जीवन में तनाव से कैसे बचें 


 


 


जीवन में तनाव से कैसे बचें 
        जो भी अपने पास है, उसी में संतुष्ट रहें। लेकिन और अधिक पाने का प्रयास भी न छोड़ें। और पुरुषार्थ करने पर भी जितना मिले, उतने में ही फिर सन्तोष करें।
         अगर दिमाग में टेंशन ज्यादा समय तक रहता है, तो यह भयंकर रूप ले लेता है तो फिर डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता पड़ती है।
तनाव विचारों से जुड़ा रहता है। जब दूसरी तरफ ध्यान लगा दिया जाता है, तो तनाव खुद ही कम हो जाता है। ऐसे उत्साही, सकारात्मक लोगों से मिले, बात करें, जिन से बात करने में खुशी मिलती है।
       भगवान से अकेले में बातें करें। जो उसने दिया, उसके लिए उसे धन्यवाद देवें। यह भी महसूस करें कि दुनिया में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास तो उतना भी नहीं है।
      जीवन में हर चीज नाशवान है। यदि सुख मिल रहा है, तो ठीक है। यदि दुःख भी आ रहा है, तो वो भी सदा रहने वाला नहीं है।
       काम करने के एक से अधिक विकल्प रखिए। इस पर भी काम न हो, तो न सही। 'हम इसके बिना ही जी लेंगे।' यह एक और विकल्प भी रखिए। ऐसा करने से आप कभी दुःखी नहीं होंगे।
       यदि हम जीवन की प्रत्येक घटना में सावधान रहेंगे, तो वे घटनाएं वर्षों तक हमारी रक्षा करेंगे। मूल्यवान जीवन को सावधानी से जिएं।
      जीवन बहुत छोटा है। धन अनंत है। अनंत धन को कोई प्राप्त नहीं कर सकता। अनंत धन को कमाने में अपना छोटा सा-सीमित जीवन नष्ट न करें। आपकी ऐसी इच्छाएं पूरी नहीं होंगी।
बहुत धन कमा भी लिया, तो उसको खर्च करने के लिए 'बहुत लम्बा' जीवन भी तो चाहिए। इतना लम्बा जीवन है नहीं, तो बहुत अधिक धन कमाने में क्यों व्यर्थ परिश्रम करें?
       व्यर्थ में इच्छाएं न बढ़ाएं, यदि आप की आवश्यकताएं पूरी हो चुकी हैं। याद रखें- आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं, इच्छाएं नहीं।
       बीती दुःखदायक बातों को याद करने से दुःख बढ़ता है, उनको याद न करें। बीती अच्छी घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरणा लेकर उत्साही बने।
अपने दुःखी भूतकाल को बार-बार याद न करें, अन्यथा यह कार्य आपके वर्तमान काल के सुख को भी बिगाड़ देगा। हमेशा खुश रहें।
       हम सोचते हैं- "दूसरों का जीवन हमसे अच्छा है"। हम भी तो किसी और के लिए "दूसरे" हैं या नहीं? फिर हम खुद से संतुष्ट क्यों नहीं?
       सभी लोग खराब नहीं हैं, बल्कि भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। 'यदि यह सत्य हम समझ ले, तो बहुत से रिश्ते टूटने से बच सकते हैं।'
        अपने जीवन को कष्टमय और तनावयुक्त बनाने का सबसे बड़ा कारण है, दूसरों से ऐसी आशाएं रखना कि- वे आपकी इच्छा अनुसार सब कार्य करेंगे।
       आपकी समस्याओं के बारे में दूसरों से शिकायत नहीं करें। आधे से अधिक समस्या आपने स्वयं उत्पन्न की है। आत्मनिरीक्षण से उन्हें दूर करें।
        जीवन में ऐसे काम करें, कि अफसोस  करना ही न पड़े।
यदि आप आपत्ति आने पर चिल्लाएंगे, तो वह दुगनी हो जाएगी। यदि हसेंगे, तो वह बुलबुले की तरह विलीन हो जाएगी। आपत्ति में घबराएं नहीं। क्रमशः
प्रभात मुनि, आर्य वानप्रस्थ आश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार।
"तनाव मुक्ति" पुस्तक के सौजन्य से।


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