आज का वेद मंत्र 🕉️

 🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक  - -    ३० जुलाई २०२२ ईस्वी 

 

दिन  - -  शनिवार 


  🌖 तिथि - - -  द्वितीया  ( २६:५९ तक तत्पश्चात तृतीया )


🪐 नक्षत्र -  -  आश्लेषा ( १२:१३ तक तत्पश्चात मघा  )


पक्ष  - -  शुक्ल 


 मास  - -  श्रावण 


ऋतु  - -  वर्षा 

,  

सूर्य  - -  दक्षिणायन


🌞 सूर्योदय  - - दिल्ली में प्रातः ५:४१ पर


🌞 सूर्यास्त  - -  १९:१४ पर 


🌖 चन्द्रोदय  - -  ६:४९  पर 


🌖चन्द्रास्त  - -  २०:३५  पर 


सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२३


कलयुगाब्द  - - ५१२३


विक्रम संवत्  - - २०७९


शक संवत्  - - १९४४


दयानंदाब्द  - - १९८


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🚩‼️ओ३म्‼️🚩


   🔥आत्मनिरीक्षण क्या है ? आत्मनिरीक्षण करने से लाभ क्या है ? 

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       आत्म' का अर्थ होता है खुद अपनेआप का, स्वयं का, अपने मन का, अपनी बुद्धि का, अपनी इंद्रिओ का, अपने विचारो का, अपनी चेष्टाओं का, अपने क्रियाकलापों का, अपने संस्कारो का 'निरिक्षण' करना अर्थात् 'नितराम इक्षणम्' देखना । ये सभी को नित्यप्रति, प्रति घंटे, प्रति मिनट, हमेशा गंभीरता से देखने में प्रवृत्त होना 'आत्मनिरीक्षण' है । अपनी आत्मा की प्रेरणा से मनुष्य अपने मन-वाणी और शरीर द्वारा किए गए प्रयत्नविशेष को जो देखता है, जानता है, समजता है उसे 'आत्मनिरीक्षण' कहते है ।


       ईश्वरप्राप्ति के लक्ष्य को लेकर चलनेवाले साधक को अतिआवश्यक है कि चाहे कितना ही पढ़ ले -पढ़ा ले,  सुन ले- सुना ले, सेवा-परोपकार के लिए कितनी ही दौड़ लगा दे, जब तक वह अपनी आतंरिक गतिविधियों को, अपने संस्कारो को तथा उनसे उत्पन्न स्मृतिओ को देखता नही तब तक आंतरिक विशेष गति होना संभव नहीं है । जब मनुष्य अपने आत्मा को, अपने मन-बुद्धि- चित्त को, अपने विचारो को, अपनी वृत्तिओ की हलचल को देखने लगता है, तब उसके जीवन में शीघ्र आमूलचूल परिवर्तन होने लगता है ।


       जब मनुष्य अपने आलस, प्रमाद के कारण,अपने अज्ञान के कारण, अपने कुसंस्कारों के कारण, अपनी दुष्प्रवृत्तिओ की अधिकता के कारण जब प्रथम बार अंदर देखने का प्रयास करता है, तब वह बहुत गभरा उठता है । खुद कितना दुराचारी है, पापी है, छली-कपटी है ! कितना जुठ्ठा-अन्यायी- पक्षपाती है यह गंभीरता से अंदर जानेसे मालुम पड़ता है ।


    यदि डर के मारे हम अपने अंदर देखना बन्ध कर देंगे तो पाप, अधर्म, अनाचार, छल-कपट, एषणा आदि बढ़ते ही जायेंगे और अंत में दुःख-पीड़ा-बंधनरूपि घोर परिणाम भोगने ही पड़ेंगे । ईतना ही नहीं ऐसे कुसंस्कारों का प्रभाव इतना अत्यधिक बढ़ता जाएगा और वह हमारे ही शत्रु बनकर पशु-पक्षी, कीट- पतंग, वृक्ष-वनस्पति आदि योनियाँ प्रदान करेंगे ।


    आज हम दो मिनिट के सुख के लिए कितना अत्याचार करते है बेचारे इस पेट पर ? भोजन अच्छा लगा, बस टूट पड़े, संयम-नियम-परिचर्या सब भूल गए । परिणाम अंत में रोगी होना, बड़ी पीड़ा होना, डॉक्टर के पास जाना, पैसे का व्यय होना, दो दिन खाट पर पड़े रहना, घर के अन्य सब काम पेंडिंग रहना, कचहरी का काम भी बाकी रहना, परिवार के सदस्य भी हमारे साथ सेवा के लिए जुड़े रहना, सुक्षमता से देखे तो यह हमारी इंद्रियलोलुपता, विषयासक्ति, असंयम हमारे मन में अनेक कुसंस्कारों की फ़ौज पैदा करती है और अंत में हमे पतन की गहरी गर्त में धकेलती है । अब आवश्यक है दृढ निर्धार करके -संकल्प करके इस पर रोक लगाने की, नियंत्रण रखने की ।  विषयभोग करना, उसके संस्कार बनना, उससे स्मृति उभरना,  पुनः उस सुख के लिए लालायित होकर प्रवृत्त होना-  यह चक्कर चलता ही रहेगा ।  बस, अब जल्दी ही आत्मनिरीक्षण करने का व्रत धारण कर ले । अपनेआप की- स्वयं की गति -विधियों का निरिक्षण-परिक्षण करना प्रारम्भ कर ले ।


  अपने मनरूपी गाडी जो तीव्र वेग से विषयो की ऒर दौड रही है, इस पर ब्रेक लगाने की जरुरत है । प्रथम हम अपनी गाडी को ठीक तरह जांच कर ले, फ्यूअल देख ले, टायरों में हवा भरी हुई है या नहीं, दोनों टायरों का बेलेंस ठीक है या नहीं, हिट चेक कर ले, A/c चालू है या नहीं, ब्रेक को भी देख ले । यदि ऐसा किया जाएगा और सावधानी से गाडी चलाई जायेगी तो निश्चित गंतव्य स्थान पर पहुंच ही जाएंगे ।


   हमारी गति अंदर की ऒर बनाने से हमारे अंदर छुपी हुई त्रुटि-दोष-अपूर्णता-क्षति आदि की पहचान होती है । उस कमी को दूर करने का पुरुषार्थ शुरू हो जाता है और अंत में उन पर विजय प्राप्त होता है । दुर्गुणो का तिरस्कार और सदगुणो का सत्कार अपने अंदर उतरने से ही होता है । पापकर्मो की सफाई और पुण्यकर्मो की कमाई आत्मनिरीक्षण करने से ही होती है । मन की मलिनता का प्रक्षालन होने से आत्मा में अतुल बल, जोश, उत्साह, पराक्रम, ऊर्जा, आनंद आदि की प्राप्ति होती है ।


    १०० मनुष्यो में से हो सकता है प्रतिदिन ईश्वरोपासना करनेवाले शायद मनुष्य ५-७ मिल जाए, किन्तु अपनी आतंरिक प्रवृतिओ को प्रतिदिन केवल ५ मिनिट देखनेवाला शायद एकाद मिल जाए तो मिल जाए ! इस प्रकार के व्यवहार से कैसे हम अपनेआप को उन्नत बना सकते है ? कैसे हम परमात्मा की विशेष कृपा पा सकते है ? कितना ज्यादा द्वेष, इर्ष्या, छल-कपट, जूठ, नास्तिकता है हमारे अंदर ? क्या हम अपनी वाणी का दुरपयोग कम कर रहे है ? क्या हम अपने सारे काम अच्छे और निष्काम कर रहे है ?


    धन के लिए हम दिनरात ध्यान देते है, पद और प्रतिष्ठा के लिए सुबकुछ करते रहते है,  मकान बनाते है, धंधे-व्यापार में मूडी लगाते है तो हम यह देखते है इसका आउटपुट क्या होगा, कितना रिटर्न मिलेगा, कितना लाभ मिलेगा, कब मिलेगा ? किन्तु हम अपना यह सूंदर लावण्यमयी शरीर, इंद्रिया, मन, बुद्धि आदि के बिषय में सोचते ही नहीं । ये सारे साधनो से प्रतिदिन १८ घंटे आउटपुट क्या और कितना आप ले रहो हो ? जरा सोचो । चक्षु, कर्ण आदि करणो का दुरपयोग तो नहीं हो रहा ? इसकी जांच-पड़ताल करनी क्या आवश्यक नहीं है ?


    वास्तविक उन्नति आतंरिक उन्नति है । अंदर से सुधार कर ले, सब सुधर जाएगा ।  अपनी पूरी आतंरिक स्थिति को केवल हम ही जान सकते है अथवा तो हमारा परमात्मा । हम बाहर से तो कितने अच्छे-भले-धार्मिक- सहिष्णु, दयालु, परोपकारी सभी को दिखाते है, परंतु अंदर से तो हम बिलकुल खोखले है, खाली है । बाहर से प्रेम दिखाते है, किन्तु अंदर से कितने स्वार्थी है-क्रूर है, दंभी है ? मन-वचन और क्रिया में कितना भेद कर रहे है हम ? आज भी विषयो के प्रति कितनी लोलुपता है, लालसा है, कामुकता है, कामना है, एषणा है, असंयम है ? बाहर से कितने ही हम अच्छे-सुखी-ऐश्वर्यवान लगते हो, परंतु अंदर से बुरे-दुःखी, पीड़ित और बहुत गरीब है । 


    बस....बहुत जी लिया जूठा जीवन, बहुत दिखावा कर लिया, बहुत शरीर को सजा दिया । बहुत धोखा दे दिया अपने निकटस्थ व्यक्ति को....। अब बाहर की आँख बंध कर ले और अंदर की आँख खोल ले । अपने में स्थित दोषो, कमियो को, अधर्म को, पाप को, वासनाओ को देख ले-पहचान ले और उसका प्रमाणिकता से स्वीकार कर ले । इतना करते ही पुरुषार्थ शुरू हो जाएगा । सुधार के लिए परमात्मा से सहयोग मांगे । संसारी लोग सहयोग करे या न करे, परंतु निश्चित परमात्मा पूरा सहयोग करेगा ही।

                                           🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁


🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


   🌷ओ३म् बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्तं पृथु: स्वरु:।येषामिन्द्रो युवा सखा।।(यजुर्वेद ३३/२४)


 💐 :- जिन महानुभाव भद्र पुरुषों ने, विषय भोगों में न फंसकर, महा तेजस्वी, सर्वव्यापक सूर्यवत् प्रतापी, एकरस, महाबली, सबसे बड़े परमेश्वर को, अपना मित्र बना लिया है, उन्हीं का जीवन सफल है। सांसारिक भोगों से विरक्त, परमेश्वर के ध्यान में और उसके ज्ञान में आसक्त, महापुरुषों के सत्संग से ही, मुमुक्षु पुरुषों का कल्याण हो सकता है, न कि विषय लंपट ईश्वर विमुखो के कुसंग से।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- त्रिविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२३ ) सृष्ट्यब्दे】【 नवसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७९ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टनवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल-संवत्सरे,  रवि- दक्षिणयाने वर्षा -ऋतौ, श्रावण -मासे , शुक्ल  - पक्षे, - द्वितीयायां - तिथौ,  -  आश्लेषा नक्षत्रे, शनिवासरे , तदनुसार  ३०  जुलाई  २०२२ ईस्वी , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,  रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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