महर्षि दयानंद के विषय में समाज सुधारकों/चिंतकों के विचार

 महर्षि दयानंद के विषय में समाज सुधारकों/चिंतकों के विचार

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१- “स्वराज्य और स्वदेशी का सर्वप्रथम मन्त्र प्रदान करने वाले जाज्वल्यमान नक्षत्र थे दयानंद |”


– लोक मान्य तिलक


२- आधुनिक भारत के आद्द्निर्मता तो दयानंद ही थे | महर्षि दयानन्द सरस्वती उन महापुरूषो मे से थे जिन्होनेँ स्वराज्य की प्रथम घोषणा करते हुए, आधुनिक भारत का निर्माणकिया ।

हिन्दू समाज का उद्धार करने मेँ आर्यसमाज का बहुत बड़ा हाथ है।


- नेता जी सुभाष चन्द्र बोस


३- “सत्य को अपना ध्येय बनाये और महर्षि दयानंद को अपनाआदर्श|”


- स्वामी श्रद्धानंद


४- “महर्षि दयानंद इतनी बड़ी हस्ती हैं के मैं उनके पाँवके जूते के फीते बाधने लायक भी नहीं |”- ए .ओ.ह्यूम


५- “स्वामी जी ऐसे विद्वान और श्रेष्ठ व्यक्ति थे, जिनका अन्य मतावलम्बी भी सम्मान करतेथे।”


- सर सैयद अहमद खां


६- “आदि शङ्कराचार्य के बाद बुराई पर सबसे निर्भीक प्रहारक थे दयानंद |”


- मदाम ब्लेवेट्स्की


७- “ऋषि दयानन्द का प्रादुर्भाव लोगों को कारागार से मुक्त कराने और जाति बन्धन तोड़ने के लिए हुआ था। उनका आदर्श है-आर्यावर्त ! उठ, जाग, आगे बढ़।समय आ गया है, नये युग में प्रवेश कर।”


- फ्रेञ्च लेखक रिचर्ड


८- “गान्धी जी राष्ट्र-पिता हैं, पर स्वामी दयानन्द राष्ट्र–पितामह हैं।”

- पट्टाभि सीतारमैया


९- “भारत की स्वतन्त्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानन्द ने डाली थी।”


- सरदार पटेल


१०- “स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने आर्यावर्त (भारत)आर्यावर्तीयों (भारतीयों) के लिए की घोषणा की।”

- एनी बेसेन्ट


११- “महर्षि दयानंद स्वाधीनता संग्राम के सर्वप्रथम योद्धा थे |”

- वीर सावरकर


१२- “ऋषि दयानंद कि ज्ञानाग्नि विश्व के मुलभुत अक्षर तत्व का अद्भुत

उदाहरण हैं |”


-डा. वासुदेवशरण अग्रवाल


१३- “ऋषि दयानंद के द्वारा कि गई वेदों कि व्याख्या कि पद्धति बौधिकता,

उपयोगिता, राष्ट्रीयता एव हिंदुत्व के परंपरागत आदेशो के अद्भुत योग का परिणाम हैं |”


-

एच. सी. ई. जैकेरियस


१४- “स्वामी दयानंद के राष्ट्र प्रेम के लिए उनके द्वारा उठाये गए कष्टों, उनकी हिम्मत, ब्रह्मचर्य जीवन और अन्य कई गुणों के कारण मुझको उनके प्रति आदर हैं | उनका जीवन हमारे लिए आदर्श बन जाता हैं | भारतीयों ने उनको विष पिलाया और वे भारत को अमृत पीला गए|”


- सरदार पटेल


१५- “दयानंद दिव्य ज्ञान का सच्चा सैनिक था, विश्व को प्रभु कि शरणों में लाने वाला योद्धा और मनुष्य व संस्थाओ का शिल्पी तथा प्रकृति द्वारा आत्माओ के मार्ग से उपस्थितकि जाने वाली बाधाओं का वीर विजेता था|”


- योगी अरविन्द


१६- “मुझे स्वाधीनता संग्राम मे सर्वाधिक प्रेरणा महर्षि के ग्रंथो से मिली है |”


- दादा भाई नैरो जी


१७- “मैंने राष्ट्र, जाती और समाज की जो सेवा की है उसकाश्री महर्षि दयानंद को जाता है|”


- श्याम जी कृष्ण वर्मा


१८- स्वामी दयानन्द मेरे गुरु है मैने संसार मेँ केवल उन्ही को गुरु माना है वे मेरे धर्म के पिता है और आर्यसमाज मेरी धर्म की माता है, इन दोनो की गोदी मे मै पला हूँ, मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे गुरु ने मुझे स्वतन्त्रता का पाठ पढ़ाया ।


- पंजाब केसरी लाला लाजपत राय


१९- “राजकीय क्षेत्र मे अभूतपूर्व कार्य करने वाले महर्षि दयानंदमहान राष्ट्रनायक और क्रन्तिकारी महापुरुष थे |”


- लाल बहादुर शास्त्री


२०- सत्यार्थ प्रकाश का एक-एक पृष्ठ एक-एक हजार का हो जाय तब भी मै अपनी सारी सम्पत्ति बेचकर खरीदुंगा उन्होने सत्यार्थ प्रकाश को चौदह नालो का तमंचा बताया।

- पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी


२१- मै उस प्रचण्ड अग्नि को देख रहा हूँ जो संसार की समस्त बुराइयोँ को जलाती हुई आगे बढ़ रही है वह आर्यसमाज रुपी अग्नि जो स्वामी दयानन्द के हृदय से निकली और विश्व मे फैल गयी ।


- अमेरिकन पादरी एण्ड्यू जैक्सन


२२- आर्यसमाज दौडता रहेगा तो हिन्दू समाज चलता रहेगा। आर्यसमाज चलता रहेगा, तो हिन्दूसमाज बैठ जायेगा। आर्यसमाजबैठ जायेगा तो हिन्दूसमाज सो जायेगा। और यदि आर्यसमाज सो गया तो हिन्दूसमाजमर जायेगा।


- पंडित मदन मोहन मालवीय


२३- सारे स्वतन्त्रता सेनानियोँ का एक मंदिर खडा किया जाय तो उसमेँ महर्षि दयानन्द मंदिर कीचोटी पर सबसे ऊपर होगा।


- श्रीमती एनी बेसेन्ट


२४- महर्षि दयानन्द इतने अच्छे और विद्वान आदमी थे कि प्रत्येक धर्म के अनुयायियो के लिए सम्मान के पात्र थे।

- सर सैयद अहमद खाँ


२५- अगर आर्यसमाज न होता तो भारत की क्या दशा हुई होती इसकी कल्पना करना भी भयावह है। आर्यसमाज का जिस समय काम शुरु हुआ था कांग्रेस का कहीँ पता ही नही था । स्वराज्य का प्रथम उद्धोष महर्षि दयानन्द ने ही किया था यह आर्यसमाज ही था जिसने भारतीय समाज की पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने काकार्य किया। अगर आर्यसमाज न होता तो भारत-भारत न होता।


- अटल बिहारी बाजपेयी


२६ - भारतवर्ष के महान राष्ट्रवादी निडर बौद्धिक, प्रभावशाली लेखक और इतिहासकार श्री सीताराम गोयल जी जो स्वयम प्रारंभिक दिनों में वामपंथी रहे बाद में पुनः हिन्दू बने , के स्वामी दयानन्द पर विचार उनकी पुस्तक How I Became Hindu” by Sitaram Goel जी से ,


एक समय, गोयल जी 'सत्यार्थ प्रकाश' में कुछ टिप्पणी पढ़ने के बाद चौंक गए इसलिए उस समय वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि स्वामी दयानंद कुछ धार्मिक व्यक्तियों के लिए अनावश्यक रूप से निर्दयी थे , और उनकी सोच का तरीका गलत था, लेकिन सालों बाद जब उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया और श्री अरबिंदो की पुस्तक ‘Bankim-Tilak-Dayananda’ पढ़ी जिससे स्वामी दयानंद की दूरगामी सोच और उनके शब्दों और कर्मों के प्रभावों के मूल्य को समझते हुए, वह पश्चाताप करने और महर्षि के प्रति सम्मान व्यक्त करने में सफल रहे ।


श्री गोयल लिखते हैं कि ,


"मैंने पश्चाताप और श्रद्धा का प्रकट किया , उस निर्भय शेर के प्रति जिसने हिंदुओं के बीच वैदिक दृष्टि को बचाने और पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश करी साथ ही साथ महत्वपूर्ण राष्ट्रीय , सांस्कृतिक भूमिका की एक वास्तविक समझ और प्रशंसा आर्य समाज ने हमारे राष्ट्रीय जीवन में एक महत्वपूर्ण मौके पर रखा था 

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