• वैदिक दर्शन और आधुनिक विज्ञान द्वारा तत्त्व-मीमांसा

 • वैदिक दर्शन और आधुनिक विज्ञान द्वारा तत्त्व-मीमांसा •

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- स्वामी (डॉ०) सत्यप्रकाश सरस्वती


महर्षि दयानन्द ने आर्य मन्तव्यों के निर्धारण में जिन आर्ष ग्रन्थों को प्रामाणिक और पठनीय माना, उनमें वेदांगों और उपांगों को विशेष स्थान दिया है। वेदांग हमारे वे ग्रन्थ हैं जो वेदार्थ समझने में हमारी मौलिक सहायता करते हैं, जैसे - शिक्षा, व्याकरण, छन्द, कल्प, ज्योतिष और निरुक्त। ये 6 वेदांग किसी विशेष ग्रन्थ के नाम नहीं हैं। हमारे वाङ्मय के इतिहास में आचार्यों ने इन सब पर समय-समय पर मूल्यवान्‌ ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें पाणिनि की शिक्षा और अष्टाध्यायी, पिंगल का छन्दशास्त्र, लगध का वेदांग ज्योतिष, यास्क का निरुक्त और कल्प-सम्बन्धी श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र आदि हैं (मेरे निजी विचार में रसायन, शिल्प आदि शास्त्र भी एक प्रकार से कल्प हैं - यज्ञेन कल्पन्ताम्‌)। 


वेदांगों के अनन्तर उपांगों की महत्ता है जिन्हें हम अपने दर्शनशास्त्र कह सकते हैं। भारतीय परम्परा में तीन वर्गों में विभक्त 6 उपांग निम्न हैं - (1) वैशेषिक और न्याय, (2) सांख्य और योग, (3) उत्तर मीमांसा अर्थात्‌ शारीरक सूत्र (वेदान्त) और पूर्व मीमांसा। इन 6 दर्शनों के आचार्य क्रमशः कणाद मुनि, गोतम मुनि, कपिल मुनि, पतञ्जलि, बादरायण व्यास और जैमिनि हैं। इन सभी दर्शनों पर अनेक आचार्यों की वृत्तियाँ और भाष्य हैं जिनके माध्यम से विचारधाराओं का विस्तार सूक्ष्मता से किया गया है। 


ऋषि दयानन्द ने स्पष्ट अन्ध-गज न्याय का संकेत करके यह स्पष्ट कहा है कि इन उपांग या दर्शनग्रन्थों में कोई विरोध नहीं है, और ये सभी वेद के तत्त्वज्ञान को अपने-अपने क्षेत्रों में व्यक्त करते हैं। इन दर्शन-ग्रन्थों पर हमारे आचार्यो ने भी तर्कसम्मत भाष्य किये हैं। 


ऋषि दयानन्द के लेख के अनुसार - “पूर्व-मीमांसा पर व्यासमुनिकृत व्याख्या, वैशेषिक पर गोतममुनिकृत, न्यायसृत्र पर वात्स्यायनमुनिकृत भाष्य, पतञ्जलिकृत सूत्र पर व्यासमुनिकृत भाष्य, कपिलमुनिकृत सांख्यसूत्र पर भागुरिमुनिभाष्य, व्यासमुनिकृत वेदान्तसूत्र पर वात्स्यायनमुनिकृत भाष्य, अथवा बौधायनमुनिकृत भाष्य वृत्ति-सहित पढ़ें-पढ़ावें ।” 


ऋषि दयानन्द ने जिन भाष्यों का उल्लेख किया है, वे सब इस समय उपलब्ध नहीं हैं। आर्य जनता स्वामी दर्शनानन्दजी के सांख्य और वैशेषिक-भाष्यों से परिचित है। स्वामी दयानन्द को अपने जीवन में दर्शनों के भाष्य करने का अवसर न मिला; किन्तु उन्होंने विशेष बात यह घोषित की कि सांख्यदर्शन नास्तिकता का प्रतिपादक नहीं है। कपिलजी की ईश्वर और वेद के सम्बन्ध में वैसी ही आस्था है, जैसी अन्य दर्शनों के आचार्यो की !


वर्तमान युग में भौतिक विज्ञान और रसायनशास्त्रों ने प्रकृति और द्रव्य के नवीनतम रहस्यों का जो उद्घाटन किया है, वह अपने वैचित्र्य के लिए प्रसिद्ध है। उन्नीसवीं शती के अन्त में ऊर्जा, द्रव्य, गति, आवेग, चर  (momentum) आदि के सम्बन्ध में जो कल्पनाएँ थीं, वे बीसवीं शती के वर्तमान दशकों में पूर्णतया बदल गई हैं - डाल्टन, न्यूटन, जे० जे० टामसन, जी० पी० टामसन, क्यूरी, रुदरफोर्ड, ऐस्टन, फर्मी, चैडविक, डिराक, मैक्सप्लांक, श्रौडिंजर, हाइजनवर्ग (Dalton, Newton, JJ Thomson, GP Thomson, Curie, Rutherford, Aston, Fermi, Dirac, Chadwick, Max Planck, Schrodinger, Heisenberg) आदि अनेक भौतिकी और रसायनशास्त्र, एवं सांख्यिकी के आधुनिक अनुशीलकों ने द्रव्य, ऊर्जा और उनके रूपान्तरों एवं पारस्परिक सम्बन्धों के क्षेत्रों में प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक कल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं।

दर्शनशास्त्रों पर आचार्य उदयवीर जी ने गहन अध्ययन किया है। सांख्यदर्शन के इतिहास पर तो उनका अद्वितीय अध्ययन रहा है, वे इस दर्शन के निर्विवाद मूर्धन्य विद्वान्‌ हैं। उनके वैशेषिक और सांख्यदर्शनों के विद्योदय-भाष्यों में यह प्रयास किया गया है कि कपिल और कणाद मुनियों के तत्त्व-विज्ञानों का आज के वैज्ञानिक विचारों के साथ समन्वय किया जाए। यह कार्य कोई सरल नहीं है। रसायनशास्त्र में पंचमहाभूत अथवा वैशेषिक के नव द्रव्यों के स्थान पर तत्त्वों की संख्या 106 या 110 के निकट तक पहुँच गई है, जिनमें से यूरेनियम (92वाँ तत्त्व) से आगे के समस्त तत्त्व, जिन्हें हम ट्रांस-यूरेनियम तत्त्व कहते हैं, वे सभी कृत्रिम तत्त्व हैं जिनको वर्तमान विज्ञानवेत्ताओं ने प्रयोगशाला में स्वयं निर्मित किया है। इनकी जीवन-अवधि भी बहुत थोड़ी ही है। नेप्ट्यूनियम और प्लूटिनियम को छोड़कर ये तत्त्व प्रकृति में स्वत: नहीं पाए जाते हैं। वैशेषिक विचारधारा के ही परमाचार्य प्रशस्तपाद ने एकाणुक, द्वैणुक, त्रश्वैणुक आदि की कल्पना प्रस्तुत की, जिसके आधार पर संसार महर्षि कणाद को अणुसिद्धान्त का जन्मदाता स्वीकार करता है। किन्तु बॉयल और डॉल्टन के बाद परमाणु और अणु के भेद समझने का प्रयास रसायनज्ञों ने किया। एक अणु में केवल एक परमाणु भी हो सकता है, जैसे कि हिलियम, आर्गन आदि। इसी प्रकार तत्त्व के अणु में दो भी परमाणु हो सकते हैं और इससे अधिक भी। बाद को मोसली (Mosely) आदि रासायनिक वैज्ञानिकों ने परमाणु-संख्या की कल्पना प्रस्तुत की जिससे स्पष्ट हुआ कि हाइड्रोजन से लेकर यूरेनियम तत्त्व तक तत्त्वों की संख्या केवल 92 है।


वैज्ञानिक विचारों की प्रामाणिकता, उपादेयता आदि का मूल्यांकन करने के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। न कपिल या कणाद पूर्णज्ञ थे और न आज के वैज्ञानिक पूर्णज्ञ हैं। कणाद और कपिल का अपने युगों में वही विशिष्ट स्थान था जो आज के युग में वैज्ञानिकों का है। पू्र्व समय में यदि वे न होते तो हम विज्ञान की वर्तमान स्थिति तक भी न पहुँच सकते। हमें प्रसन्नता है कि आचार्य उदयवीर जी ने अपने सांख्य और वैशेषिक भाष्यों में प्राचीनतम से लेकर नूतनतम विचारधाराओं से हमें परिचित कराया है। निश्चय है कि इन उपांग दर्शनों के आचार्यों में उदयवीर जी का श्रेष्ठ स्थान है और हमें गर्व है कि वे अपनी वर्तमान दीर्घ आयु में अभी तक हमारे बीच में विद्यमान हैं। 95 वर्ष से अधिक के इस आचार्य के प्रति हमारी अनेकानेक वन्दना है।


प्रसन्नता की बात है आर्य-संसार के प्रसिद्ध प्रकाशक श्री गोविन्दराम हासानन्द (दिल्ली) आचार्य श्री उदयवीर जी के दर्शनों के प्रकाशन की व्यवस्था कर रहे हैं।


[स्रोत : पण्डित उदयवीर शास्त्री कृत वैशेषिक दर्शन के भाष्य की स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती लिखित “प्रस्तावना”, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा] 

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