‌संबंध (रिश्ते) सोच समझकर बनाएं।


संबंध (रिश्ते) सोच समझकर बनाएं। परीक्षा पूर्वक बनाएं। जल्दबाजी न करें। अन्यथा कुछ ही दिनों में टूट जाएंगे।
        अकेला व्यक्ति नहीं जी सकता। उसे अनेक लोगों की सहायता लेनी पड़ती है। जीवन में अनेक समस्याएं आती हैं, उनका समाधान ढूंढना पड़ता है। व्यक्ति अल्पज्ञ होने से सारे काम स्वयं नहीं कर सकता। इसलिए उसे दूसरों की सहायता लेनी पड़ती है, और कई प्रकार की सहायता लेनी पड़ती है। 
        जीवन में सुख दुख बांटने की आवश्यकता भी होती है। जब जीवन में दुख आता है, तो व्यक्ति किसी ऐसे प्रिय साथी को ढूंढता है, जो उसकी बात को धैर्य पूर्वक सुने और बुद्धिमत्ता से उसकी समस्या को हल कर दे। 
       तो इन समस्याओं को हल करने के लिए और आनंद पूर्वक जीने के लिए अनेक प्रकार के संबंध बनाए जाते हैं। कुछ संबंध तो ईश्वर ने हमें जन्म से बना कर दिए हैं, जैसे माता-पिता भाई-बहन चाचा मामा मौसी बुआ इत्यादि। और कुछ हम स्वयं बनाते हैं। जैसे हम अपने मित्र बनाते हैं और विवाह आदि करते हैं, तो अपनी इच्छा से अपनी पसंद के हिसाब से करते हैं। ये संबंध ईश्वर के बनाए हुए नहीं हैं। जैसे हम बाजार में जाकर अपना सामान स्वयं पसंद करके खरीदते हैं, ऐसे ही विवाह और मित्र बनाने के समय भी हम अपनी पसंद और अपनी इच्छा बुद्धि से इस प्रकार के संबंध बनाते हैं।
       तो जब भी आप किसी को मित्र बनाएं अथवा विवाह करें, तो बहुत परीक्षा पूर्वक इस प्रकार के संबंध बनाने चाहिएं। ऐसे कामों में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, विशेष रूप से विवाह के क्षेत्र में। क्योंकि अनुकूल न होने पर मित्र तो फिर भी बदले जा सकते हैं, पर विवाह बार-बार तोड़ना और नया विवाह करना, यह भारतीय परंपरा में इतना आसान नहीं होता और करना भी नहीं चाहिए‌। ‌‌शास्त्रों में विधान है कि एक ही बार सोच समझकर परीक्षा पूर्वक विवाह करें और उसे जीवन भर प्रेम से निभाएं। इसलिए संबंध बनाने में बहुत सावधानी रखें।
- स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक


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