127 वीं जन्म वर्ष के अवसर पर सश्रद्ध स्मरण

 127 वीं जन्म वर्ष  के अवसर पर सश्रद्ध स्मरण

स्वामी समर्पणानन्द जी  / पण्डित बुद्धदेव जी वेदालङ्कार

.  

अद्भुत वाग्मी, विचित्र ऊहा के धनी, उद्भट विद्वान् तथा शास्त्रों के तलस्पर्शी अध्येता पण्डित बुद्धदेव जी विद्यालङ्कार का जन्म 1 अगस्त 1895 को देहरादून के निकट कौलागढ़ (जिला सहारनपुर) ग्राम में पण्डित रामचन्द्र के यहाँ हुआ | आप मुद्गल गोत्रोत्पन्न ब्राह्मण थे | पण्डित जी की माता जी का नाम यशवती देवी था जो देहरादून के पण्डित कृपाराम जी की पुत्री थीं | ये वही पण्डित कृपाराम जी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द जी को देहरादून आने के लिए आमंत्रित किया था तथा स्वामीजी के व्याख्यानों की सुचारु व्यवस्था की थी | आपका बचपन का नाम नवीनचन्द्र था | 

सात वर्ष की अवस्था में आपको गुरुकुल काँगड़ी में प्रविष्ट कराया गया जहाँ अध्ययन कर आपने 1972 विक्रम (सन् 1916) में विद्यालङ्कार की उपाधि प्राप्त की | आप गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के अत्यन्त मेधावी प्रतिभाशाली और विद्वान् स्नातक थे | संस्कृत भाषा पर आपका अप्रतिम अधिकार था | आप संस्कृत मातृभाषा की तरह लिखते और बोलते थे | संस्कृत में आप कविता भी बहुत उच्च कोटि की करते थे | गद्य-पद्य दोनों में ही आपकी रचनाएँ संस्कृत के प्राचीन लेखकों और कवियों की रचनाओं के समकक्ष होती थीं |  अलौकिक प्रतिभा, सूझ, पाण्डित्य और विद्वत्ता और वैदिक साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय ने आपको विद्यामार्तण्ड की उपाधि प्रदान की थी |  कुछ समय तक आपने गुरुकुल काँगड़ी में अध्यापन कार्य भी किया |

पण्डित जी वक्ता भी निराले किस्म के थे, वे श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध करने की शक्ति रखते थे | सरस्वती उनकी जिह्वा पर नाचती थी | पण्डित बुद्धदेव जी ने आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब में वर्षों तक उपदेशक का कार्य किया | तत्पश्चात् आप स्वतन्त्र रूप से धर्म प्रचार में आजीवन  लगे रहे | आप श्रोताओं में अपनी उद्भट भाषण शक्ति द्वारा सभी रसों का संचार करने की अलौकिक क्षमता रखते थे | अँग्रेजी भाषा पर भी आपका बड़ा अधिकार था | आपकी चतुर्मुखी प्रतिभा प्रत्येक विषय में चलती थी और हर समय जागृत रहती थी | आपको बात-बात में नई बातें फुरा करती थीं |

आपकी पत्नी का नाम श्रीमती सुशीला देवी जी था | आपने अपनी दो पुत्रियों अपराजिता एवं प्रभातशोभा का विवाह जात-पात-तोड़कर किया | महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार ही आपने अपना सम्पूर्ण जीवन ढाला था और इसलिए क्रमशः ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों की दीक्षा ली थी | कालान्तर में आपने संन्यास ग्रहण कर लिया और स्वामी समर्पणानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुए | पण्डित बुद्धदेव जी आर्य समाज के सम्मान्य विद्वान् और प्रतिष्ठित नेता थे | हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में भाग लेकर आपने कारावास का दण्ड स्वीकार किया | 

आप  एक उच्चकोटि के शास्त्रार्थ कर्त्ता, प्रगल्भ लेखक तथा कुशल वक्ता थे | आर्य समाज के विरोधी विधर्मी लोग शास्त्रार्थ में उनके आगे खड़े नहीं रह सकते थे | वे शास्त्रार्थ महारथी थे | अपने भाषणों, ग्रन्थों और शास्त्रार्थों द्वारा आपने जीवन भर आर्य समाज और वैदिक धर्म की जो सेवा के है उसकी तुलना नहीं हो सकती | महर्षि दयानन्द में आपकी अगाध श्रद्धा थी | महर्षि दयानन्द जी के सिद्धान्तों का प्रचार करने के कार्य में वे हर एक प्रकार का कष्ट उठाने और त्याग करने के लिए उद्यत रहते थे | 

वेद मन्त्रों की आप जैसी अनूठी, भाव-गर्भित और रसीली व्याख्या किया करते थे वह आपका ही काम था  | अफ्रीका जाकर वैदिक धर्म प्रचार करने का अवसर भी उन्हें मिला था | 1939 में आपने मेरठ के निकट प्रभात-आश्रम-गुरुकुल भोला झाल की स्थापना की | आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के प्रधान भी रहे थे | 14 जनवरी 1969 को दिल्ली में आपका निधन हो गया | 

पण्डित बुद्धदेव जी द्वारा किया गीता भाष्य विशेष पठनीय है | इसमें गीता के प्रत्येक श्लोक की व्याख्या करते हुए यह ध्यान रखा गया है कि "अमुक श्लोक का अर्जुन की अवस्था से क्या सम्बन्ध है?" इस मणिसूत्र को पण्डित जी ने कभी नहीं बुलाया है | सर्वत्र सुन्दर समन्वय स्पष्ट प्रतीत होता है | स्थान-स्थान पर असपष्ट अथवा विवादास्पद शब्दों का बड़ा उत्तम विश्लेषण किया है | प्रत्येक श्लोक के साथ संस्कृत में अन्वय भी दिया है जिससे गीता के साधारण संस्कृतज्ञ पाठकों को संस्कृत सीखने में भी सहायता मिलती है | महर्षि दयानन्द जी द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म के सिद्धान्तों का ही प्रतिपादन गीता भाष्य में है | प्रत्येक पाठक को गीतामृत का पान करना चाहिए |

लेखन कार्य :--

1. अथर्ववेद भाष्य (आंशिक) आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के मासिक मुख पत्र आर्य मेन धारवाही छपता रहा 

2. शतपथ ब्राह्मण प्रथम काण्ड का भाष्य 1973 विक्रम में (यजुर्वेद के प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण के प्रथम पौने तीन काण्डों का विस्तृत भाष्य है, वैदिक साहित्य में एक सर्वथा निराली रचना है | इस भाष्य के अध्ययन से पता चलता है कि शतपथ ब्राह्मण और यजुर्वेद में कितना उच्च कोटि का ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है|)

3. शतपथ एक पथ 1986 विक्रम में  (शतपथ ब्राह्मण के अध्ययन में सहायक ग्रन्थ)

4. अथ मरुत सूक्त (1988 विक्रम में)

5. सप्त सिन्धु सूक्त (अथर्ववेद के चतुर्दश काण्ड का भाष्य)

6. प्रातः सूक्त 

7. ऋग्वेद का मणिसूत्र 

8. ऋग्वेद मण्डल मणि सूत्र (ऋग्वेद के मण्डलों में प्रस्तुत विचारधारा का पारस्परिक सामंजस्य स्थापित करने वाला ग्रन्थ)

9. पशु बलि वेद शास्त्र विरुद्ध है 

10. किसकी सेना में भर्ती होंगे ? कृष्ण की या कंस की ? (सरिता में प्रकाशित रतन लाल के. बंसल “आज का सबसे बड़ा देशद्रोह:गोपूजा” शीर्षक लेख का खण्डन) 1953 

11. वेदों के सम्बन्ध में क्या जानो और क्या भूलो ?

12. गोपावर्त (गाय की महत्ता का निरूपण) 

13. वर्ण व्यवस्था और उस पर आक्षेप (1995 विक्रम)

14. वर्ण व्यवस्था के चार सूत्र 

15. कायाकल्प (वर्ण व्यवस्था की सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ) (1996 विक्रम) इसके अनेक संस्करण 2006 विक्रम, 2026 विक्रम तथा 2035 विक्रम में छपे 

16. मनु और मांस (1972 विक्रम) व्याख्यान 

17.  श्रीमद् भगवद्गीता समर्पण भाष्य 2027 विक्रम  (समर्पण भाष्य) 

18. वैदिक अग्नि प्रकाश (कारावास के दिनों में दिये गए प्रवचनों का संग्रह) संकलनकर्ता श्री इन्द्रराज 

19. सुर और असुर 

20. पाणिनी प्रवेशिका (संस्कृत भाषा शिक्षण)

21. अथ ब्रह्मयज्ञ (1990 विक्रम) 

22. अथ देवयज्ञ (अग्निहोत्र व्याख्या) 1993 विक्रम 

23. पञ्चयज्ञ प्रकाश 1940 विक्रम 

24. उसकी राह पर (काव्य संग्रह) 1996 विक्रम 

25. प्रार्थनावली 

26. तीन देवता 

27. बिखरे हुए फूल 

28. भारतीय लोक संघ की स्थापना क्यों 

29. संसार का पुनर्निर्माण 

30. साम 1931 

31. स्वर्ग 

32. हिन्दू समाज मत चूक 

33.       भक्ति लहरी 

 

(लेख सहायक ग्रन्थ साभार :-  (1) आर्य लेखक कोश – डॉ भवानीलाल भारतीय

127 वीं जन्म वर्ष  के अवसर पर सश्रद्ध स्मरण

स्वामी समर्पणानन्द जी  / पण्डित बुद्धदेव जी वेदालङ्कार

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अद्भुत वाग्मी, विचित्र ऊहा के धनी, उद्भट विद्वान् तथा शास्त्रों के तलस्पर्शी अध्येता पण्डित बुद्धदेव जी विद्यालङ्कार का जन्म 1 अगस्त 1895 को देहरादून के निकट कौलागढ़ (जिला सहारनपुर) ग्राम में पण्डित रामचन्द्र के यहाँ हुआ | आप मुद्गल गोत्रोत्पन्न ब्राह्मण थे | पण्डित जी की माता जी का नाम यशवती देवी था जो देहरादून के पण्डित कृपाराम जी की पुत्री थीं | ये वही पण्डित कृपाराम जी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द जी को देहरादून आने के लिए आमंत्रित किया था तथा स्वामीजी के व्याख्यानों की सुचारु व्यवस्था की थी | आपका बचपन का नाम नवीनचन्द्र था | 

सात वर्ष की अवस्था में आपको गुरुकुल काँगड़ी में प्रविष्ट कराया गया जहाँ अध्ययन कर आपने 1972 विक्रम (सन् 1916) में विद्यालङ्कार की उपाधि प्राप्त की | आप गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के अत्यन्त मेधावी प्रतिभाशाली और विद्वान् स्नातक थे | संस्कृत भाषा पर आपका अप्रतिम अधिकार था | आप संस्कृत मातृभाषा की तरह लिखते और बोलते थे | संस्कृत में आप कविता भी बहुत उच्च कोटि की करते थे | गद्य-पद्य दोनों में ही आपकी रचनाएँ संस्कृत के प्राचीन लेखकों और कवियों की रचनाओं के समकक्ष होती थीं |  अलौकिक प्रतिभा, सूझ, पाण्डित्य और विद्वत्ता और वैदिक साहित्य की सेवा के उपलक्ष्य में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय ने आपको विद्यामार्तण्ड की उपाधि प्रदान की थी |  कुछ समय तक आपने गुरुकुल काँगड़ी में अध्यापन कार्य भी किया |

पण्डित जी वक्ता भी निराले किस्म के थे, वे श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध करने की शक्ति रखते थे | सरस्वती उनकी जिह्वा पर नाचती थी | पण्डित बुद्धदेव जी ने आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब में वर्षों तक उपदेशक का कार्य किया | तत्पश्चात् आप स्वतन्त्र रूप से धर्म प्रचार में आजीवन  लगे रहे | आप श्रोताओं में अपनी उद्भट भाषण शक्ति द्वारा सभी रसों का संचार करने की अलौकिक क्षमता रखते थे | अँग्रेजी भाषा पर भी आपका बड़ा अधिकार था | आपकी चतुर्मुखी प्रतिभा प्रत्येक विषय में चलती थी और हर समय जागृत रहती थी | आपको बात-बात में नई बातें फुरा करती थीं |

आपकी पत्नी का नाम श्रीमती सुशीला देवी जी था | आपने अपनी दो पुत्रियों अपराजिता एवं प्रभातशोभा का विवाह जात-पात-तोड़कर किया | महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार ही आपने अपना सम्पूर्ण जीवन ढाला था और इसलिए क्रमशः ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रमों की दीक्षा ली थी | कालान्तर में आपने संन्यास ग्रहण कर लिया और स्वामी समर्पणानन्द जी के नाम से प्रसिद्ध हुए | पण्डित बुद्धदेव जी आर्य समाज के सम्मान्य विद्वान् और प्रतिष्ठित नेता थे | हैदराबाद आर्य सत्याग्रह में भाग लेकर आपने कारावास का दण्ड स्वीकार किया | 

आप  एक उच्चकोटि के शास्त्रार्थ कर्त्ता, प्रगल्भ लेखक तथा कुशल वक्ता थे | आर्य समाज के विरोधी विधर्मी लोग शास्त्रार्थ में उनके आगे खड़े नहीं रह सकते थे | वे शास्त्रार्थ महारथी थे | अपने भाषणों, ग्रन्थों और शास्त्रार्थों द्वारा आपने जीवन भर आर्य समाज और वैदिक धर्म की जो सेवा के है उसकी तुलना नहीं हो सकती | महर्षि दयानन्द में आपकी अगाध श्रद्धा थी | महर्षि दयानन्द जी के सिद्धान्तों का प्रचार करने के कार्य में वे हर एक प्रकार का कष्ट उठाने और त्याग करने के लिए उद्यत रहते थे | 

वेद मन्त्रों की आप जैसी अनूठी, भाव-गर्भित और रसीली व्याख्या किया करते थे वह आपका ही काम था  | अफ्रीका जाकर वैदिक धर्म प्रचार करने का अवसर भी उन्हें मिला था | 1939 में आपने मेरठ के निकट प्रभात-आश्रम-गुरुकुल भोला झाल की स्थापना की | आप आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के प्रधान भी रहे थे | 14 जनवरी 1969 को दिल्ली में आपका निधन हो गया | 

पण्डित बुद्धदेव जी द्वारा किया गीता भाष्य विशेष पठनीय है | इसमें गीता के प्रत्येक श्लोक की व्याख्या करते हुए यह ध्यान रखा गया है कि "अमुक श्लोक का अर्जुन की अवस्था से क्या सम्बन्ध है?" इस मणिसूत्र को पण्डित जी ने कभी नहीं बुलाया है | सर्वत्र सुन्दर समन्वय स्पष्ट प्रतीत होता है | स्थान-स्थान पर असपष्ट अथवा विवादास्पद शब्दों का बड़ा उत्तम विश्लेषण किया है | प्रत्येक श्लोक के साथ संस्कृत में अन्वय भी दिया है जिससे गीता के साधारण संस्कृतज्ञ पाठकों को संस्कृत सीखने में भी सहायता मिलती है | महर्षि दयानन्द जी द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म के सिद्धान्तों का ही प्रतिपादन गीता भाष्य में है | प्रत्येक पाठक को गीतामृत का पान करना चाहिए |

लेखन कार्य :--

1. अथर्ववेद भाष्य (आंशिक) आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के मासिक मुख पत्र आर्य मेन धारवाही छपता रहा 

2. शतपथ ब्राह्मण प्रथम काण्ड का भाष्य 1973 विक्रम में (यजुर्वेद के प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ शतपथ ब्राह्मण के प्रथम पौने तीन काण्डों का विस्तृत भाष्य है, वैदिक साहित्य में एक सर्वथा निराली रचना है | इस भाष्य के अध्ययन से पता चलता है कि शतपथ ब्राह्मण और यजुर्वेद में कितना उच्च कोटि का ज्ञान-विज्ञान भरा हुआ है|)

3. शतपथ एक पथ 1986 विक्रम में  (शतपथ ब्राह्मण के अध्ययन में सहायक ग्रन्थ)

4. अथ मरुत सूक्त (1988 विक्रम में)

5. सप्त सिन्धु सूक्त (अथर्ववेद के चतुर्दश काण्ड का भाष्य)

6. प्रातः सूक्त 

7. ऋग्वेद का मणिसूत्र 

8. ऋग्वेद मण्डल मणि सूत्र (ऋग्वेद के मण्डलों में प्रस्तुत विचारधारा का पारस्परिक सामंजस्य स्थापित करने वाला ग्रन्थ)

9. पशु बलि वेद शास्त्र विरुद्ध है 

10. किसकी सेना में भर्ती होंगे ? कृष्ण की या कंस की ? (सरिता में प्रकाशित रतन लाल के. बंसल “आज का सबसे बड़ा देशद्रोह:गोपूजा” शीर्षक लेख का खण्डन) 1953 

11. वेदों के सम्बन्ध में क्या जानो और क्या भूलो ?

12. गोपावर्त (गाय की महत्ता का निरूपण) 

13. वर्ण व्यवस्था और उस पर आक्षेप (1995 विक्रम)

14. वर्ण व्यवस्था के चार सूत्र 

15. कायाकल्प (वर्ण व्यवस्था की सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ) (1996 विक्रम) इसके अनेक संस्करण 2006 विक्रम, 2026 विक्रम तथा 2035 विक्रम में छपे 

16. मनु और मांस (1972 विक्रम) व्याख्यान 

17.  श्रीमद् भगवद्गीता समर्पण भाष्य 2027 विक्रम  (समर्पण भाष्य) 

18. वैदिक अग्नि प्रकाश (कारावास के दिनों में दिये गए प्रवचनों का संग्रह) संकलनकर्ता श्री इन्द्रराज 

19. सुर और असुर 

20. पाणिनी प्रवेशिका (संस्कृत भाषा शिक्षण)

21. अथ ब्रह्मयज्ञ (1990 विक्रम) 

22. अथ देवयज्ञ (अग्निहोत्र व्याख्या) 1993 विक्रम 

23. पञ्चयज्ञ प्रकाश 1940 विक्रम 

24. उसकी राह पर (काव्य संग्रह) 1996 विक्रम 

25. प्रार्थनावली 

26. तीन देवता 

27. बिखरे हुए फूल 

28. भारतीय लोक संघ की स्थापना क्यों 

29. संसार का पुनर्निर्माण 

30. साम 1931 

31. स्वर्ग 

32. हिन्दू समाज मत चूक 

33.       भक्ति लहरी 

पूज्य स्वामी समर्पणानन्द जी  / पण्डित बुद्धदेव जी वेदालङ्कार की शिष्य परम्परा  में स्वामी दीक्षानन्द जी और स्वामी विवेकानन्द जी का नाम उल्लेखनीय है | 

आइये ! हम पण्डित जी के साहित्य को यथासम्भव क्रय करें और स्वाध्याय कर लाभान्वित हों | 

सादर धन्यवाद 

विदुषामनुचर 

विश्वप्रिय वेदानुरागी  

(लेख सहायक ग्रन्थ साभार :-  (1) आर्य लेखक कोश – डॉ भवानीलाल भारतीय ----------------------------

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