उस में मण्डूकों की आवाज का वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही हुआ है


 


मण्डूकी


अथर्व ४/१५ का विषय वर्षा ऋतु है । उस में मण्डूकों की आवाज का वर्णन अत्यन्त हृदयग्राही हुआ है । इस पर निम्नलिखित इतिहास गढ़ा गया है--


वसिष्ठो वर्षकाम: पर्जन्यं तुष्टाव । तं मण्डूका अन्वमोदन्त । स मण्डूकान् अनुमोदमानान् दृष्ट्वा तुष्टाव । तदभिवादिन्येषर्ग् भवति --


उपप्रवद मण्डूकि वर्षमा वद तादुरि ।
मध्ये ह्रदस्य प्लवस्व विगृह्य चतुर: पद: ।।१४।।
                            अथर्व:४/१५/१४


वसिष्ठ ने वर्षा की इच्छा से बादल की स्तुति की मेंढकों ने उसका अनुमोदन किया । अनुमोदन करते हुए मेंढकों को देखकर उसने उनकी भी स्तुति कर दी । इस वृत्तान्त को यह ऋचा कह रही है--


   ऐ मण्डूकि ! उठ, ऊंची बोल । ऐ टर्राने वाली ! वर्षा का समाचार ला । चारों पैरों को उठाकर तालाब के बीच में तैर ।


                 इस मन्त्र में मण्डूकी नाम से संसार-सरोवर में डूबी हुई बुद्धि को सम्बोधित किया गया है । मण्डूक का अर्थ यास्क ने मज्जूक=डूबा हुआ या मन्दूक= मस्त किया है ।उसे जग जाने, प्रभु-प्रेम की मनोहर वृष्टि का सन्देश अपनी उद्बुद्ध स्तुति-वृत्ति से पाने की प्रेरणा की गई है । इस मण्डूकी का चार पैर उठाना क्या है ? चतुष्पाद ओ३म् का वह ध्यान जिस से पदार्थ-चतुष्टय की प्राप्ति होती है । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष--इन सब की साधना करते हुए प्रभु-भक्त संसार-सरोवर में खूब मजे ले-ले कर तैरे । 


कहां ऋषि की अपने अन्त:करण में उपस्थित यह मस्ती-रूप टर्रा रही मण्डूकी और कहां ऐतिहासिकों का मण्डूकान् तुष्टाव । कुरानियों की परिभाषा में यह इतिहास वेद-मन्त्र की "शान-इ-नजूल" है ।


[स्रोत:यास्क-युग,लेखक: पण्डित.चमूपति एम.ए, पृष्ठ संख्या:४८, प्रस्तुति: रणवीर आर्य, हैदराबाद]


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