ग्रीस कैसे तुर्की बना: इस्लामिक समुदाय और देशों के विभाजन

 ग्रीस कैसे तुर्की बना: इस्लामिक समुदाय और देशों के विभाजन


इस्लाम के अधूरे एजेंडे - केस  - ग्रीस और बाल्कन बनाम तुर्की


-पंकज सक्सेना 


कैसे तुर्की सेकुलर चरित्र का दावा करते हुए असमान विभाजन के बाद अपने पूर्व ईसाई उपनिवेशों का इस्लामीकरण कर रहा है।


आज जो तुर्की है वह कभी ग्रीस हुआ करता था। यह पहला भौगोलिक तथ्य है जिससे आपको परिचित होने की आवश्यकता है कि तुर्की तुर्की नहीं था। मूर्तिपूजक और ईसाई काल में तुर्की को अनातोलिया/एशिया माइनर कहा जाता था। जबकि पूर्वी तुर्की आर्मेनिया था।


तुर्कों का मूल निवास पूर्वी साइबेरिया में बैकाल झील के पास कहीं है। तुर्की में तुर्क आक्रमणकारी/ जनसँख्या हैं। तुर्क तुर्की के मूल निवासी नहीं हैं। वे आक्रमणकारी थे और बाहर से आकर वहाँ बसे हैं|


अनातोलिया (आज का तुर्की) में मूर्तिपूजक ग्रीक, मूर्तिपूजक रोमन और फिर ईसाई बैजांटाइन इन साम्राज्यों के कुछ सबसे महत्वपूर्ण प्रांत थे। यह प्राचीन ७ अजूबों में से दो का घर है।


ग्रीस एक समुद्री सभ्यता थी और तुर्की के पूरे तटवर्ती इलाके और कई अंतर्देशीय शहरों को ग्रीस लोगों द्वारा बसाया गया था। इफिसुस और स्मिर्ना जैसे कुछ महान यूनानी नगर अब मुस्लिम तुर्की में स्थित हैं।


 5 वीं शताब्दी तक, जो तुर्की है वह पूरी तरह से ग्रीस का हिस्सा बन गया था: संस्कृति में ग्रीक, भाषा और मज़हब में ईसाई क्योंकि वह उस समय बैजांटाइन या पूर्वी रोमन साम्राज्य का हिस्सा था।


11 वीं शताब्दी से सेल्जुक तुर्कों की बर्बर जनजातियों ने अनातोलिया (वर्तमान तुर्की) में बैजांटाइन साम्राज्य पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया। ये तुर्क मुसलमान थे। ट्रांसऑक्सियाना की मुस्लिम विजय के दौरान उन्हें अरबों और फारसियों द्वारा धर्मान्तरित कर दिया गया था ।


अरल सागर के पास अपने घर से उठकर, इन सेल्जुक तुर्कों ने अनातोलिया (जो अब तुर्की है) में बैजांटाइन साम्राज्य पर आक्रमण किया। १०७१ ई में मंज़िकर्ट की लड़ाई में , मुस्लिम सेल्जुक ने ईसाई बैजांटाइन सेनाओं को हराया और सम्राट रोमनोस IV को बंधी बनाकर उसके साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।


यह ईसाई बैजांटाइन साम्राज्य के लिए एक विनाशकारी हार थी। इसने सुनिश्चित किया कि वे अनातोलिया और आर्मेनिया, इसके दो सबसे धनि और मुख्य क्षेत्रों की रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे। इस बीच मुस्लिम तुर्कों ने अनातोलिया पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया और बड़ी संख्या में वहां बस गए।


उन्होंने स्थानीय ईसाइयों को विस्थापित किया, उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया और विरोध करने वालों का नरसंहार किया और अंततः ग्रीक सभ्यता के एक मुख्य हिस्से को मुस्लिम बहुल भूमि बनाने में सफल रहे। पूर्व में केवल आर्मेनिया ही थोड़ा विरोध करने में सक्षम रहा।


सेल्जुक तुर्कों ने एशिया माइनर का इस्लामीकरण कर दिया था लेकिन वे बैजांटाइन साम्राज्य की राजधानी - कॉन्स्टेंटिनोपल को जीतने में सक्षम नहीं हुए थे। वह कार्य ओटोमन साम्राज्य द्वारा पूरा किया गया था जो १४वीं शताब्दी में अनातोलिया में सेल्जुक तुर्क के उत्तराधिकारी के रूप में उभरा।


ओटोमन्स ने अंततः १४५३ ई में कॉन्स्टेंटिनोपल पर आक्रमण किया और उसे नष्ट कर दिया और बैजांटाइन साम्राज्य अंततः समाप्त हो गया। उस समय विश्व के सबसे महत्वपूर्ण ईसाई महानगर को ओटोमन्स आक्रमण ने नष्ट करके उसका इस्लामीकरण कर दिया। इसका नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया।


पूर्वी यूरोप के अन्य हिस्सों में तुर्कों का विस्तार हुआ और बुल्गारिया, मैसेडोनिया, सर्बिया, बोस्निया, अल्बानिया, क्रोएशिया के कुछ हिस्सों सहित बाल्कन इस्लामी तुर्की के अधीन हो गए। पेलोपोनिस, थिसली, एथेंस और मैसेडोनिया (मूल ग्रीक क्षेत्रों) में भी उसका शासन हुआ।


लगभग 300 वर्षों के क्रूर अधिकार के बाद, ग्रीस अंततः 1829 में स्वतंत्रता की क्रांति में स्वतंत्र हो गया जिसमें ग्रीस को रूसी, फ्रांस और ब्रिटेन ने सहायता की। हालाँकि ग्रीस की वर्तमान सीमाएँ 1923 तक ही वापस ग्रीस का पुराना आकार ले पायी थीं।


1920 की सेव्रेस की संधि में, ग्रीस ने अनातोलियन मुख्य भूमि में प्राचीन यूनानी नगर स्मिर्ना के पास थोड़ी भूमि का अधिग्रहण कर लिया था। इसने अंततः ग्रीस को प्राचीन ग्रीक सीमाओं की एक झलक दी थी, हालांकि कॉन्स्टेंटिनोपल की राजधानी तो अभी भी इसमें नहीं थी।


लेकिन तुर्की यह कैसे होने दे सकता था। मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने स्मिर्ना और थ्रेस के ग्रीक संरक्षकों के विरुद्ध सेना का नेतृत्व किया और 1922 तक ग्रीस को अनातोलिया से बाहर निकाल दिया। तुर्की ने फिर एक और नरसंहार किया: इस बार यूनानियों के विरुद्ध।


अनातोलिया में बचे लगभग 264,000 ग्रीक ईसाइयों का नरसंहार किया गया। काले सागर क्षेत्रों में नरसंहार विशेष रूप से गंभीर था और इसे पोंटिक नरसंहार के रूप में जाना जाता है। काले सागर के कुछ सबसे प्राचीन यूनानी समुदाय पूर्णतः नष्ट हो गए।


पश्चिम में, स्मिर्ना के ग्रीक ईसाइयों को तुर्की मुस्लिम सेना और नागरिकों द्वारा नरसंहार का सामना करना पड़ा। इतिहासकार अर्नोल्ड टॉयनबी बताते हैं कि तुर्कों ने न केवल यूनानियों को मारा, बल्कि ईसाई उपस्थिति को पूरी तरह से मिटाने के लिए उनके घरों को पेट्रोल से जला दिया।


स्मिर्ना के ग्रीक ऑर्थोडॉक्स आर्कबिशप क्राइसोस्टोमोस को सार्वजनिक रूप से पीट-पीट कर मार डाला गया। ग्रीक ईसाइयों को अकथनीय अत्याचारों का सामना करना पड़ा। यूनानियों को अंततः उनकी प्राचीन पूर्वी मातृभूमि - स्मिर्ना, इफिसुस और अनातोलिया - में नष्ट कर दिया गया था ।


1923 में ग्रीक प्रधान मंत्री वेनिज़ेलोस ने जनसंख्या के हस्तांतरण का प्रस्ताव रखा। उसने अर्मेनियाई और यूनानियों के भयानक नरसंहार को देखा था। तुर्की ईसाईयों से पीछा छुडाना चाहता था और उसने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।


तुर्की और बाल्कन के बीच जनसंख्या का आदान-प्रदान किया गया । नरसंहार के बाद तुर्की में जो भी ईसाई बचे थे, उन्हें तुरंत ग्रीस में निष्कासित कर दिया गया। ग्रीस ने भी अपने मुसलमानों को तुर्की भेजा। विभाजन पूरा हो गया था।


यह एक पूर्ण विभाजन का एकमात्र उदाहरण है, जिसमें जनसंख्या का पूर्ण आदान-प्रदान किया गया था। जबकि यूनानियों ने अधिकतर तुर्की मुसलमानों को स्थानांतरित कर दिया, तुर्की ने अधिकांश ग्रीक ईसाइयों को मार डाला और बाकी को ग्रीस में निष्कासित कर दिया।


ग्रीस ने एक बड़ा मूल्य चुकाने के बाद, अंततः सभी मुसलमानों को तुर्की में स्थानांतरित करके स्थानीय रूप से इस्लामी समस्या का समाधान प्राप्त कर लिया था। ऐसा लग रहा था जैसे इस्लामी समस्या का स्थानीय समाधान होता है। लेकिन यहाँ कहानी समाप्त नहीं होती है।


ग्रीस की सीमा आज चार देशों के साथ लगती है: अल्बानिया, मैसेडोनिया, बुल्गारिया और तुर्की। जिनमें से दो पूरी तरह से मुस्लिम हैं, एक लगभग मुस्लिम बहुसंख्यक है और आखिरी में एक बड़ा मुस्लिम अल्पसंख्यक वाला देश| ग्रीस इस्लामी राज्यों और समुदायों से घिरा हुआ है|


ग्रीस ने अपनी सभी मुस्लिम जनसँख्या का आदान-प्रदान किया लेकिन बाल्कन में अन्य देश उतने सक्षम नहीं थे। अल्बानिया और कोसोवो लगभग पूरी तरह से मुस्लिम थे , जबकि बोस्निया में एक बड़ा मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय था और इसी तरह उत्तर मैसेडोनिया भी था। बुल्गारिया में भी कुछ मुसलमान थे।


लेकिन बाल्कन कम्युनिस्ट शासन के अधीन आ गए और 70 वर्षों तक इन देशों मज़हब पर ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन साम्यवाद के पतन के बाद मज़हब एक बार फिर सर्वोच्च हो गया और इन देशों के मज़हबी विन्यास ने ग्रीक हितों के विरुद्ध कार्य करना प्रारम्भ कर दिया।


साम्यवाद के पतन के कारण इन देशों में बुनियादी ढांचे और संस्थानों का पतन हुआ। लाखों बुल्गारियाई पश्चिमी यूरोप और अन्य देशों में भाग गए। और साम्यवादी अवसाद के कारण उनकी जनसंख्या में भारी गिरावट आई थी। अन्य देशों में भी ऐसी ही स्थिति थी।


तुर्की के मुसलमानों ने इस स्थिति का फायदा उठाया। उन्होंने 1990 के दशक में इन देशों में घुसपैठ करना प्रारम्भ कर दिया, उनके संस्थानों पर अधिकार कर लिया और बाल्कन में मुस्लिम बहुल गांवों, नगरों की स्थापना की। बुल्गारिया में अब लगभग 12% की विशाल मुस्लिम जनसँख्या है।


मैसेडोनिया लगभग वैसा ही है जहां 1971 में लेबनान था। अब इसमें 33% मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं जो पिछले तीन दशकों में प्रवास के माध्यम से तेजी से बढ़ रहा है। जल्द ही वहाँ मुस्लिम बहुमत हो सकता है।


अल्बानिया लगभग 83% मुस्लिम बहुमत का देश है और कोसोवा लगभग पूरी तरह से मुस्लिम है। और ये दोनों देश भूमध्यसागरीय क्षेत्र में बहुत सारे माफिया और अवैध गतिविधियों का नेतृत्व करते हैं। और चौथा देश निश्चित रूप से तुर्की है।


ग्रीस मुस्लिम देशों और चारों तरफ से भारी मुस्लिम अल्पसंख्यकों से घिरा हुआ है। परिणामस्वरूप ग्रीस में एक बार फिर मुस्लिम अल्पसंख्यक लगभग 2% हो गए हैं और तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर तुर्की ने अपनी पूरी ईसाई जनसँख्या को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया है।


यूरोप में में शरणार्थी संकट ने ग्रीस को क्षति पहुंचाई है  और अधिकांश अरब शरणार्थी पहले पूरे तुर्की को छोड़कर थ्रेस के माध्यम से ग्रीस में प्रवेश करते हैं। और तुर्की यूरोप के इस इस्लामी आक्रमण में उनकी सहायता करता है। इस इस्लामी आक्रमण में ग्रीस पहला अग्रिम पंक्ति वाला देश है।


इसके अलावा ग्रीस की डूबती अर्थव्यवस्था और इसकी तेजी से घटती जनसँख्या है। यह केवल समय की बात है जब तुर्की के मुसलमान एक बार फिर ग्रीस में एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक बन जायेंगे।


ग्रीस हमें सिखाता है कि इस्लामवाद और इस्लामी घुसपैठ की समस्या का कोई स्थानीय समाधान नहीं है। पड़ोसी देशों की मज़हबी जनसांख्यिकी उतनी ही मायने रखती है जितनी कि हमारे अपने देश की जनसांख्यिकी। भारत यूनानी समस्या से पर्याप्त सबक ले सकता है।


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