सत्य ही है परमपुरुष तक जाने का मार्ग
सत्य ही है परमपुरुष तक जाने का मार्ग :-----
आध्यात्मिक जीवन के परम लक्ष्य को पाने के तीन मार्ग बताए गए हैं। ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग व भक्ति मार्ग। ज्ञान का अर्थ किताबी ज्ञान, वस्तु का ज्ञान नहीं है, बल्कि आत्मज्ञान है। इस तक सत्य की सहायता से ही पहुंचा जा सकता है। कर्म का अर्थ है तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त, किसी भी प्रकार के बंधन से मुक्त कर्म। और भक्ति का अर्थ है ईश्वरीय सत्ता से जुड़ाव।
आध्यात्मिक प्रगति के शीर्ष पर जो मनुष्य प्रतिष्ठित होना चाहते हैं, उनके सामने तीन मार्ग खुले हुए हैं- ज्ञान, कर्म और भक्ति। अब हमलोग देखें कि मनुष्य किस प्रकार से इन तीनों उपायों को काम में लाएगा। एकमात्र परमपुरुष ही मन की सीमा के बंधन के बाहर हैं। इसलिए ज्ञान की पूर्ण प्राप्ति के लिए परमपुरुष की सहायता लेनी ही होगी।
आत्म ज्ञान ही एकमात्र ज्ञान है।
बाकी ज्ञान, ज्ञान ही नहीं है। ज्ञान की झलक हैं। छाया की छाया हैं। मानसिक आध्यात्मिक अग्रगति का लक्ष्य हुआ सत्यम् और वह है ‘ज्ञानम् अनन्तम्।’ ‘सत्’ शब्द से सत्य शब्द आया है। अर्थात् जो है और रहेगा, उसके स्वीकृत रूप को कहते हैं सत्य। यह सीमा के भीतर भी काम कर सकता है और बाहर भी काम कर सकता है। इसलिए यह व्यक्त और अव्यक्त दोनों जगत् में एक योगसूत्र का काम कर सकता है। इस सत्य की सहायता से ही मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुंच सकता है।
ज्ञान प्रक्रिया को सामान्य भाषा में कहा जाता है कर्मभाव का क्रिया रूप में रूपान्तरण। अब जो कुछ भीतर या बाहर है, उस सत्ता को मन-विषय में परिणत करके उसको मन में किसी प्रकार आत्मसात कर सकने को ही कहा जाएगा पराज्ञान। जहां इस प्रकार पूरी तरह यह आत्मसात नहीं हुआ, उसे कहेंगे अपराज्ञान या आपेक्षिक ज्ञान। इसलिए परम लक्ष्य में पहुंचने के लिए, केवल सत्य ही नहीं, इस आत्मसात का भी महत्व है।
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