदाता स्वरूप को , आपके वरणीय दुःख विनाशक स्वरूप को आपके वरणीय आनन्द स्वरूप को आपके वरणीय सविता स्वरूप को, आपके वरणीय शुद्ध , निर्मल , पवित्र भर्गः स्वरूप को , आपके वरणीय दिव्य गुणों से युक्त देव स्वरूप को ( धीमहि ) मैं अपनी आत्मा में धारण कर रहा हूँ। ( यः) जो आप प्रभु  (नः)हमारी  ( धियः ) बुद्धियों को उत्तम गुण - कर्म - स्वभावों  में (प्रचोदयात्) प्रवृत्त करो , प्रभो! प्रेरित करो ।


  हे जगदीश्वर ! आप मुझे देख , सुन , जान रहे हो। आपकी उपस्थिति में उपस्थित होकर ,आपका ध्यान कर रहा हूँ।


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🚩📚आज का वेद मंत्र 📚🚩


🌷ओ३म् को व: स्तोमं यं जुषोषथ विश्वे देवासो मनुषो यतिष्ठन। को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करधो न: पर्षदत्यंह:स्वस्तये।(१०|६३|६ ) 


💐अर्थ  :- हे सब दिव्यगुण युक्त विद्वानों! तुम जितने भी हो, उन सबकी स्तुति-उपासना जिसका तुम सेवन करते हो, प्रजापति परमेश्वर सिद्ध करता रहता है। वहीं सुख स्वरूप परमात्मा तुम अनेक जन्म धारण करने वालों के हिंसा रहित यज्ञ को पूर्ण करता है, जो यज्ञ पाप को हटाकर हमारे लिए आनन्द को प्राप्त करता है। 


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने शरद -ऋतौ, आश्विन -मासे ,कृष्ण  - पक्षे, -  द्वादश्यां  तिथौ,  - आश्लेषा नक्षत्रे, गुरूवासरे, तदनुसार  २२ सितम्बर , २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,  रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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