यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो,


 


यदि परोपकार करने की आपकी इच्छा हो, तो परोपकार करने से पहले स्वयं अपनी योग्यता बनाएं, और फिर स्वयं परोपकार करें। दूसरे योग्य व्यक्तियों को परोपकार करने का आदेश/उपदेश न देवें। यह असभ्यता है।
        बहुत से लोगों में पूर्व जन्मों के अच्छे संस्कार होते हैं। उन संस्कारों के कारण, उनमें सेवा परोपकार की भावना उत्पन्न होती है। यह अच्छी बात है। परंतु उन भावनाओं पर वे भावुक लोग नियंत्रण नहीं रख पाते। और यह चाहते हैं, कि जल्दी से जल्दी इस संसार का सुधार हो जाए। फटाफट लोग सुधर जाएं। अंधविश्वास पाखंड अन्याय शोषण चोरी डकैती लूट मार अत्याचार स्मगलिंग आदि सब बुरे काम जल्दी से बंद हो जाएं। 8109070419
        परंतु केवल ऐसी भावनाएं रखने से या ऐसी इच्छाएँ रखने से ये सब बुरे काम बंद नहीं होते।  इसके लिए व्यक्ति को बहुत  पुरुषार्थ करना पड़ता है। बहुत सी कलाएं सीखनी पड़ती हैं। बहुत से शास्त्रों का अध्ययन करना पड़ता है। बहुत सी विद्वता प्राप्त करनी पड़ती है। बहुत सा तर्क वितर्क भी सीखना पड़ता है। ऊंचे पद और अधिकार प्राप्त करने पड़ते हैं। तब जाकर कुछ परिणाम आता है। इतना सब करने में बहुत समय और परिश्रम की आवश्यकता होती है। 
        अब वे भोले भावुक लोग जो सेवा परोपकार की भावना रखते हैं, उन्हें इन बातों का अनुभव नहीं होता, कि यह संसार कैसे सुधरेगा? वे इधर उधर बहुत से हाथ पैर मारते हैं, परंतु कोई परिणाम दिखता नहीं। धीरे-धीरे उन्हें अनुभव हो जाता है, कि देश दुनियां को सुधारने के लिए बहुत लंबी तपस्या करनी पड़ेगी, तब कुछ परिणाम आएगा।
       अब वे भावुक लोग इतनी सारी तपस्या करना नहीं चाहते। बस इतना ही चाहते हैं कि, रातों रात सुधार हो जाए। परंतु आप सब जानते हैं कि, केवल इच्छा करने से, और आलसी बनकर बैठे रहने से तो कार्य सिद्ध होता नहीं। 
        जब वे देखते हैं कि हम देश दुनियाँ का सुधार चाहते हैं, और इसके लिए बहुत लंबी तपस्या, धैर्य, संयम, योग्यता, शास्त्रों का अध्ययन, उच्च पद की प्राप्ति, सत्ता, अधिकार आदि सब चाहिए। हम यह सब प्राप्त कर नहीं पा रहे, या इसमें बहुत परिश्रम और समय लगेगा, इतना परिश्रम और समय हम खर्च करना नहीं चाहते। क्योंकि यह सब करने में बहुत कष्ट होता है। और हम यह कष्ट उठाना नहीं चाहते।
      तब वे भोले भावुक लोग ऐसा सोचते हैं, कि जो लोग इन ऊंचे पदों पर बैठे हैं, जिनके पास सत्ता है, अधिकार है, संपत्ति है, पुलिस है, सेना है, शक्ति है, विद्या है, जो उत्तम विद्वान हैं, शास्त्रों के पंडित हैं, उच्च पदों पर आसीन अधिकारी हैं, क्यों न हम उनसे यह काम करवा लेवें!
      ऐसा सोच कर वे भावुक अज्ञानी लोग इन बड़े योग्य अधिकारी विद्वानों को कहते हैं,  कि आप इस प्रकार के काम को करें।
       ऐसे भोले भंडारी अज्ञानी भावुक लोग इतना भी नहीं सोचते, कि जिन विद्वानों और अधिकारियों ने लंबी तपस्या पुरुषार्थ करके इन उच्च पदों योग्यताओं और कलाओं को प्राप्त किया है, क्या उन्होंने आपके आदेश का पालन करने के लिए यह सारी लंबी तपस्या की थी? 
      ऐसे अज्ञानी भावुक लोगों को यह सोचना चाहिए,  कि यदि हमारी भावनाएं हैं, देश दुनियाँ की उन्नति हो, तो क्या इनकी भावनाएं नहीं हैं जो उच्च पदों पर बैठे हैं, ऊंचे विद्वान हैं? इन्होंने क्या सोचकर इतनी लंबी तपस्या की है? जब इनके मन में भी परोपकार की भावना है, और इन्होंने लंबी तपस्या की है, तो हमें क्या अधिकार है इनको इस प्रकार का उपदेश/आदेश देने का, कि आप इस प्रकार के कार्य को करें ? 
         परंतु भोले भावुक अज्ञानी लोग इस प्रकार की गलती/मूर्खता/असभ्यता करते ही  रहते हैं। मेरा आप सब से निवेदन है, कि यदि आप भी ऐसी भावना रखते हों, तो सावधान! किसी दूसरे को आदेश मत दीजिए, उपदेश मत दीजिए, कि आप इस काम को करें। यदि आप में परोपकार करने की इतनी ही भावना और तीव्र इच्छा है, तो आप स्वयं पुरुषार्थ क्यों नहीं करते? स्वयं तपस्या क्यों नहीं करते? , योग्य विद्वान क्यों नहीं बनते? ऊंची सत्ता एवं अधिकार को प्राप्त क्यों नहीं करते? पहले आप अपनी योग्यता बनाएँ, और फिर उस काम को स्वयं करें। दूसरे पुरुषार्थी लोगों ने, आप के आदेश का पालन करने के लिए इतनी योग्यता नहीं बनाई थी। उनको आदेश/उपदेश देकर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन न करें।
     स्वयं कुछ करना नहीं, दूसरे को आदेश/ उपदेश देना, यह असभ्यता है। असभ्यता का व्यवहार करने से बचें।
      कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो पूरी योग्यता बनाते नहीं और कच्ची/अधूरी योग्यता में ही समाज सेवा के काम शुरु कर देते हैं। ऐसे लोग भी बहुत हानिकारक होते हैं। एक पुरानी कहावत आपने सुनी होगी,  नीम हकीम, ख़तरा ए जान, अर्थात् जो अभी अधूरा वैद्य है, उसे पूरी चिकित्सा करनी आती नहीं, और वह रोगियों की चिकित्सा करने लगे, तो निश्चित रूप से वह रोगियों को मारेगा। लाभ के स्थान पर, उल्टा समाज की हानि करेगा।
         इसलिए अधूरी योग्यता में भी समाज सेवा परोपकार के काम नहीं करने चाहिएँ। पहले धैर्यपूर्वक पूरी तपस्या करें, पूरी योग्यता बनाएं, फिर अधिकार पूर्वक कार्य करें। जैसे एक चिकित्सक पूरी लंबी मेहनत करके, योग्यता बनाकर, प्रामाणिक डिग्री प्राप्त करके, उसके बाद चिकित्सा आरंभ करता है।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


smelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marigge


arayasamaj sanchar nagar 9977987777


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।