संसार में एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं

  आप सबका व्यवहार अनुबंधों अर्थात्  Contracts पर चलता है। चाहे ईश्वर के साथ भी क्यों न हो?
       अनुबंध अर्थात कॉन्ट्रैक्ट, जी हां, हम सब लोग संसार में एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं। हमारे व्यवहार अनुबंध के आधार पर चलते हैं। अनुबंध, जिसे अंग्रेज़ी भाषा में कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं अर्थात् आप मेरे लिए क्या करेंगे और मैं आपके लिए क्या करूंगा? यदि आप मेरे अनुकूल व्यवहार करेंगे, तो मैं भी आपके अनुकूल व्यवहार करूंगा। यदि आप मेरी इच्छा के विरुद्ध व्यवहार करेंगे, तो मैं एक सीमा तक सहन करूँगा। यदि आपने फिर भी अपने व्यवहार में सुधार नहीं किया, तो आपके साथ संबंध तोड़ दूंगा, और आगे व्यवहार बंद कर दूँगा। 
          इस प्रक्रिया का नाम है अनुबंध = कॉन्ट्रैक्ट। फिर यह कॉन्ट्रैक्ट चाहे पति-पत्नी का हो, चाहे पिता पुत्र का हो, चाहे मां बेटी का हो, दो बहनों का हो, दो भाइयों का हो, सास बहू का हो, दो मित्रों का हो, गुरु शिष्य का हो, राजा प्रजा का हो, या ईश्वर और आत्मा का हो। सबके व्यवहार  इसी अनुबंध के नियम से चलते हैं।
      जैसे हम भारत देश में रहते हैं, तो हम पर भारत का संविधान लागू होता है। यदि हम भारतीय संविधान के विरुद्ध आचरण करते हैं, तो कॉन्ट्रैक्ट नियम के अनुसार भारत सरकार हम को दंडित करती है। 
        इसी प्रकार से हम ईश्वर के बनाए संसार में रहते हैं, तो ईश्वर का संविधान भी हम पर लागू होता है। यदि हम ईश्वरीय संविधान के विरुद्ध आचरण करते हैं, तो कॉन्ट्रैक्ट नियम के अनुसार ईश्वर भी हम को दंडित करेगा।
       ईश्वर का संविधान है, चार वेद। संविधान अर्थात् वेदों में लिखा है, क्या करना है और क्या नहीं करना। यदि कोई व्यक्ति भारतीय संविधान को नहीं पढ़ता, नहीं समझता, और उसका पालन नहीं करता। वह संविधान के विरुद्ध आचरण करता है, तो भारत की न्याय व्यवस्था उसे दंड देगी, उसे पकड़ कर जेल में डाल देगी।  उसका बहाना नहीं सुना जाएगा, कि "मुझे संविधान का पता नहीं था।" वह भारत का नागरिक है। उसका कर्तव्य है, कि वह भारतीय संविधान को पढ़े, समझे तथा उसका पालन करे। यदि संविधान समझ में नहीं आता, तो किसी वकील साहब की सहायता से उसको समझे। समझकर पालन करे, तभी वह न्याय व्यवस्था के दंड से बच सकता है। अन्यथा भारत प्रशासन की ओर से उसे दंड भोगना ही पड़ेगा। 
         इसी प्रकार से यदि आप ईश्वरीय संविधान वेदों को नहीं पढ़ते, नहीं समझते, उसका पालन नहीं करते, तो आप का बहाना नहीं सुना जाएगा, कि "हमें ईश्वर का संविधान मालूम नहीं था।" आपका कर्तव्य है, ईश्वरीय संविधान वेदों को पढ़ना, समझना। यदि समझ में न आए, तो वेद के विद्वानों से, जो परमात्मा के वकील हैं, जो ईश्वरीय संविधान = वेदों को समझते हैं, उनकी सहायता से ईश्वरीय संविधान को समझना। और समझ कर उसका पालन करना। जब आप ईश्वरीय संविधान को नहीं समझेंगे, अथवा समझ कर भी, जानबूझकर संविधान का उल्लंघन करेंगे, तो आप पर ईश्वर का दंड भी लागू होगा। 
        तब आप ईश्वर के सामने कितना ही गिड़गिड़ाएँ, कितना ही चिल्लाएँ, कि हे ईश्वर! हमें माफ कर दीजिए, हमें आपके संविधान का पता नहीं था। तब ईश्वर भी आपकी प्रार्थना नहीं सुनेगा। क्योंकि वह भी अनुबंध के नियम से चलता है। ईश्वर की ओर से भी यह अनुबंध है, कि "यदि तुम मेरी बात नहीं सुनोगे, तो मैं भी तुम्हारी नहीं सुनूंगा।"  इसलिये अभिमानी होकर ईश्वरीय संविधान का उल्लंघन न करें। अन्यथा ईश्वर का भयंकर दंड भोगना पड़ेगा।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।


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