||  वेद वाणी  ||


 


 


||  वेद वाणी  || 


उनके सङ्ग से मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है।


श॒श॒मा॒नस्य॑ वा नरः॒ स्वे॑दस्य सत्यशवसः। वि॒दा काम॑स्य॒ वेन॑तः॥८॥
– ऋग्वेद १-८६-८॥


शब्दार्थ – हे (नरः) मनुष्यो! तुम सभाध्यक्षादिकों के सङ्ग (वा) पुरुषार्थ से (शशमानस्य) जानने योग्य (सत्यशवसः) जिसमें नित्य पुरुषार्थ करना हो (वेनतः) जो कि सब शास्त्रों से सुना जाता हो तथा कामना के योग्य और (स्वेदस्य) पुरुषार्थ से सिद्ध होता है, उस (कामस्य) काम को (विद) जानो अर्थात् उसको स्मरण से सिद्ध करो॥८॥


भावार्थ – कोई पुरुष विद्वानों के सङ्ग विना सत्य काम और अच्छे-बुरे को जान नहीं सकता। इससे सबको विद्वानों का सङ्ग करना चाहिये॥८॥


– ऋग्वेदभाष्यम्
– महर्षि दयानन्द सरस्वती


सङ्कलकः –
आर्य पङ्कजः+
रायगड, महाराष्ट्र, आर्यावर्त।
+९१९९२३७३१२४९


 


वैचारिक क्रान्ति के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित कालजयी अमर ग्रन्थ "सत्यार्थप्रकाश" अवश्य पढें और पढायें।


 


        सत्य सनातन
   'वैदिक धर्म' की जय
|| कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ||
    || जय आर्यावर्त ||


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