आज का वेद मन्त्र
🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - - १२ अगस्त २०२२ ईस्वी
दिन - -शुक्रवार
🌕 तिथि - - - पूर्णिमा ( ७:०५ तक तत्पश्चात प्रतिपदा २७:४६ से द्वितीया )
🪐 नक्षत्र - - धनिष्ठा ( २५:३६ तक तत्पश्चात शतभिषा )
पक्ष - - शुक्ल
मास - - श्रावण
ऋतु - - वर्षा
,
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ५:४८ पर
🌞 सूर्यास्त - - १९:३ पर
🌕 चन्द्रोदय - - १९:४० पर
🌕चन्द्रास्त - - चन्द्रास्त नही होगा
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२३
कलयुगाब्द - - ५१२३
विक्रम संवत् - - २०७९
शक संवत् - - १९४४
दयानंदाब्द - - १९८
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‼️ओ३म्‼️🚩
🔥श्रावणी पर्व की महत्ता!
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श्रावणी पर्व का हमारे जीवन में अधिक महत्व है। श्रावणी सुद पूनम के दिन उपनयन परिवर्तन करने का यह शुभ पर्व है । पुरातन काल में इस दिन से चार मास तक वेद का विशेष पठन पाठन होता था और पौष मास में इसका समापन होता था । श्रावण मास को हमारे जीवन का अभिन्न अंग समझा जाता था । कालांतर मे आलस प्रमाद करने से, स्वार्थ वृत्ति तथा भोगवादी बन जाने से धीरे धीरे यह श्रेष्ठ परंपरा को हम भूल गये । इस पर्व को "ऋषि तर्पण" करने का स्वर्णिम अवसर माना जाता था । किंतु आज यह मूल भावना बिल्कुल लुप्त हो गई है ।
आर्यसमाज संस्था में भी आज चार मास के स्थान पर केवल सात दिन "वेद सप्ताह" अथवा तीन दिन मनाकर संतुष्ट हो जाते है । एक दिन का भी हम उत्सव मनाने लग गए है । सामान्य जनसमाज़ यह पर्व 'रक्षा बंधन' के नाम से मनाते है ।
श्रावणी मास में वेद तथा उसके अनुकूल आर्ष ग्रंथो को श्रवण जाता है इसलिए "श्रावण" मास कहा जाता है । इस काल में वर्षा के कारण सारे मनुष्य को अधिक से अधिक समय अपने घर पर ही व्यतीत करना पड़ता है। ऐसे अवसर को हमारे ऋषि मुनियों ने वेदों के स्वाध्याय, चिंतन, मनन एवं आचरण के लिए अनुकूल माना है । वेदों के स्वाध्याय एवं आचरण से मनुष्य अपनी आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की उन्नति कर सकता है ।
श्रावण में वर्षा के कारण कीट,पतंग से लेकर वायरस, बैक्टीरिया सभी का प्रकोप बढ़ जाता है। इससे अनेक बीमारियां फैलती है। इसलिए "वेद परायण यज्ञ" को इसमें सम्मिलित किया जाता है । इससे पर्यावरण की भी रक्षा होती हैं।
श्रावण मास में वर्षा के कारण संन्यासी, वानप्रस्थी आदि प्रचार के लिए घूम नहीं सकते, अतः वे नगर के समीप आकर निवास करते थे। गृहस्थ जन अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए महात्माओं का सत्संग करने के लिए उनके पास जाते थे और अपनी सभी समस्याओं का समाधान करते थे । महात्मा लोग धर्मानुसार जीवन यापन करते हुए वैदिक ज्ञान - विज्ञान, योग - यज्ञ के रहस्यों का उद्घाटन जिज्ञासुओं के समक्ष करते थे । अपने अनुभव तथा ज्ञान समृद्धि से वे गृहस्थियों का मार्गदर्शन करते थे और दिशा-निर्देश एवं धर्म भावना को समृद्ध करते थे।
वैदिक संस्कृति की उच्च भावना का विस्मरण करके आज हम रक्षाबंधन पर्व मना रहै है । आज रक्षा बंधन पर्व रूढ़िगत हो गया है । भाई बहन तक सीमित रह गया है ।
जीवन की रक्षा सभी वर्ग के सभी मनुष्य चाहते है । बहन - भाई उपरांत, पिता - पुत्र, गुरु - शिष्य, मित्र - मित्र, सांस - बहू, दादा - पोता सभी संकल्पित होकर रक्षा सूत्र बांधकर परस्पर रक्षा करने का व्रत लेना चाहिए ।
यह पर्व यज्ञोपवीत ( जनेऊ ) परिवर्तन करने का तथा वेदारंभ करने का पवित्र पर्व है । उपनयन के तीन सूत्र हमे बहुत बड़ा गंभीर संदेश दे रहे है, उस पर हमे चिंतन करना चाहिए ।
परमात्मा ने हमे गर्भकाल से ही आंतर जनोई पहनाकर भेजा है । गर्भस्थ शिशु मां की नाभि से जुड़कर रस, अन्न और प्राण लेकर पुष्ट होता रहता है। यह तीन सूत्र ही परमात्मा प्रदत्त जीवन रक्षक धागे है ।
सत्, रज और तम गुणों की साम्यावस्था को प्रकृति कहते है । कार्य जगत = संसार का मूल आधार यह तीन सूत्र ही है । इसी तीन तत्व से भूतात्मक यह संसार तथा अनेक प्रकार की योनियां बनी है । उसी तीन तत्वों से विविध प्रकार के उत्तम पदार्थ हमे प्राप्त होते रहते है ।
इंद्रिय का प्रतिनिधि चक्षु है, जिससे सारा व्यवहार सरल हो जाता है । उनका संबंध सूर्य से है । ये सूर्य आदि दीप्यमान लोक सत, रज, तम रूपी सूत्र से सृजित है ।
आत्मा का प्रतिनिधि ज्ञान है, जिससे हमे सुख प्राप्त होता है। उनका संबंध वेद से है, परमात्मा से है।
ज्ञान रूपी वेद के सूत्र तीन है - ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद । अथर्ववेद तो उन तीनों की रक्षा, वर्धन आदि विषयक है ।
मनुष्य की उन्नति मुख्य तीन सोपान से ही होती है - ज्ञान, कर्म और उपासना । ये क्रमानुसार तीनों वेद से संबंधित हैं ।
तीन अनादि तत्व अर्थात् प्रकृति, जीवात्मा और परमात्मा की सत्ता सदा बनी रहती है । उपनयन के तीन धागे ही है । ये तीन सूत्र संदेश दे रहे है - हे मनुष्यो ! ये तीन तत्व के यथार्थ दर्शन से दुखरूपी बंधन से मुक्त हो जाओ ।
परमात्मा का मुख्य नाम ओ३म् है, जो अकार, उकार और मकार से बना है । ये तीन शब्द के रहस्य को जानकर मनुष्य परमात्मा में विशेष प्रीति उत्पन्न करके आनंद और प्रसन्नता को जीवन में भर सकता है ।
महा व्याहुती भी तीन ही है - भू:, भुव:, स्व: । भू: से सत्ता का होना, भुुव: से दुःख नाशक और स्व: से सुख प्रदाता परमात्मा है, इस प्रकार का धातु परक बोध हमे होता है ।
मनुष्य मुख्य तीन प्रकार के होते है - देव, मनुष्य और दानव । जनोइ के तीन धागे के ऊपर एक ब्रहमगांठ होती है । यह संदेश देते है की तीनो प्रकार के मनुष्य ब्रह्म से जुड़े रहेंगे तो उनका पवित्रीकरण होता रहेगा, सम्मानित होते रहेंगे ।
पृथ्वी लोक, अंतरिक्ष लोक और द्यू लोक ये तीन सूत्र से ब्रह्मांड बना है ।
परमात्मा सृष्टि का कर्ता, धर्ता और हर्ता है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश देवता इसी कार्य के प्रतिनिधि है, जो तीन सूत्र की ओर इंगित करते है ।
पान, अपान और व्यान यही तो शरीर और ब्रह्माण्ड के तीन आधार स्तंभ है ।
जीवन की तीन अवस्था तीन सूत्र रूप में सभी को व्यतीत करनी ही पड़ती है - कुमार अवस्था, युवान अवस्था और जरा अवस्था ।
शरीर तभी स्वस्थ बना रहेगा जब वात, पित्त और कफ सम अवस्था में हो ।
हम तीन शरीर से बंधे हुए है - स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर । ये तीन पाश से हम सदा घिरे रहते है । वरुण परमात्मा का जीवन में वरण कर ले तो इस पाश से छूटकर मोक्ष अवस्था में अवस्थित हो सकते है ।
मुख्य तीन आश्रम है - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ । संन्यास आश्रम तो अंतिम फल है, योग्यता है । हमे संन्यास आश्रम को ग्रहण करना है, इस प्रकार का लक्ष्य बनाने से तीनो आश्रम में हम ठीक पुरुषार्थ करते हुए संयम पूर्वक व्यवहार करेंगे और उन्नत होते रहेंगे ।
हम पर तीन ऋण है, जो हमे उतारना अनिवार्य है, वह है - ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण । श्रावण मास के चार मास में हम स्वाध्याय, सत्संग, साधना, सेवा, समाधान का पंचामृत ग्रहण करके तीनो ऋण से उऋण हो सकते है ।
हमारा अन्तःकरण तीन धारा के रूप में है - मन, बुद्धि और अहंकार । तीनो सूत्र का पवित्रीकरण करने से परमात्मा का ऐश्वर्य संपादित किया जा सकता है ।
यदि हम तीन एषणा से मुक्त हो गए, तो हमने संन्यासी की योग्यता प्राप्त कर ली ऐसा कह सकते है, वे है - पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा ।
जीवन के स्वर्णिम सूत्र रूप तीन महान देवता हमारे गृह में है, हमारे पास है, जिससे हम महान बन सकते है वे है - माता, पिता और गुरु ।
मनुष्य को तीन प्रकार के शत्रु से लड़ना पड़ता है - अन्याय, अभाव और अविद्या ।
उपनयन के ये तीन धागे हमे क्या संदेश दे रहे है, उन पर गंभीरता से चिंतन करे और उन ज्ञान को जीवन में चरितार्थ करने का प्रयास करे तो हमारा चातुर्मास सार्थक हो जाएगा और हम और अधिक सुख, शांति, समृद्धि और उन्नति की ओर गतिमान होंगे ।
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🕉️🚩आज का वेद मन्त्र, 🕉️🚩
🌷ओ३म् अवोचाम कवये मेध्याय वचो वन्दारु वृषभाय वृष्णे
गविष्ठिरो नमसा स्तोममग्नौ दिवीव रुक्ममुरुव्यञ्चमश्रेत्॥ यजुर्वेद १५-२५॥
💐 अर्थ :- हमें उस ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए जो बल और शक्ति का स्वामी है। जो अपने बच्चों पर सदैव आनंद की वर्षा करने वाला है। ऐसा कृपालु ईश्वर सम्मान और उपासना के लायक है। एक मनुष्य को वेदों से विद्या प्राप्त कर और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर उस ईश्वर की आराधना करनी चाहिए जिसका प्रकाश समस्त सृष्टि में व्याप्त है।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे, रवि- दक्षिणयाने वर्षा -ऋतौ, श्रावण -मासे , शुक्ल - पक्षे, - पूर्णीयायां - तिथौ, - धनिष्ठा नक्षत्रे, शुक्रवासरे , तदनुसार १२ अगस्त, २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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