सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य '' का वैदिक लेख ''मुण्डक उपनिषद परिचय '' वैदिक राष्ट्र पर

 सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य '' का वैदिक लेख ''मुण्डक उपनिषद परिचय ''

वैदिक राष्ट्र पर 

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-  जो हमें दुःख से तार दे ऐसी वाणी जिस उपनिषद में हो उसे मुण्डक उपनिषद् कह सकते हैं अथवा जिसको पढ़ने से व्यक्ति दुःख से छूट जाए  ऐसी  ब्रह्म विद्या का उपदेश जिस उपनिषद् में हो वह मुण्डक उपनिषद् है।

यह उपनिषद्  प्रथम मुण्डक द्वितीय मुण्डक और तृतीय मुण्डक में इन तीन भागों में विभाजित है तथा प्रत्येक मुण्डक में दो - दो खण्ड हैं ।इसमें कुल 35पृष्ठ हैं ।

 प्रथम मुण्डक के प्रथम खण्ड

इसमें अपरा विद्या - परा विद्या अर्थात् भौतिक विज्ञान एवं अध्यात्म विज्ञान का वर्णन है  । प्रथम मुण्डक द्वितीय खण्ड

 इसमें  अपरा विद्या अर्थात् कर्म काण्ड तथा परा विद्या अर्थात् ज्ञान काण्ड का वर्णन करते हुए ज्ञान काण्ड की श्रेष्ठता यहां बतलायी गई है । 

द्वितीय मुण्डक प्रथम खण्ड

 इसमें अमूर्त विराट पुरुष से ही प्राण मन इन्द्रिय पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश की उत्पत्ति दिखलायी गई है ।

 द्वितीय मुण्डक द्वितीय खण्ड

 इसमें प्रणव अर्थात् ओ३म् के ध्यान से ही जीवात्मा का पूर्ण कल्याण बतलाते हुए प्रणव को धनुष और ब्रह्म को लक्ष्य बतलाया गया है जो सावधान होकर इस लक्ष्य का वेध करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप में मग्न हो कर आनन्दित हो जाता है ।

 तृतीय मुण्डक प्रथम खण्ड

  इसमें प्रकृति रूपी वृक्ष में दो पक्षियों का निवास बताया गया है । जिसमें एक पक्षी जीव है जो संसार के सुख दुःख फल का भोग करता है तथा दूसरा पक्षी   ब्रह्म है बिना सुख दुःख का भोग किये  केवल द्रष्टा बना हुआ है ।

 तृतीय मुण्डक द्वितीय खण्ड

इसमें  ब्रह्मज्ञान( वेदांत ज्ञान )से ओतप्रोत होकर ब्रह्मज्ञानी योगाभ्यास के द्वारा मोक्ष को प्राप्त करता है इसका यहां सुंदर दृष्टांत के साथ आध्यात्मिक वर्णन किया गया है।इस उपनिषद् का सम्बन्ध अथर्ववेद से बतलाया जाता है ।

 स्वामी शान्तानन्द सरस्वती

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