सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य ''का वैदिक लेख ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य '' इस तरह के वैदिकलेखों प्रेरणादायककहानियां महापुरुषों के #जीवनपरिचय #नीतिगतज्ञान के लिए पंचतंत्र

 सुनिए वैदिक विद्वान ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य ''का वैदिक लेख ''स्वामी शांतानंद सरश्वती दर्शनाचार्य ''

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 .                                                           ऐतरेय उपनिषद् परिचय 

ऐतरेय उपनिषद् में तीन अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में तीन खण्ड हैं जबकि द्वितीय व तृतीय अध्याय के कोई भी खण्ड नहीं हैं। इस उपनिषद् में केवल 22पृष्ठ हैं ।

 प्रथम अध्याय के प्रथम खंड में बताया गया है कि जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी तब चेतन अवस्था में रहने वाला केवल परमात्मा ही था उत्पत्ति से पूर्व  परमात्मा के अतिरिक्त कोई भी चेतन अवस्था में नहीं था वह अकेला ही सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक होकर विद्यमान था । फिर उसने सृष्टि उत्पन्न करने के लिए ईक्षण किया और अपने ज्ञान मय सामर्थ्य से  लोक लोकान्तरों का किस प्रकार सृजन किया इसका  विस्तृत वर्णन यहां किया गया है । 

 प्रथम अध्याय द्वितीय खंड  इसमें  गाय घोड़े आदि प्राणियों से मानव शरीर की श्रेष्ठता बतलाते हुए इसे सबसे  सुन्दर कृति के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

 प्रथम अध्याय तृतीय खंड 

इस खंड में बताया गया है कि  जगत रचयिता परमेश्वर के द्वारा ही लोक एवं लोकपाल रचे गए तथा उसी के ज्ञानमय तप के द्वारा  जल अन्न आदि की उत्पत्ति होती है । इस विषय में यहां एक सुंदर आलंकारिक कथा का वर्णन भी  मिलता है ।

द्वितीय अध्याय में गर्भ विज्ञान , पुरुष की उत्पत्ति , जन्म सम्बन्धी सुंदर चित्रण  करने के साथ साथ वामदेव ऋषि के गर्भ वास से लेकर मोक्ष प्राप्त करने तक का एक प्रेरक एवं संक्षिप्त दृष्टान्त का वर्णन  किया गया है । 

 तृतीय अध्याय में जीवात्मा के गुणों का वर्णन तथा ब्रह्म के स्वरूप का भी वर्णन है तथा यहां यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि जो ब्रह्म है वही इन्द्र है वही प्रजापति भी है । 

इस उपनिषद् का सम्बन्ध ऋग्वेद से बताया जाता है ।

 स्वामी शान्तानन्द सरस्वती

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