राष्ट्रभक्त साथियों, आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व


चरित्र-निर्माण, समाज-सुधार तथा राष्ट्रवादी जन-चेतना के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था (राष्ट्रीय स्तर पर पंजीकृत) आज देश के ज्ञात व अज्ञात राष्ट्रभक्तों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण व बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन करती है।


 भीकाजी रुस्तम कामा जी  


✍️ राष्ट्रभक्त साथियों, आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व
भारतीय नारी शक्ति के जाग्रत शौर्य की प्रतीक भीकाजी कामा जी द्वारा भारत में उत्कृष्ट समाज सेवा के आयाम स्थापित कर तदुपरांत विदेश में रहकर देश की आज़ादी के लिए किए गए महान क्रांतिकारी कार्यों को कृतज्ञ राष्ट्र नमन करता है। आपने 22.08.1907 को स्टटगार्ट, जर्मनी में हुई 7वीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया और विदेशी धरती पर सर्वप्रथम भारतीय झंडा लहराया। आपके ओजस्वी लेख और भाषण क्रांतिकारीयों के लिए अत्यधिक प्रेरणास्रोत बने।  भीकाजी ने संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस तथा जर्मनी का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। कामा जी का जन्म 24.09.1861 में एक धनी पारसी परिवार में हुआ था। कामा जी का अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छा प्रभुत्व था। कामा जी का विवाह रुस्तम के. र. कामा जी के साथ हुआ, लेकिन उनके पति विदेशी संस्कृति व ब्रिटिश सरकार के पक्षधर थे जिसके कारण उन दोनों में मतभेद बना रहता था। मैडम कामा जी ने अक्टूबर 1896 में मुंबई प्रेसीडेंसी में अाए भयंकर अकाल के पश्चात अाए प्लेग में लोगों की तन, मन, धन से  सेवा की, लेकिन वह खुद भी इस रोग के चपेट में अा गई। जिसके इलाज के लिए वह वर्ष 1902 में लंदन गई। वहाँ वर्ष 1908 में इनकी भेंट बिपिनचन्द्र पाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, सरदार सिंह राणा, मुकुंद देसाई, विरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, वीर दामोदर सावरकर, मदनलाल ढींगरा आदि क्रान्तिकारियों से हुई।                
                                                                                                                📝कामा जी ने लंदन में भारतीय युवकों को एकत्र कर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया तथा क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे हथियार खरीदना, क्रांतिकारी सामग्री/पुस्तकें प्रकाशित करना आदि के लिए काफी धन, चंदे के रूप में एकत्र किया। इस कार्य में एक पारसी राष्ट्रभक्त व्यापारी व क्रांतिकारी सरदार सिंह राणा जी ने काफी मदद की। कामा जी 'भारतीय होम रूल समिति' की सदस्या बन गई। श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उन्हें 'इण्डिया हाउस' के क्रांतिकारी दस्ते में शामिल कर लिया गया। कामा जी ने यूरोप में रहते हुए सरदार सिंह राणा के सहयोग से कर्जन वायली की हत्या के लिए मदनलाल ढींगरा जी को बंदूक उपलब्ध करवाई। कामा जी इस समय तक ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय बन चुकी थी। इनके भारत की आजादी पर लिखे लेखों, निर्भीक भाषणों व अन्य क्रांतिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश सरकार ने इन्हें जान से मारने की योजना बना ली थी। इस बात की जानकारी मिलते ही कामा जी ने फ्रांस की राजधानी को अपना क्रांतिकारी गतिविधियों का ठिकाना बना लिया। कामा जी ने वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की पुस्तक '1857 का स्वतंत्रता समर' को प्रकाशित करवाया। वह अपने क्रांतिकारी विचार अपने साप्ताहिक समाचार-पत्र 'वंदेमातरम्' तथा ‘तलवार’ में प्रकट करती थी। 


📝कामा जी ने भारत में प्रतिबंधित 'वंदेमातरम्' गीत के समर्थन में 'वंदेमातरम्' नामक साप्ताहिक समाचार-पत्र निकालकर लोगों तक क्रांतिकारी साहित्य पहुँचाया। कामा जी ने रूसी क्रांतिकारियों से संपर्क साधा और लेनिन से सीधे पत्र व्यवहार करने लगी। कामा जी ने सावरकर जी के बीमार पड़ने पर उनकी दो महीने तक लगातार सेवा की तथा उन्हें ब्रिटिश सरकार से छुड़ाने के लिए फ्रांसीसी सरकार से मदद माँगी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें काफी कष्ट झेलने पड़े। भारत में उनकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें एक देश से दूसरे देश में लगातार भागना पड़ा। कामा जी ने अपनी अधिकांश सम्पत्ति अवाबाई पतित अनाथालय को दे दी। ब्रिटिश सरकार ने उनकी उग्र क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उनके भारत में प्रवेश पर रोक लगा रखी थी। जब उनकी हालत मरने लायक हो गई तब भारत में आने दिया। उनका अंतिम समय (13 अगस्त 1936) मुंबई में गुमनामी की हालत में बीता।



✍️ राकेश कुमार 
किसी भी प्रकार की गलत जानकारी/त्रुटि हाे तो अवश्य सूचित करें।


Intercast Marriage ,The Vivah Sanskar will be solemnised,16sanskaro ke liye smpark kre 9977987777


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