क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे

 परमवीर अखंड ब्रह्मचारी अति बलशाली महावली आर्यवीर हनुमान जी की जन्म जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन्


क्या हनुमान आदि वानर बन्दर थे?

वाल्मीकि रामायण में मर्यादा पुरुषोतम श्री राम चन्द्र जी महाराज के पश्चात् परम बलशाली वीर शिरोमणि हनुमान जी का नाम स्मरण किया जाता है। हनुमान जी का जब हम चित्र देखते हैं तो उसमें उन्हें एक बन्दर के रूप में चित्रित किया गया है जिनके पूंछ भी लगी हुई है।इस चित्र को देखकर हमारे मन में अनेक प्रश्न भी उठते हैं जैसे-

क्या हनुमान जी वास्तव में बन्दर थे?क्या वाकई में उनके पूंछ लगी हुई थी ?

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अज्ञानी लोग वीर हनुमान का नाम लेकर परिहास करने का असफल प्रयास करते रहते है।आईये इन प्रश्नों का उत्तर वाल्मीकि रामायण से ही प्राप्त करते है।

1. प्रथम “वानर” शब्द पर विचार करते है। सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है "बन्दर" परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहाँ का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है। उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते है। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

2. सुग्रीव, बालि आदि का जो चित्र हम देखते है उसमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती हैं। परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं होती? नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता हैं की हनुमान आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र है।

3. किष्किन्धा कांड (3/28-32) में जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले-

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः |
न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् || 4/3/28

अर्थात-
“ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया है, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया है, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती है”।

4. सुंदर कांड (30/18-20) में जब हनुमान अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले हनुमान जी सोचते है-

“यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूँगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूँगा।”

इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

5. हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य वानर जैसे की बालि पुत्र अंगद का भी वर्णन वाल्मीकि रामायण में संसार के श्रेष्ठ महापुरुष के रूप में किष्किन्धा कांड 54/2 में हुआ है। हनुमान बालि पुत्र अंगद को अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त मानते थे।

बुद्धि के यह आठ अंग हैं- सुनने की इच्छा, सुनना, सुनकर धारण करना, ऊहापोह करना, अर्थ या तात्पर्य को ठीक ठीक समझना, विज्ञान व तत्वज्ञान।

चार प्रकार के बल हैं- साम , दाम, दंड और भेद।

राजनीति के चौदह गुण हैं- देशकाल का ज्ञान, दृढ़ता, कष्टसहिष्णुता, सर्वविज्ञानता, दक्षता, उत्साह, मंत्रगुप्ति, एकवाक्यता, शूरता, भक्तिज्ञान, कृतज्ञता, शरणागत वत्सलता, अधर्म के प्रति क्रोध और गंभीरता।

भला इतने गुणों से सुशोभित अंगद बन्दर कहाँ से हो सकते है?

6. एक शंका हमारे समक्ष आती है कि क्या हनुमान जी उड़ कर अपनी पुंछ की सहायता से समुद्र पार कर लंका में गये थे?

हनुमान जी के विषय में यह भ्रान्ति अनेक बार सामने आती है कि वह उड़ कर समुद्र कैसे पार कर गए ? क्यूंकि मनुष्य द्वारा उड़ना संभव नहीं है? सत्य यह है कि हनुमान जी ने उड़ कर नहीं अपितु तैर कर समुद्र को पार किया था। रामायण में किष्किन्धा कांड के अंत में यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया गया है। सम्पाती के वचन सुनकर अंगदादि सब वीर समुद्र के तट पर पहुँचे, तो समुद्र के वेग और बल को देखकर सबके मन खिन्न हो गये। अंगद ने सौ योजन के समुद्र को पार करने का आवाहन किया। युवराज अंगद के सन्देश को सुनकर वानरों ने 100 योजन के समुद्र को पार करने में असमर्थता दिखाई। तब अंगद ने कहा कि मैं 100 योजन तैरने में समर्थ हूँ। पर वापिस आने कि मुझमे शक्ति नहीं है। तब जाम्बवान ने कहा आप हमारे स्वामी है आपको हम जाने नहीं देंगे। इस पर अंगद ने कहा यदि मैं न जाऊँ और न कोई और पुरुष जाये,तो फिर हम सबको मर जाना ही अच्छा है। क्यूंकि कार्य किये बिना, सुग्रीव के राज्य में जाना भी मरना ही है।

अंगद के इस साहस भरे वाक्य को सुनकर जाम्बवान बोले-राजन मैं अभी उस वीर को प्रेरणा देता हूँ, जो इस कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है। इसके पश्चात हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण करा प्रेरित किया गया। हनुमान जी बोले-"मैं इस सारे समुद्र को बाहुबल से तर सकता हूँ और मेरे ऊरु, जंघा के वेग से उठा हुआ समुद्र जल आकाश को चढ़ते हुए के तुल्य होगा। मैं पार जाकर उधर की पृथ्वी पर पाँव धरे बिना, अर्थात विश्राम करे बिना फिर उसी वेग से इस ओर आ सकता हूँ। मैं जब समुद्र में जाऊँगा, अवश्य खिन्न हुए लता, वृक्ष आकाश को उड़ेंगे, अर्थात अन्य स्थान का आश्रय ढूंढेंगे।" (श्लोक किष्किन्धा काण्ड 67/26)

इसके पश्चात् हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़ गये। उनके वेग से उस समय प्रतीत होता था कि पर्वत काँप रहा है। हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में ऐसा शब्द हुआ जैसे कि मेघ गर्जन से होता है। और हनुमान जी ने वेग से उस महासमुद्र को देखते ही देखते पार कर लिया।
हिंदी भाषा में एक प्रसिद्द मुहावरा है" हवा से बातें करना" अर्थात अत्यंत वेग से जो चलता या तैरता या गति करता है, उसे हवा से बातें करना कहते है। हनुमान जी ने इतने वेग से समुद्र को पार किया कि उपमा में हवा से बातें करना परिवर्तित होकर हवा में उड़ना हो गया। इसी से यह भ्रान्ति हुई कि हनुमान जी हवा में उड़ते थे। जबकि सत्य यह है कि वह ब्रह्मचर्य के बल पर हवा के समान तेज गति से कार्य करते थे।

अशोक वाटिका में पकड़े जाने पर जब हनुमान जी को रावण के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो उनका उपहास करने की मंशा से रावण के सैनिकों ने उन्हें जंगली जानवर जैसा दिखाने के लिए पुंछ लगाकर उपहास करने का स्वांग किया। मूर्खों से इससे अधिक कुछ अपेक्षित भी नहीं हैं। हनुमान जी ने भी इस उपहास का समुचित प्रतिउत्तर दिया। उसी आग लगी पुंछ से पूरी लंका को भस्म कर रावण को पाठ सिखाया।

7. अंगद की माता तारा के विषय में मरते समय किष्किन्धा कांड 16/12 में बालि ने कहा था कि-

“सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्षम विषयों के निर्णय करने तथा नाना प्रकार के उत्पातों के चिन्हों को समझने में सर्वथा निपुण है। जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे नि:संग होकर करना। तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता।”

ऐसे गुण विशेष मनुष्यों में ही संभव है।

8 . किष्किन्धा कांड (25/30) में बालि के अंतिम संस्कार के समय सुग्रीव ने आज्ञा दी – मेरे ज्येष्ठ बन्धु आर्य का संस्कार राजकीय नियन के अनुसार शास्त्र अनुकूल किया जाये। किष्किन्धा कांड (26/10) में सुग्रीव का राजतिलक हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया।

क्या बंदरों में शास्त्रीय विधि से संस्कार होता हैं?

9 . जहाँ तक जटायु का प्रश्न है, वह गिद्ध नामक पक्षी नहीं था। जिस समय रावण सीता का अपहरण कर उसे ले जा रहा था। तब जटायु को देख कर सीता ने कहाँ –
जटायो पश्य मम आर्य ह्रियमाणम् अनाथ वत् |
अनेन राक्षसेद्रेण करुणम् पाप कर्मणा || अरण्यक 49/38

हे आर्य जटायु ! यह पापी राक्षस पति रावण मुझे अनाथ की भान्ति उठाये ले जा रहा है।

कथम् तत् चन्द्र संकाशम् मुखम् आसीत् मनोहरम् |
सीतया कानि च उक्तानि तस्मिन् काले द्विजोत्तम || 68/6

अर्थात -यहाँ जटायु को आर्य और द्विज कहा गया है। यह शब्द किसी पशु-पक्षी के सम्बोधन में नहीं कहे जाते।

रावण को अपना परिचय देते हुए जटायु ने कहा -

जटायुः नाम नाम्ना अहम् गृध्र राजो महाबलः ।अरण्यक 50/4

अर्थात- मैं गृध कूट का भूतपूर्व राजा हूँ और मेरा नाम जटायु है।

यह भी निश्चित हैं की पशु-पक्षी किसी राज्य का राजा नहीं हो सकते। इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं कि जटायु पक्षी नहीं था, अपितु एक मनुष्य था। जो अपनी वृद्धावस्था में जंगल में वास कर रहा था।

10. जहाँ तक जाम्बवान के रीछ होने का प्रश्न है।यह भी एक भ्रान्ति है।रामायण में वर्णन मिलता है कि जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रहमास्त्र से घायल हो गए थे। तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवान के पास परामर्श लेने गये। तब जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय जाकर ऋषभ नामक पर्वत और कैलाश नामक पर्वत से संजीवनी नामक औषधि लाने को कहा था।
इसका सन्दर्भ रामायण के युद्ध कांड सर्ग 74/31-34 में मिलता है।

आप्त काल में बुद्धिमान और विद्वान जनों से संकट का हल पूछा जाता है। जैसे युद्धकाल में ऐसा निर्णय किसी अत्यंत बुद्धिवान और विचारवान व्यक्ति से पूछा जाता है। पशु-पक्षी आदि से ऐसे संकट काल में उपाय पूछना सर्वप्रथम तो संभव ही नहीं हैं। दूसरे बुद्धि से परे की बात है। इसलिए स्वीकार्य नहीं है।

इसलिए जाम्बवान का रीछ जैसा पशु नहीं अपितु महाविद्वान होना ही संभव है।

इन सब वर्णन और विवरणों को बुद्धिपूर्वक पढ़ने से यह सिद्ध होता है कि हनुमान, बालि, सुग्रीव आदि विद्वान एवं बुद्धिमान मनुष्य थे। उन्हें बन्दर आदि मानना केवल मात्र एक कल्पना है और अपने श्रेष्ठ महापुरुषों के विषय में असत्य कथन है।
parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriagerajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777aryasamaj marriage rules,leagal marriage services in aryasamaj mandir indore ,advantages arranging marriage with aryasamaj procedure ,aryasamaj mandir marriage rituals

Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।