1000 साल की गुलामी हम भारतीयों मे भूलने का रोग बहुत पुराना है

  1000 साल की गुलामी हम भारतीयों मे भूलने का रोग बहुत पुराना है। इसी भूलने के कारण हम 1000 साल गुलाम रहे। परंतु दुनिया नहीं भूलती है।चित्र 24 अप्रैल 1915 के तुर्की ( आटोमन साम्राज्य) के मुस्लिमों द्वारा आर्मेनिया के 10 लाख इसाइयों के नरसंहार से संबन्धित है। तुर्की वैसे ही आज तक भी इस नरसंहार को नकारता है जैसे भारतीय मुस्लिम और झामपंथी औरंगजेब के नरसंहार को नकारते हैं। कल जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने तुर्की के राष्ट्रपति को चेतावनी दी और इस नरसंहार को स्वीकार करने के लिए बोला तो मुझे यह लेख लिखने की इच्छा हुई। 2016 मे जर्मन संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें पहले विश्व युद्ध के दौरान तुर्की के ओटोमान साम्राज्य द्वारा अर्मेनियाई लोगों की हत्या को नरसंहार घोषित किया गया है. तुर्की ने इसे जर्मनी की ऐतिहासिक ग़लती बताया है और बर्लिन से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है.2015 मे जब पोप ने इसे 20वीं सदी का प्रथम नरसंहार बताया तो तुर्की ने पोप का विरोध किया। कुछ साल पहले यात्रा पर अर्मेनिया गए फ्रांस के राष्ट्रपति सारकोजी ने तुर्की से कहा कि हत्याओं को नरसंहार के तौर पर स्वीकारे. उन्होंने कहा, "अगर तुर्की ऐसा नहीं करता है तो फ्रांस एक कदम आगे बढ़कर अपने कानूनों में बदलाव कर सकता है और नरसंहार को नकारने को गैरकानूनी बना सकता है."------------------------------------------------------------------------------------------------------------औरंगजेब आज भी भारतीय मुस्लिमों का हीरो है। ------------------------------------------------------------------------------------------------------------गुरु तेगबहादुर, भाई सति दास, भाई मति दास भाई दयाला जी को औरंगजेब ने कैसे भयानक तरीके से मारा वह किसी से छुपा नहीं है। इतना ही नहीं जब गुरु जी का सिर भाई जैता जी आनन्दपुर ले जा रहे थे तब भी औरंगजेब की फौज ने उनका पीछा किया। तब हरियाणा के एक जाट ( दादा कुशाल सिंह दहिया) ने अपना सिर कटवाकर औरंगजेब से सैनिको से गुरु जी का सिर बचवाया। गुरु गोबिन्द सिंह के बच्चों को दीवार मे चुनने मे औरंगजेब की सहमति को सभी जानते हैं। ---औरंगजेब ने किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे। हिन्दुओं को इस्लाम अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था। ऐसे में तिलपत गढ़ी में जन्मे गोकुल सिंह ने आवाज बुलंद की। उन्होंने मुगल शासक को किसी भी प्रकार की मालगुजारी देने से मना कर दिया। तिलमिलाए औरंगजेब के आदेश पर मुगल फौज ने तिलपत गढ़ी पर हमला कर दिया। 10 मई 1666 को तिलपत की लड़ाई में वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब को हरा दिया। इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों में गोकुल सिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। उसने कहा कि माफी मांग लें। गोकुल सिंह ने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इससिए माफी क्यों मागूं। इससे औरंगजेब तिलमिला गया। वह 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से मथुरा आ गया। युद्ध की तैयारिया शुरू हो गईं। दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में तिलपत से 20 मील दूर सिहोर में दूसरा युद्ध हुआ। मुगलों के पास तोपखाना थी। तीन दिन तक युद्ध हुआ। मुगलों की तोपों ने सबकुछ नष्ट कर दिया। गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य वीरों को बंदी बना लिया गया।आगरा किले में औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट ते सामने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते तो इस्लाम स्वीकार कर लो। गोकुल सिंह ने वीरतापूर्वक इनकार कर दिया। फिर एक जवनरी, 1670 को गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य को बंदी बनाकर कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम स्वीकार नहीं किया। उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है।parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriagerajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777aryasamaj marriage rules,leagal marriage services in aryasamaj mandir indore ,advantages arranging marriage with aryasamaj procedure ,aryasamaj mandir marriage rituals

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