डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)

 डॉ. सत्यप्रकाश (स्वामी  सत्यप्रकाश सरस्वती)

(1905-1995)  


(24 अगस्त जन्मदिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित )


आपका अध्ययन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुआ। आपने रसायन शास्त्र विभाग से  Physico chemical studies of inorganic jellies  विषय पर डी.एससी. की उपाधि 1932ई.में प्राप्त की। 1930 ई. से ही रसायन शास्त्र विभाग में अध्यापन आरम्भ किया। 1962 ई. में विभागाध्यक्ष तथा 1967 ई. में सेवानिवृत्त हुये। आपके निर्देशन में 22 विद्यार्थियों ने डी.फिल. की उपाधि प्राप्त की।आपके 150से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुये। वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा,  Founder of Sciences in Ancient India, A Critical study of Brahmagupta and his works, The Bakhshali manuscript( भारतीय अंकगणित की उपलब्ध प्राचीनतम पाण्डुलिपि का गणितीय प्रक्रियाओं के साथ सम्पादन)   Coins in Ancient India  (मुद्राशास्त्र पर लिखा गया शोधपूर्ण ग्रन्थ)  Advance Chemistry of Rare element,  रासायनिक शिल्प की एकक संक्रियाएं आदि उनके कुछ प्रमुख ग्रन्थ है। जितने विविध विषयों पर स्वामी सत्यप्रकाश जी का लेखन है शायद ही विश्व के किसी व्यक्ति ने इतना लिखा हो। वेद, शुल्बसूत्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्,  रसायन विज्ञान,भौतिक विज्ञान, अग्निहोत्र, अध्यात्म, धर्म,  दर्शन, योग, आर्यसमाज, स्वामी दयानन्द, नवजागरण आदि विविध विषयों पर सैकड़ों ग्रन्थ और लेख स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा लिखे गये। चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद(in 23vol), शुल्बसूत्रों का सम्पादन,  The critical study of philosophy of Dayanand  और मानक हिन्दी अंग्रेजी कोश का सम्पादन उनके द्वारा किये गये उल्लेखनीय कार्य हैं। आप 1942ई. में स्वतन्त्रता आन्दोलन में जेल भी गये। शतपथ ब्राह्मण पर आपके द्वारा  1700पृष्ठों में  भूमिका3 लिखी गई जो ग्रन्थ को समग्रता से समझने में बहुत सहायक है। आपने  17 से अधिक देशों की यात्रायें की।विज्ञान परिषद प्रयाग से हिन्दी मासिक विज्ञान पत्रिका का सम्पादन १०वर्षों तक किया। विश्वविद्यालय में रहते हुये डॉ. सत्यप्रकाश का लेखन मुख्यत: विज्ञान के क्षेत्र में रहा और संन्यास के बाद का लेखन वैदिक साहित्य आर्य समाज और स्वामी दयानन्द विषयक। स्वामी सत्यप्रकाश जी वैज्ञानिक विचारक चिन्तक संन्यासी थे। वे अपने विचारों को लेखों और भाषणों के माध्यम से व्यक्त भी करते थे। उनके विचार कई बार भिन्नता लिये होते और असहमति का कारण बन जाते परन्तु उस विषय में उनका चिन्तन जारी रहता था। स्वामी जी की शताधिक रेडियो वार्तायें तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख हैं जिनका संकलन और प्रकाशन अभी शेष है।स्वामी सत्यप्रकाश जी द्वारा अंग्रेजी में लिखे ग्रन्थों का हिन्दी में अनुवाद भी हिन्दी भाषी पाठकों के लिये अत्यन्त उपयोगी होगा। आपका देहान्त 1995 ई. में अपने प्रिय शिष्य पं. दीनानाथ शास्त्री जी के आवास में अमेठी में हुआ। अन्त्येष्टि आर्य समाज विमान पुरी एच ए एल कोरवा अमेठी के प्रांगण में हुई। अन्त में रेणापुरकर जी के एक श्लोक से अपनी बात को विराम दूंगा


वैज्ञानिकोsपि निगमागमपारदृश्वा 

साहित्यकाव्यकमनीयकलारसज्ञ:।

निष्कामनिर्ममनिरीहयतिप्रकाण्ड:

सत्यप्रकाश इति नाम गत:सुधन्य:


-पं. दीनानाथ शास्त्री

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