मेहता जैमिनी जी : भूमण्डल प्रचारक
मेहता जैमिनी जी : भूमण्डल प्रचारक
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माता ने कहा --------
"बेटा ! मुल्तान में जादूगर साधु से बचना !"
जमनादास कमालिया से १४ मील की कच्ची सड़क की यात्रा करके मुल्तान चलने लगे तो आप की माता ने चलते समय प्यारे पुत्र को सावधान करते हुए कहा --"पुत्र तुम वहां जा तो रहे हो परंतु वहां जाकर उस जादूगर साधु से बचना जो अपनी जादू भरी वाणी से सबको अपने विचारों का बना लेता है! उसके पास जाने वाला अपने धर्म-कर्म को ही खो देता है। बेटा ! उसके निकट न जाने में ही भलाई है !"
अनपढ़ मां को तब इतना ज्ञान नहीं था कि जिस जादूगर साधु कि वह बात कर रही थी, वह तो २ वर्ष पूर्व ही मुक्ति- पथ का पथिक बन चुका था !मुल्तान में तो वह १८७८ ईस्वी में केवल एक ही बार आया था, तब जमनादास मात्र पौने ७ वर्ष का था! जमनादास जब १८८५ में मुल्तान के लिए निकला तब तक उसे न तो ऋषि दयानंद के बारे में कुछ पता था और न ही उसने आर्य समाज का नाम कभी सुना था !
तब कौन जानता था कि भोली भाली माता अपने पुत्र को जिस साधु से बचने की सीख देकर मुल्तान भेज रही है! उसका यह पुत्र एक दिन संसार के देश- देशांतर व दीप दीपान्तरों में उस जादूगर साधु का संदेश सुनाएगा! प्राण- प्रण से यह बालक उस ऋषि के मिशन की सेवा करेगा! कमाल तो यह है कि मां ने बेटे को ईसा से बचने की शिक्षा न दी, जिसके पंजे से इस जादूगर की कृपा से उसका लाल बच गया !
भोग, रोग और कड़ी परीक्षा--
आप जून १८९७ में रोग ग्रस्त हो गए! आपको ज्वर रहने लग गया! वैद्य वह डॉक्टरों की चिकित्सा बहुत करवाई परंतु ज्वर बढ़ता ही गया ! किसी भी औषधि से कोई लाभ न हुआ ! एक दिन डॉक्टर बेलीराम जी ने श्री मेहता से कहा कि आप नित्य शोरबा किया करें! मेहता जी का उत्तर था-
डॉक्टर जी ! मैं उस समय आपके सुझाव को स्वीकार कर लूंगा जब मुझे विश्वास हो जाए कि परमात्मा की सत्ता नहीं और मैंने सदा जीवित रहना है !
डॉ महोदय ने कहा-- ऐसा क्यों ?
मेहता जी ने उत्तर में कहा-- डॉक्टर महोदय! यदि मेरे रोग का केवल यही एक इलाज है तो परमेश्वर सर्वशक्तिमान न रहा! उसकी शक्ति सीमित हो गई! उसने इस रोग की केवल यही एक औषधि बनाई! मेरा विश्वास है कि मेरे रोग निवारण के लिए सहस्रों औषधियां हैं जिनका आपको ज्ञान नहीं !क्या आप मुझे गारंटी दे सकते हैं कि मैं मांस भक्षण करके इस रोग से छुटकारा पा लूंगा और फिर मरूंगा नहीं ?
---- मेहता जैमिनी
प्रस्तुत् कर्त्ता--रामयतन