निराकार ईश्वर की उपासना के प्रमाण

 निराकार ईश्वर की उपासना के प्रमाण

जब वेद के द्वारा ईश्वर ने बता दिया कि मूर्ति पूजा जड़ पूजा कब्र पूजा मुर्दा पूजा मत करो तो तुम हिंदू सुधरना क्यों नही चाहते, वेद से बडा कुछ नही,

स पर्यगात् शुक्रम् अकायम्… (यजुर्वेद ४०/८) इस मंत्र में आया है कि ईश्वर कण-कण में व्यापक है और शरीर धारण नहीं करता है।

न तस्य प्रतिमा अस्ति .. (यजुर्वेद ३२/३) इस मंत्र में स्पष्ट आया है कि सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सर्वान्तर्यामी ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती है।

इसी प्रकार वेदान्त दर्शन के चतुर्थ अध्याय के प्रथम पाद के चौथे सूत्र में ऋषि ने कहा, है-'न प्रतीके न हि सः' अर्थात् जड़ पदार्थों में, मूर्ति आदि में परमात्म - बुद्धि कल्पित नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वह जड़ पदार्थ परमात्मा नहीं है।

यद्यपि उस पदार्थ में ईश्वर है लेकिन वह जड़ पदार्थ ईश्वर नहीं है इसलिए उस जड़ पदार्थ को ईश्वर मानकर के उसकी उपासना नहीं करनी चाहिए।

इसी प्रकार सांख्य दर्शन में भी एक सूत्र आया है 'ध्यानं निर्विषयं मनः' (६/२५) इसमें भी ऋषि ने कहा है कि ध्यान के काल में मन किसी लौकिक विषय वाला नहीं होना चाहिए। अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध जो इन्द्रियों के विषय हैं उनका चिंतन नहीं करना चाहिए। जब हम किसी जड़ पदार्थ का, उसके रंग, रूप, आकार का ध्यान करते हैं तो वह वस्तु ध्यान का विषय बन जाता है। इसलिए यहाँ पर ऋषियों ने ध्यान के विषय में स्पष्ट निर्देश किया है कि जड़ पदार्थों को ले करके ईश्वर का ध्यान नहीं करना चाहिए। उपर्युक्त दर्शन आदि ग्रंथों में आए मंत्रों और सूत्रों से यह सिद्ध होता है कि ईश्वर निराकार है । ईश्वर में जो गुण हैं उन्हीं गुणों के माध्यम से ईश्वर का ध्यान किया जाना चाहिए। इसी ध्यान से ईश्वर का साक्षात्कार होता है। और निराकार ईश्वर के वे गुण हमारे में आते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य विधि से अन्य आलंबन को में में रख करके ध्यान करते हैं तो वह ध्यान नही होता है।

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