जब तक लोग आपको सम्मान दे रहे हैं


 


जब तक लोग आपको सम्मान दे रहे हैं,  तब तक समझ लीजिए, उनको आप की आवश्यकता है।
      इस संसार में प्रत्येक आत्मा स्वार्थी है। कोई कम स्वार्थी है, तो कोई अधिक। कोई न्याय पूर्वक अपना स्वार्थ सिद्ध करता है, तो  कोई स्वार्थ सिद्धि करते-करते सीमा को पार कर जाता है, और अन्याय पूर्वक भी दूसरों का शोषण अत्याचार आदि करके अपने स्वार्थ की सिद्धि करता है। किसी का लौकिक स्वार्थ होता है, और किसी का आध्यात्मिक।  
       लौकिक स्वार्थ भी यदि न्यायपूर्वक पूरा किया जाए, तो ठीक है, चलेगा। यदि अन्याय पूर्वक आप दूसरों का शोषण करके उन पर अत्याचार करके उन्हें परेशान करके उन्हें दुख देकर यदि अपना स्वार्थ पूरा करते हैं, तो यह अत्यंत अनुचित है। यह पाप अथवा अपराध की कोटि में आता है। इसलिए आप अपना स्वार्थ भले ही सिद्ध करें, परंतु न्याय की सीमा में रहकर। दूसरों पर अन्याय कभी न करें। न्यायपूर्वक स्वार्थ पूरा करने से, ईश्वर आप से प्रसन्न रहेगा और आपको भविष्य में सुख भी देगा।
        जो लोग अन्याय करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं, उनसे ईश्वर अप्रसन्न होगा। क्योंकि अन्याय करना ईश्वर के संविधान के विरुद्ध है। तब ईश्वर, उनके अपराध की मात्रा के अनुसार उन्हें कम या अधिक दंड भी अवश्य देगा।
      परंतु कुछ लोग, दूसरे लोगों से लौकिक स्वार्थ बहुत कम रखते हैं। उन्हें जीवन रक्षा के लिए दो रोटी, दो कपड़े, ठहरने के लिए थोड़ी जगह, आदि आवश्यक वस्तुएं मिल जाएँ,  बस इतना ही चाहते हैं। ऐसे लोग ईश्वर से अपना आध्यात्मिक स्वार्थ अधिक रखते हैं। वह आध्यात्मिक स्वार्थ है, मोक्ष प्राप्ति का।  उनका यह स्वार्थ केवल ईश्वर ही पूरा कर सकता है। इसलिए मोक्ष प्राप्त करने के लिए, ऐसे आध्यात्मिक लोग, ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए, संसार वालों को प्रायः दुख नहीं देते, बल्कि सुख ही अधिक देते हैं। यही लोग संसार में महात्मा, देवता, महापुरुष या परोपकारी नाम से प्रसिद्ध हो जाते हैं।
        बिना स्वार्थ के तो कोई जीवात्मा है नहीं। क्योंकि स्वार्थ तो जीवात्मा का स्वभाव ही है। अब लोक व्यवहार में अनेक बार ऐसा देखा जाता है, कि कुछ लोग, किसी व्यक्ति से बहुत लंबे समय तक अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे। फिर एक दिन उन लोगों ने, जिससे स्वार्थ सिद्ध करते रहे थे, उसका मजाक बनाना शुरु कर दिया, अर्थात्  उस की खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी। उसकी उपेक्षा आरंभ कर दी। शायद ऐसा आपने भी अनेक बार देखा होगा। ऐसे लोग अतिस्वार्थी कहलाते हैं और ईश्वर की न्याय व्यवस्था से भयंकर दंड भोगते हैं। 
        तो ऐसी घटनाओं से क्या समझना चाहिए? यह समझना चाहिए, कि खिल्ली उड़ाने वाले लोग, आपसे जितना स्वार्थ सिद्ध कर सकते थे, उन्होंने पूरा सिद्ध कर लिया।
अब उनको आगे आपसे कोई स्वार्थ पूरा होने की आशा नहीं है। इसलिए उन्होंने सीमा का अतिक्रमण करके आपका मजाक उड़ाना शुरु कर दिया। या उपेक्षा करनी आरंभ कर दी।* 
        ऐसी स्थिति में आप को भी समझ लेना चाहिए, कि अब इन लोगों को, मुझसे कोई और स्वार्थ पूरा होता नहीं दिख रहा। ये लोग अतिस्वार्थी एवं दुष्ट हैं। अब इन्हें मेरी कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है, कि मैं चुपचाप यहां से खिसक लूँ। और आपको वहाँ से खिसक ही लेना चाहिए।
       अन्यथा बार-बार उनके सामने आपको अपमानित और दुखी होना पड़ेगा। जिससे आप की डिप्रेशन तनाव चिंता आदि अनेक नई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
        तो ऐसी घटनाओं के होने पर, घबराएँ नहीं। उन अतिस्वार्थी और दुष्ट लोगों से अलग हो जाएँ।  ऐसी समस्याओं का यही उचित समाधान है।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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