आयुर्वेद आदि शास्त्रों के भी ज्ञाता हैं परन्तु बहुत दुर्बल क्षीणकाय एवं अस्वस्थ रहते हैं


उपयुक्त उत्तर :-- 

प्रसङ्ग 1 
एक बार पूज्य पण्डित आचार्य श्री विजयपाल जी विद्यावारिधि से एक सज्जन मिलने आए और आचार्य जी से कहने लगे कि "आप तो ब्रह्मचारी हैं, स्वाध्यायशील हैं, आयुर्वेद आदि शास्त्रों के भी ज्ञाता हैं परन्तु बहुत दुर्बल क्षीणकाय एवं अस्वस्थ रहते हैं, आपको तो स्वामी दयानन्द के समान तेजस्वी और बलशाली तथा स्वस्थ होना चाहिए ....आदि" |
.
सज्जन की बातें आचार्य जी ने बहुत ध्यानपूर्वक सुनीं और बाद में उनसे धीरे से पूछा कि आप ब्रह्मचारी हैं या गृहस्थ ? 
सज्जन ने उत्तर दिया :- मैं तो गृहस्थ हूँ | 
इस पर आचार्य जी ने कहा कि "एक आप गृहस्थ हैं तथा दूसरी ओर भगवान् श्रीराम एवं श्री कृष्ण भी गृहस्थी थे | आप उनके समान यशस्वी एवं बलवान् क्यों नहीं बन सके ? ब्रह्मचारी से तो आप यह आशा करें कि वह स्वामी दयानन्द के समान तेजस्वी एवं साधक बने परन्तु गृहस्थ अपने को राम और कृष्ण के समान क्यों नहीं यशस्वी बना सकता है ? 
(उन सज्जन के सामने यह प्रतिप्रश्न करके आचार्य जी ने उनको बिलकुल ही नि:शब्द कर दिया)

प्रसङ्ग 2 
प्रसङ्ग 1 को पढ़ कर मुझे मेरे साथ का प्रसङ्ग याद आ गया | 
एक बार कहिए या कई बार .....मुझे लोग मिलते हैं और कहते हैं "आप कार खरीद लीजिये......आदि आदि" | 
बिना मांगी सलाह के सामने मैं या तो मौन मन्द मन्द हँसता रहता हूँ  
या 
कभी कभी कह देता हूँ ...."आप हेलिकॉप्टर ले लीजिये"
इसके सामने वह व्यक्ति कहता है "हेलिकॉप्टर 😳😳😇😇🤔🤔..... लेकिन हेलिकॉप्टर मेरी आवश्यकता नहीं है"
तब मैं भी कहता हूँ "कार मेरी आवश्यकता नहीं है" | 
.
प्रसङ्ग 1 व 2 से फिल्म का गाना याद आया "लोगों का काम है कहना"
पाणिनी कन्या महाविद्यालय - वाराणसी की संस्थापिका पूज्या आचार्या डॉ प्रज्ञा देवी जी ने अपने गुरुकुल में स्पष्ट लिखा था "हमें परामर्श नहीं चाहिये ....हमें सहयोग करें" | 
कृपया किसी को अनावश्यक सलाह, सूचन, परामर्श  देने से बचें | 
धन्यवाद
नमस्तेजी
सादर
विदुषामनुचर
विश्वप्रिय वेदानुरागी
(साभार :- प्रथम प्रसङ्ग - वेदवाणी पत्रिका, अङ्क 7, मई 2019, पृष्ठ 25, मेरे विद्यागुरु विद्यावारिधि आचार्य विजयपाल जी - लेखक राष्ट्रिय पण्डित डॉ. प्रशस्यमित्र शास्त्री, रायबरेली)


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