वैदिक धर्म की विशेषताएं (१ ) वैदिक धर्म संसार के सभी मतों और सम्प्रदायों का उसी प्रकार आधार है जिस प्रकार संसार की सभी भाषाओं का आधार संस्कृत भाषा है जो सृष्टि के प्रारम्भ से अर्थात् १,९६,०८,५३,१२१ वर्ष से अभी तक अस्तित्व में है।संसार भर के अन्य मत,पन्थ किसी पीर-पैगम्बर,मसीहागुरु,महात्मा आदि द्वारा चलाये गये हैं,किन्तु चारों वेदों के अपौरुषेय होने से वैदिक धर्म ईश्वरीय है,किसी मनुष्य का चलाया हुआ नहीं है। (२) वैदिक धर्म में एक निराकार,सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,न्यायकारी ईश्वर को ही पूज्य(उपास्य) माना जाता है,उसके स्थान में अन्य देवी-देवताओं को नहीं। ( ३) ईश्वर अवतार नहीं लेता अर्थात् कभी भी शरीर धारण नहीं करता। ( ४) जीव और ईश्वर(ब्रह्म) एक नहीं हैं बल्कि दोनों की सत्ता अलग-अलग है और मूल प्रकृति इन दोनों से अलग तीसरी सत्ता है।ये तीनों अनादि हैं तीनों ही एक दूसरे से उत्पन्न नहीं होते। ( ५ ) वैदिक धर्म के सब सिद्धान्त सृष्टिक्रम के नियमों के अनुकूल तथा बुद्धि सम्मत हैं।जबकि अन्य मतों के बहुत से सिद्धान्त बुद्धि की घोर उपेक्षा करते हैं। ( ६) हरिद्वार,काशी,मथुरा,कुरुक्षेत्र,अमरना