सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य ''का वैदिक लेख ''तैत्तरीयोपनिषद् का परिचय '' इस तरह के वैदिकलेखों प्रेरणादायककहानियां महापुरुषों के #जीवनपरिचय #नीतिगतज्ञान के लिए पंचतंत्र #चाणक्यनीति #विदुरनीति #शुक्रनीति के वचनों के साथ वैदिक भजनों के लिए भी #वैदिकराष्ट्र को लाइक करें #वैदिकराष्ट्र को शेयर करें #वैदिकराष्ट्र को सब्सक्राइब करें धन्यवाद

 सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य ''का वैदिक लेख ''तैत्तरीयोपनिषद् का परिचय ''

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तैत्तिरीय उपनिषद् तीन भागों में  विभक्त है जिसे वल्ली के नाम से प्रस्तुत किया गया है - 1.शिक्षा ध्याय वल्ली 2. ब्रह्मानन्द वल्ली 3. भृगु वल्ली । इसमें कुल 56पृष्ठ हैं। 

1- शिक्षाध्याय वल्ली - इस वल्ली में 12 अनुवाक हैं । 

 प्रथम अनुवाक में शन्नो मित्रः शं वरुणः । शं नो ......इस मंत्र के द्वारा ईश्वर से प्रार्थना की गई है ।

 द्वितीय अनुवाक में वर्ण , स्वर, मात्रा , बल और साम के ज्ञान के अनन्तर शब्द सन्तान का प्रारम्भ आदि विषयों का वर्णन है।

 तृतीय अनुवाक में लोक में महा सन्धियां क्या हैं , विद्या में महा सन्धियां क्या हैं , प्रजा में महा सन्धियां क्या हैं आदि विषयों का उल्लेख है ।

 चतुर्थ अनुवाक में इन्द्र परमात्मा से  दिव्य गुणों को धारण करने आदि के लिए प्रार्थना है ।

 पंचम अनुवाक में भूः  भुवः सुवः इन तीन व्याहृतियों सहित एक चौथी व्याहृति महः का भी वर्णन है ।

 षष्ठ अनुवाक में हृदय के भीतर पुरुष जीवात्मा का निवास बतलाया है । मुक्तात्मा बनने वाले आत्मा के लिए सुषुम्णा नाड़ी के द्वारा शरीर से बाहर निकलने का विधान बताया गया है । भुः भुवः सुवः का सम्बन्ध अग्नि वायु आदित्य एवं महः का सम्बन्ध ब्रह्म से बताया गया है ।

 सप्तम अनुवाक में पंचक अर्थात् पांच पांच के समुदाय वाले पदार्थों का उल्लेख है जैसे अग्नि वायु आदित्य चन्द्रमा नक्षत्र आदि पंचक ।

 अष्टम अनुवाक में बताया गया है कि ओम् ही ब्रह्म है , संसार ओम् की ही अनुकृति है , अध्वर्यु ओम् कहकर यजुर्वेद का पाठ करता है ,यज्ञ का ब्रह्मा ओम् से परमात्मा की स्तुति करता है और ओम् कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ करने की अनुज्ञा देता है । आदि।

 नवम अनुवाक में कहा गया है कि ऋत का पालन करे , परन्तु स्वाध्याय और प्रवचन को न भूले । सत्य का पालन करे , परन्तु स्वाध्याय और प्रवचन को न छोड़े आदि ।

 दशम अनुवाक में कहा है कि यह शरीर उल्टा टंगा हुआ वृक्ष है।

 एकादश अनुवाक में वेद पढ़ चुकने के अनन्तर आचार्य के द्वारा शिष्यों को दिये जाने वाले दीक्षान्त भाषण का वर्णन है जैसे सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः । आदि ।

 द्वादश अनुवाक में पुनः शं नो मित्रः शं वरुणः । शं नो ......... मंत्र से ईश्वर से प्रार्थना की गई है।

2.  ब्रह्मानन्द वल्ली -इस वल्ली में 9 अनुवाक  हैं जिनमें पंचम अनुवाक तक  अन्नमय कोश , प्राणमय कोश , मनोमय कोश , विज्ञानमय कोश एवं आनन्दमय कोश का विस्तार से विवेचन किया गया है।  फिर षष्ठ अनुवाक में भी इन कोशों का कुछ वर्णन करके आगे बतलाया गया है कि  सृष्टि उत्पन्न करने के लिए ब्रह्म ने कामना की फिर तप  अर्थात् उग्र क्रिया भी किया और इस प्रकार उग्र क्रिया से सम्पूर्ण विश्व को उत्पन्न किया । सप्तम अनुवाक में ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन है  तदनन्तर अष्टम अनुवाक में  ब्रह्मानन्द में आनन्द की मात्रा का रोचक वर्णन किया गया है फिर नवम अनुवाक में बताया गया है कि जो आनन्द स्वरूप ब्रह्म को जान लेता है उसे कभी सन्ताप नहीं होता और वह ब्रह्मानन्द में लीन हो जाता है ।

3-  भृगु वल्ली - इस वल्ली में 10अनुवाक हैं जिसमें षष्ठ अनुवाक तक  भृगु के पिता  वरुण के द्वारा ब्रह्म सम्बन्धी  उपदेश दिये जाने का वर्णन है जैसे अन्न ब्रह्म है , प्राण ब्रह्म है ,मन ब्रह्म है , विज्ञान ब्रह्म है,आनंद ब्रह्म है ।फिर सप्तम अनुवाक से आगे दशम अनुवाक तक अन्न की महिमा आदि विषयों का उपदेश किया गया है ।जैसे अन्न की निन्दा न करे , अन्न का अनादर न करे , अन्न को खूब बढ़ावे , अतिथि आने पर उसे अन्न से तृप्त करे । आदि ।

                                                    स्वामी शान्तानन्द सरस्वती



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