परिस्थितियां सदा एक सी नहीं रहती

     परिस्थितियां सदा एक सी नहीं रहती। इसलिए खराब परिस्थितियों में भी निराश न हों। थोड़ा धैर्य रखें। पुरुषार्थ करने से अच्छी परिस्थितियां भी निश्चित रूप से आएंगी। ऐसे सोचकर आशावादी बनें। आलसी न बनें। भाग्य के भरोसे न छोड़ दें। पुरुषार्थी बनें।

       साल भर में अनेक मौसम बदलते हैं। सदा एक सा मौसम नहीं रहता। कभी गर्मी आती है, कभी वर्षा आती है, कभी ठंडी आती है।

 जब गर्मी आती है, तो बहुत से लोग गर्मी से परेशान हो जाते हैं, और चिल्लाने लगते हैं, हाय गर्मी, हाय गर्मी। जब वर्षा आती है, तो उस समय भी परेशान हो जाते हैं, क्या मुसीबत है, चारों तरफ पानी ही पानी। टूटी सड़कें। सब रास्ते बंद। बाढ़ का वातावरण इत्यादि, ऐसे वाक्यों को बोल बोलकर स्वयं दुखी होते रहते हैं, और दूसरों को भी परेशान करते रहते हैं। इसी प्रकार से जब ठंडी पड़ती है, तब भी दुखी परेशान रहते हैं, कि इतनी ठंड पड़ रही है, क्या करें, कुछ काम नहीं होता। हाथ पैर ठिठुरते जाते हैं इत्यादि। अर्थात इन मनुष्यों को कहीं भी, किसी भी परिस्थिति में शान्ति नहीं है। हर परिस्थिति को कोसते रहते हैं। ऐसे लोग कभी भी सुख से नहीं जी सकते।

          ईश्वर ने हमारे लिए इतने अच्छे मौसम बनाएं हैं। सभी का अपना अपना महत्त्व है। सभी आवश्यक हैं। सभी का लाभ लेना चाहिए और संतोष का पालन करना चाहिए। जहां ऐसी मौसम आदि की कुछ कुछ परेशानियां होती भी हैं, तो वहां उनसे अपनी सुरक्षा भी अवश्य करनी चाहिए, और परिस्थिति बदलने तक धैर्य भी रखना चाहिए। क्योंकि मौसम को तत्काल बदलना आपके अधिकार में नहीं है। 

         मौसम के अतिरिक्त, जीवन में कुछ और प्रतिकूल परिस्थितियां भी आती हैं।  कभी व्यापार में मंदी आ गई, कभी स्वास्थ्य बिगड़ गया, कभी किसी ने झूठा आरोप लगा दिया, कभी किसी ने व्यर्थ बदनाम कर दिया, कभी किसी ने कुछ रुपया उधार ले लिया और चुकाया नहीं इत्यादि, ऐसी भी अनेक परिस्थितियां आती रहती हैं, उनमें भी परेशान नहीं होना चाहिए। तब क्या करना चाहिए?

          जिन परिस्थितियों को बदलना आपके अधिकार में नहीं है, जैसे मौसम बदलना, आंधी तूफान बाढ़ को रोक देना इत्यादि, ऐसी परिस्थितियों में धैर्य रखना चाहिए, और ऐसी आपत्तियों से अपनी सुरक्षा करनी चाहिए।

          जिन परिस्थितियों को, आप बदल सकते हैं, और सुधार सकते हैं। जैसे यथाशक्ति अपनी और दूसरों की गरीबी दूर करना, अपनी बुद्धि को बढ़ाना, आलस्य प्रमाद आदि दोषों को छोड़ना, हठ दुराग्रह आदि का त्याग करना, पाखंड और अंधविश्वास से बचना तथा दूसरों को भी बचाना इत्यादि। उन परिस्थितियों को सुधारने के लिए आपको पूर्ण पुरुषार्थ करना चाहिए। यदि आप ऐसा पुरुषार्थ करेंगे, कि बुद्धिमत्ता एवं दूरदर्शिता से सब काम करें, देश धर्म समाज की यथाशक्ति सेवा करें, सच्ची और अच्छी बातें स्वयं सीखें और अपने मित्रों पड़ोसियों परिवार वालों को भी सिखाएं इत्यादि, तो आप उन प्रतिकूल परिस्थितियों को भी बदल सकते हैं। अपने परिवार समाज राष्ट्र और विश्व को भी सुखी कर सकते हैं। इसलिये ऐसी परिस्थितियों में पुरुषार्थ करें।

        और जब अनुकूल परिस्थितियां आएं, सुख संपत्ति परिवार में आनंद हो, घर में सब हँसी खुशी का वातावरण हो, तब ईश्वर का धन्यवाद करें।

       सारी बात का सार यह हुआ, कि जहां जहां खराब परिस्थितियों को बदलना आपके अधिकार से बाहर की बात है, वहां तो धैर्य रखें। जहां आप खराब परिस्थितियों को बदल सकते हों, वहां पुरुषार्थ करें। और अच्छी अनुकूल खुशहाल परिस्थितियों में ईश्वर का धन्यवाद करें। तभी सुखमय जीवन जी पाएंगे।

    -- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक 

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