स्वाभिमानी बनें, अभिमानी नहीं

।  स्वाभिमानी व्यक्ति आनन्दित रहता है, और  अभिमानी तो सदा शोक सागर में ही डूबा रहता है।


       क्या अंतर है, स्वाभिमान और अभिमान में? स्वाभिमान का अर्थ है - ईश्वर ने आपको जितनी विद्या बल बुद्धि शक्ति सामर्थ्य आदि दिया है, अपने पास उतना ही मान कर चलें। उसी के आधार पर लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करें, और अपनी वास्तविक योग्यता के आधार पर, समाज के लोगों से, उचित धन सम्मान प्राप्ति की इच्छा करें। इसका नाम है स्वाभिमान. 


     और ईश्वर की दी हुई आपके पास  जितनी विद्या बुद्धि बल धन योग्यता आदि वस्तुएं वास्तव में हैं, अपने पास उससे कई गुना अधिक मानना, अनेक क्षेत्रों में अनधिकार चेष्टाएँ करना, योग्यता से अधिक धन सम्मान की इच्छा करना, और अपनी योग्यता अधिक मानकर लोगों पर अनुचित दबाव डालना, उनके साथ लड़ाई झगड़े करना, झूठ छल कपट का प्रयोग करके न्याय के विरुद्ध आचरण करना, सब जगह अपनी मनमानी करना, दूसरों का शोषण करना आदि, ये सब अभिमान के लक्षण हैं। 


       ईश्वर स्वाभिमानी व्यक्ति पर, बहुत आनंद उत्साह बल प्रेरणा ज्ञान परोपकार की भावना नम्रता आदि गुणों की वर्षा करके उसे निहाल कर देता है। और अभिमानी व्यक्ति के मन में भय शंका लज्जा चिंता तनाव इत्यादि उत्पन्न करके, इस दंड के माध्यम से उसे सदा दुखी करता रहता है। यह सब ईश्वर इसलिए करता है, क्योंकि वह स्वभाव से न्यायकारी है। वह सब आत्माओं के लिए वेदो में उपदेश करता है, कि हे आत्माओ! यदि तुम मेरी बात मानोगे, तो मैं तुम्हें सुख दूँगा। यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो मैं तुम्हें दुख दूँगा। 


        तो वेदों में ईश्वर का यह संदेश है, कि सब लोग अपने अपने कर्मों का फल भोगते हुए, जिसको मैंने जितने साधन संपत्तियाँ दी हैं, उसी के आधार पर वह आगे भी दूसरों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करे। पूरे स्वाभिमान के साथ जीए। अभिमानी न बने।


       जो लोग ईश्वर के इस संदेश का पालन करते हैं, ईश्वर उन्हें आनंदित कर देता है। उन्हें स्वाभिमान की मोटरबोट में बिठाकर बहुत तेज गति से लक्ष्य पर पहुंचा देता है। और जो इस संदेश का पालन नहीं करते, ईश्वर उन्हें उक्त प्रकार से दंड देता है। इस दंड को भोगते हुए, ऐसे अभिमानी लोग सारा जीवन शोक सागर में डूबे रहते हैं।


      अब दोनों मार्ग आपके सामने हैं, जो आपको अच्छा लगे, उस पर चलें।


स्वामी विवेकानंद परिव्राजक.


 


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