राणा सांगा के समाधी स्थल की दुर्दशा

 राणा सांगा के समाधी स्थल की दुर्दशा 


डॉ विवेक आर्य 


राणा सांगा (राणा संग्राम सिंह) (राज 1509-1528) उदयपुर में शिशोदिया राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे | राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह था। राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1528 तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश के रेगिस्थान में स्थित है। राणा सांगा सिसोदिया (सूर्यवंशी राजपूत) राजवंशी थे। राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा सांगा सही मायनों में एक बहादुर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुये।


राणा रायमल के बाद सन 1509 में कर्मचन्द पंवार की सहायता से राणा सांगा मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे।


एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध हारे लेकिन उन्होंने अपने शौर्य से दूसरों को प्रेरित किया।राव गांगा ने राणा सांगा केे कहने पर पाती-पेरवन परम्परा के तहत् अपनी एक विशाल सेना मुगलों के विरुद्ध खानवा के मैदान में भेजी, मारवाड़ की एक विशाल सेना का नेतृत्व राव गांगा के पुत्र राव मालदेव ने किया |

खानवा के मैैैदान में ही राणा साांगा जब घायल हो गए, तब उन्हें दौसा के निकट बसवा लाया गया यहाँ से राणा सांगा को कुुुछ असंंतुुष्ट सरदारों के कारण मेेेवाड़ के एक सुुुुरक्षित स्थान कालपी पहुुँचाया गया, लेेेकिन असंंतुुष्ट सरदारों ने इसी स्थान राणा सांगा को जहर दे दिया | ऐसी अवस्था में राणा सांगा पुनः बसवा आए जहाँ सांगा की 30 जनवरी,1528 को मृत्यु हो गयी, लेकिन राणा सांगा का विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ ( भीलवाड़ा ) में हुआ वहाॅ आज भी हम राणा सांगा का समाधि स्थल देखते हैंं | इनके शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की ‍रक्षा तथा उन्नति की। राणा सांगा अदम्य साहसी (indomitable spirit) थे। एक भुजा, एक आँख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युद्ध में हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है। 


मन में एक ही ख्याल कि जिस्म पर 80 घाव, एक हाथ, एक पैर और एक आंख का अभाव। अंदर से कितना मजबूत रहें होंगे सांगा। यह माटी के प्रति उनका प्रेम और समर्पण ही होगा जो उनकी रगों में साहस का संचार करता होगा। उनकी वीरता को नमन करता हूं। लेकिन यहां उनके समाधि स्थल की बदहाली देखकर मन व्यथित भी है। एक ओर मुगलों ने आगरा में अपने घोड़ों तक की इतनी भव्य समाधि बना दीं, दूसरी ओर आजादी के बाद भी राणा सांगा की ऐसी अनदेखी...। धिक्कार है छदम सेक्युलर नेताओं और इतिहासकारों को....

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