गांधीजी के पहले भी बहुत से स्वतंत्रता सेनानी थे, फिर गांधीजी अकेले हीरो कैसे बन गए?

 गांधीजी के पहले भी बहुत से स्वतंत्रता सेनानी थे, फिर गांधीजी अकेले हीरो कैसे बन गए? 🤔🤔कहीं इसीलिए तो कवि ने नहीं लिखा था कि साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल!


17 अगस्त 1909 इंग्लैंड की पेंटोविल्ले जेल के बाहर वीर सावरकर एक 25 वर्ष के नवयुवक के शव को लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे, फांसी पर लटकाने के बाद वह शव ब्रिटिश सरकार ने किसी को नही सौंपा था। ये शव था महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा का..


एक धनी और सम्पन्न परिवार का वह बेटा जिसे उसके ब्रिटिश सरकार मे कार्यरत सिविल सर्जन पिता ने इंग्लैंड पढ़ने भेजा था। पर क्रांति की ज्वाला ऐसी थी की वीर सावरकर के साथ मिल कर मदन लाल जी ने 1901 मे भारत पर अत्याचार कर के इंग्लैंड लौटे एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर कर्ज़न वाईली को सबक सीखने की सोची।


1 जुलाई 1909 को मदन लाल ढींगरा ने इंपेरियाल इंस्टीट्यूट इंग्लैंड मे हो रही एक सभा मे कर्ज़न वाईली को गोलियो से भून दिया, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हे गिरफ्तार कर के 17 अगस्त 1909 को फांसी दे दी।


मदन लाल में हौंसला और निडरता इतनी थी की जब अदालत मे इन पर कारवाई हुई तो इन्होने साफ कह दिया की ब्रिटिश सरकार को कोई हक़ नही है मुझ पर मुकदमा चलाने का...

जो ब्रिटिश सरकार भारत मे लाखो बेगुनाह देशभक्तों को मार रही है और हर साल 10 करोड़ पाउंड भारत से इंग्लैंड ला रही है,उस सरकार के कानून को वो कुछ नही मानते, इसलिए इस कोर्ट में वह अपनी सफाई भी नही देंगे, जिसे जो करना है कर लो...और जब उन्हे मृत्यु दंड देकर ले जाने लगे तो उन्होने जज को शुक्रिया अदा करते हुए कहा था “शुक्रिया आपने मुझे मेरी मातृभूमि के लिए जान नियोछावर करने का मौका दिया”।

ऐसे महान क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा की 113 वीं पुण्यतिथी पर शत् शत् नमन है ।

(चित्र:- लंदन में वीर सावरकर तथा मदन लाल ढींगरा)

Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।