भारतीय शिक्षा की दिशा और दशा--

 भारतीय शिक्षा की दिशा और दशा--

भारतीय शिक्षा का विकृतीकरण नेहरू की एक मुख्य देन है..

शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलम आज़ाद। कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इन्होने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यालय हो या विश्वविद्यालय कहीं भी इस्लामिक अत्याचार को ना पढ़ाया जाए. इन्होने भारत के इतिहास को ही नहीं अन्य पुस्तकों को भी इस तरह लिखवाया कि उनमे भारत के गौरवशाली अतीत की कोई बात ना आए. आज भी इतिहास का विद्यार्थी भारत के अतीत को गलत ढंग से समझता है.

आज की तारीख में इतिहास हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये हमारे विश्वविद्यालयों में - गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, बन्दा बैरागी, हरी सिंह नलवा, राजा सुहेल देव, दुर्गा दास राठौर के बारे में कुछ नहीं बताया जाता..

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सेक्युलरिज़्म के चैंपियन और स्वतन्त्र भारत के प्रथम शिक्षा मन्त्री मौलाना अब्बूल कलाम आजाद ने 27 अक्तूबर 1914 को कोलकाता ( कलकत्ता) की एक रैली मे मुस्लिमों को कहा था -

“एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए एक ईंट की तरह एक दीवार में दूसरी ईंट की मदद करता है। यह बिरादरी (मुसलमानों का समुदाय) भगवान द्वारा स्थापित की गई है… दुनिया के सभी रिश्ते टूट सकते हैं लेकिन इस रिश्ते को कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है। यह संभव है कि एक पिता अपने बेटे के खिलाफ हो जाए, असंभव नहीं कि एक मां अपने बच्चे को अपनी गोद से अलग कर दे, यह संभव है कि एक भाई दूसरे भाई का दुश्मन बन जाए ... लेकिन एक चीनी मुसलमान का संबंध एक अफ्रीकी मुस्लिम, एक अरब से है बेडौइन के पास तातार चरवाहे के साथ है, और जो एक आत्मा में भारत के एक नव-मुस्लिम को बांधता है जो मक्का के सही-वंशज कुरैशी के साथ है, इस श्रृंखला को काटने के लिए पृथ्वी पर कोई शक्ति नहीं है ... 

मैं इस्लाम के अल्लाह की कसम खाता हूं, भारत का कोई भी मुसलमान तब तक मुसलमान नहीं हो सकता जब तक कि महसूस करता है कि  मिलत-ए-इस्लाम (वैश्विक मुस्लिम समुदाय) एक एकल निकाय है। ......याद रखें , आज, इस्लाम के लिए, मुसलमानों के लिए, कोई भी राष्ट्रीय या स्थानीय आंदोलन फलदायी नहीं हो सकता है।"

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नवम्बर 1948 में संविधान सभा की बैठक में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने पर लम्बी बहस चली. बहस में इस्लामिक चिन्तक मोहम्मद इस्माईल, जेड एच लारी, बिहार के मुस्लिम सदस्य हुसैन इमाम, नजीरुद्दीन अहमद सहित अनेक मुस्लिम नेताओं ने भीमराव अम्बेडकर का विरोध किया था. इसके बाद हुए मतदान में डॉ० अम्बेडकर का समान नागरिक संहिता का प्रस्ताव विजयी हुआ और संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लागू किये जाने सम्बन्धी विधान लाया गया, परन्तु नेहरु के दबाव में समान नागरिक संहिता को छोड़ पर्सनल लॉ को लागू किया गया.

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सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक प्रश्न के जवाब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और पशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का कहना है कि उसके पास स्कूली किताबों में वैदिक इतिहास का चेप्टर जोड़ने की कोई योजना नहीं है। यह बात संस्थान ने कही है। सूचना में एनसीईआरटी ने कहा कि 2005 राष्ट्रीय पाठ्यक्रम परिचर्या तैयार किए जाने के बाद पुस्तकों में बदलाव किया गया। 2007 में इतिहास की नई किताबें शामिल की गई जिसमें वैदिक इतिहास को नहीं रखा गया है। जबकि इससे पहले तक एनसीईआरटी की एक पुस्तक में वैदिक इतिहास पढ़ाया जा रहा था। लेकिन एनसीईआरटी का कहना है कि विशेषज्ञों की सिफारिश पर पाठ्यक्रम तैयार हुआ था। जिसमें अब कोई बदलाव होने का प्रस्ताव नहीं है।

वैदिक इतिहास के मुद्दे पर कार्य कर रहे लोगों का कहना है कि एनसीईआरटी ने वामपंथी लेखकों के दबाव में वैदिक साइंस के विषय को हटा दिया। लेकिन आज छात्रों को यह जानने का हक है कि वेद क्या हैं, वैदिक गणित आज भी सामयिक है। इसी प्रकार आर्य सभ्यता के बारे में आज एनसीईआरटी की किताबों में एक भी लाइन नहीं पढ़ाई जाती है। एक तरफ सरकार ने ऋगवेद को यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल कराया है तथा दूसरी तरफ इस वेद के बारे में एनसीईआरटी की इतिहास की किताबों में एक भी लाइन दर्ज नहीं है। आखिर यह काम किसके दबाव में हुआ? तब की तत्कालीन सरकार ने यह फैसला क्यों लिया और आज मौजूदा सरकार इस पर मौन क्यों है? भारत दुनिया का शायद अकेला ऐसा देश है, जहां के आधिकारिक इतिहास की शुरुआत में ही यह बताया जाता है कि भारत में रहने वाले लोग यहां के मूल निवासी नहीं हैं भारत में रहने वाले अधिकांश लोग भारत के हैं ही नहीं. ये सब विदेश से आए हैं. 

वामपंथी इतिहासकारों ने बताया कि हम आर्य हैं. हम बाहर से आए हैं. कहां से आए? इसका कोई सटीक जवाब नहीं है. फिर भी बाहर से आए. आर्य कहां से आए, इसका जवाब ढूंढने के लिए कोई इतिहास के पन्नों को पलटे, तो पता चलेगा कि कोई सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया, तो कोई ट्रांस कोकेशिया, तो कुछ ने आर्यों को स्कैंडेनेविया का बताया. आर्य धरती के किस हिस्से के मूल निवासी थे, यह इतिहासकारों के लिए आज भी मिथक है. 

मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सुबूत नहीं है, फिर भी साइबेरिया से लेकर स्कैंडेनेविया तक, हर कोई अपने-अपने हिसाब से आर्यों का पता बता देता है. भारत में आर्य अगर बाहर से आए, तो कहां से आए और कब आए, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है. यह भारत के लोगों की पहचान का सवाल है. 

भारतीय इतिहासकारों ने इन्हीं अंग्रेजों के लिखे इतिहास पर आर्यों और द्रविड़ों का भेद किया. बताया कि सिंधु घाटी में रहने वाले लोग द्रविड़ थे, जो यहां से पलायन कर दक्षिण भारत चले गए. अब यह सवाल भी उठता है कि सिंधु घाटी से जब वे पलायन कर दक्षिण भारत पहुंच गए, तो क्या उनकी बुद्धि और ज्ञान सब ख़त्म हो गया. वे शहर बनाना भूल गए, स्वीमिंग पूल बनाना भूल गए, नालियां बनाना भूल गए. और, बाहर से आने वाले आर्य, जो मूल रूप से खानाबदोश थे, कबीलाई थे, वे वेदों और आयुर्वेद का निर्माण कर रहे थे. दरअसल, वामपंथी इतिहासकारों ने देश के इतिहास को मजाक बना दिया

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