सुनिए वैदिक विद्वान स्वामी शांतानंद सरस्वती ''दर्शनाचार्य ''के द्वारा लिखा वैदिक लेख "श्वेताश्वतर उपनिषद का अतिसूक्ष्म परिचय"

 सुनिए वैदिक विद्वान स्वामी शांतानंद सरस्वती ''दर्शनाचार्य ''के द्वारा लिखा वैदिक लेख "श्वेताश्वतर  उपनिषद  का अतिसूक्ष्म परिचय" 

इस तरह के वैदिकलेखों प्रेरणादायककहानियां महापुरुषों के #जीवनपरिचय #नीतिगतज्ञान के लिए पंचतंत्र #चाणक्यनीति #विदुरनीति #शुक्रनीति के वचनों के साथ वैदिक भजनों के लिए भी #वैदिकराष्ट्र को लाइक करें #वैदिकराष्ट्र को शेयर करें #वैदिकराष्ट्र को सब्सक्राइब करें 

धन्यवाद

                                                       श्वेताश्वतर उपनिषद् परिचय_ 

शुद्ध  निर्मल पवित्र व उत्तम ज्ञान को देने वाला श्वेताश्वतर उपनिषद् कहलाता है । इसमें कुल छः अध्याय हैं तथा  59पृष्ठ हैं । 

 प्रथम अध्याय - इसमें ब्रह्मवादी विद्वानों के द्वारा ब्रह्म की चर्चा करते हुए  ब्रह्मांड का कारण क्या है इसके निष्कर्ष में ब्रह्म ही कारण है बताया गया है और जैसे नदी प्रवाह पूर्वक बहती जाती है इसी प्रकार जीवन भी प्रवाह पूर्वक बहता हुआ जा रहा है इसका सुन्दर चित्रण किया गया है । साथ ही ईश्वर जीव व प्रकृति इन तीन अनादि और अविनाशी पदार्थों की भी चर्चा की गई है ।

 द्वितीय अध्याय  - इसमें प्राणायाम की विधि बतलाते हुए प्राणायाम का महत्त्व भी प्रतिपादित किया गया है  साथ ही योग - ध्यान की विधि , योगी का लक्षण  जैसे उसका स्वर मधुर हो जाना , कान्ति बढ़ जाना , मल मूत्र अल्प हो जाना आदि । इसी प्रकार इस अध्याय में योग का फल या योग से प्राप्त सिद्धि का  उल्लेख  करते हुए योग ध्यान के द्वारा ब्रह्म के दर्शन करने का भी उपदेश किया गया  है । 

 तृतीय अध्याय  इस अध्याय में रुद्र नाम से ईश्वर की विनम्रतापूर्वक स्तुति की  गई है  तथा ईश्वर के विराट स्वरूप का वर्णन  किया गया है ।  वह रुद्र स्वरूप परमात्मा एक ही है , वही अपनी शक्तियों से इन लोकों का स्वामी है। सृष्टि का सर्जन करने के बाद वही इसकी रक्षा करता है और सृष्टि के अन्तकाल में वही इसे समेट लेता है ।उसके नेत्र सब जगह हैं ,वह सब कुछ देख रहा है , उसका मुख सब जगह है , परमाणु परमाणु में उसके दर्शन होते हैं । वह सहस्रों सिरों वाला , सहस्र आंखों वाला , सहस्र पावों वाला है । वह अणु से भी अणु और महान से भी महान है । इस प्रकार परमात्मा के विराट स्वरूप का यहां उल्लेख किया गया है ।

 चतुर्थ अध्याय  - इस अध्याय में बताया गया है कि ईश्वर एक है , अवर्ण है , निराकार है किन्तु अपनी शक्ति से उसने अनेक वर्ण वाले साकार संसार को रचा है । इस प्रकार ईश्वर के स्वरूप का  और भी विस्तार से वर्णन किया गया है ।इस अध्याय में ईश्वर और जीव का सुन्दर पक्षी के रूप में आलंकारिक वर्णन किया गया है तथा प्रकृति को वृक्ष के रूप में दर्शाया गया है जिस वृक्ष में एक पक्षी = जीव ,भोक्ता होकर एवं दूसरा पक्षी =  ब्रह्म , केवल दृष्टा होकर वास करते हैं । 

 पंचम अध्याय  इस अध्याय में जीव और ब्रह्म के अक्षर स्वरूप को प्रकाशित करते हुए जीवात्मा व परमात्मा को अंगुष्ठ मात्र कहा गया है तथा जीवात्मा को स्त्री पुरुष आदि लिंग से रहित बतलाते हुए वह जिस जिस  शरीर को ग्रहण करता है  उस उस के लिंग के साथ युक्त हो जाता है।

 षष्ठ अध्याय-  इस  अन्तिम अध्याय में बतलाया गया है कि कर्म और भाव के माध्यम से ब्रह्म के द्वारा  इस सृष्टि का संचालन हो रहा है ।उस परम ब्रह्म को जानकर ही समस्त दुःखों से छुटकारा मिल सकता है अन्य कोई भी मार्ग सभी दुःखों से छूटने का नहीं है ।




samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriagerajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777aryasamaj marriage rules,leagal marriage services in aryasamaj mandir indore ,advantages arranging marriage with aryasamaj procedure ,aryasamaj mandir

https://youtu.be/z6_zoinvoCE


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।