अनमोल-वचन
ओ३म्
🌷अनमोल-वचन🌷
विद्या ददाति विनयम्।-(हि० उ०)
ज्ञानवान पुरुष नम्र हो जाता है जैसे फल से लदा वृक्ष।
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उग्रं बचो अपावधोः ।-(यजु० ५/८)
कठोर वाणी का कभी प्रयोग न करें।
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सं श्रुतेन गमेमहि माश्रुतेन विराधिषि ।-(अथर्व० १/१/४)
मैं वेद की आज्ञा मानूंगा इसके विरुद्ध कभी आचरण नहीं करुंगा।।
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अहं भूमिमदामार्याय ।-(ऋ० ४/२६/२)
मैं (परमेश्वर) ने यह भूमि आर्यों को ही दी है।
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कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ।-(ऋ० ९/६३/५)
संसार को आर्य बनाओ।
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अर्थस्य पुरुषो दासो ।-(महाभारत)
धन का पुरुष दास है,धन किसी का दास नहीं।
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वेदोऽखिलो धर्म मूलम् ।-(मनु० २/६)
वेद ही धर्म का मूल है।
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नास्तिको वेद निन्दकः ।-(मनु० २/११)
वेद की निन्दा करने वाला ही नास्तिक कहलाता है।
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न पौरुषेयत्वं तर्त्कतुः पुरुषस्याभावात ।-(सांख्य)
वेद अपौरुषेय-पुरुष विशेष की रचना नहीं क्योंकि उसके रचयिता पुरुष के नाम का उल्लेख का चिन्ह तक नहीं जैसे दूसरे ग्रन्थ रघुवंश आदि पर उसके लेखक कालीदास का नाम है।
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