आत्मविश्वास


 


 


आत्मविश्वास
         
      इस सकल सृष्टि में करोड़ों  योनियों का विवरण मिलता है । जिसमें सर्वश्रेष्ठ मानव योनि कही गई है । परमपिता परमात्मा ने  मनुष्य शरीर देकर हमारे ऊपर जो उपकार किया है इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। मानव जीवन पाकर के यदि मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास न हो तो यह जीवन व्यर्थ ही समझना चाहिए।  क्योंकि मानव जीवन तभी सार्थक माना जा सकता है जब जीवन के प्रत्येक क्षण को आत्मविश्वास के साथ निश्चिंतता, निर्द्वंदता एवं निर्भीकता के साथ व्यतीत किया जाय। जहां पर मनुष्य डरते हुए आशंकाओं से ग्रस्त रहते हुए जीवन व्यतीत करता है उसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। 


     ऐसे दुर्लभ मानव जीवन को पा करके यदि मात्र चिंता करते हुए या आशंकित रहते हुए यह जीवन व्यतीत किया जाए तो यह दुर्लभ मानव जीवन नहीं बल्कि एक शाप ही कहा जा सकता है।  यह मानव जीवन सौभाग्य में तभी परिवर्तित हो सकता है जब मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास हो।  आत्मविश्वास उसी को हो सकता है जिसको ईश्वर के ऊपर पूरा विश्वास है। जिस प्रकार कोई अधिकारी अपनी सुरक्षा में लगे हुई जवानों के सुरक्षाचक्र में स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है,  उसी प्रकार उस परमसत्ता के सुरक्षाचक्र में स्वयं को सुरक्षित महसूस करने वाला मनुष्य ही आत्मविश्वासी हो सकता है।


      आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य ना तो ईश्वर के ऊपर विश्वास कर पा रहा है और ना ही उसे स्वयं के ऊपर ही विश्वास रह गया है। यह अकाट्य सत्य है कि  स्वयं के ऊपर विश्वास तभी हो सकता है जब मनुष्य यह मान ले उसके सुरक्षा का भार ईश्वरीय सत्ता स्वयं संभाल रही है। आज किसी भी क्षेत्र में, किसी भी कार्य में यदि मनुष्य असफल हो जाता है तो वह दोषारोपण करने लगता है,  कभी समाज पर , तो कभी ईश्वर पर। जबकि उसके असफल होने का एक ही कारण होता है उसके स्वयं की आत्मविश्वास की कमी होना।


    जिस मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास की पूर्णता है वह कभी भी किसी भी कार्य में असफल नहीं हो सकता। यदि वह एकाध बार असफल भी हो जाता है तो पुन: उस कार्य को पूरा करने के लिए प्रयासरत हो जाता है, क्योंकि उसे ईश्वर के ऊपर पूर्ण विश्वास होता है। ऐसा करके वह अपने परिश्रम एवं ईश्वर की कृपा से अपने कार्य में सफल हो जाता है और उसका आत्मविश्वास उसे बिजयी बनाता है। प्राय: मनुष्य अपनी क्षमता को पहचान नहीं पाता क्योंकि अपनी क्षमता को पहचान करके अपने ऊपर पूर्ण विश्वास करने की क्षमता उसमें ही हो सकती है जो उस अदृश्य शक्ति परमात्मा के ऊपर विश्वास करना जानता हो।  क्योंकि यह सत्य है जिसका स्वयं अपने ऊपर विश्वास नहीं है वह दूसरों का भी विश्वास पात्र नहीं बन पाता। परमात्मा भी उसी की सहायता करता है जो स्वयं अपनी सहायता करना जानता है। मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति उसका आत्मविश्वास है बिना आत्मविश्वास के किसी भी कार्य में सफल होना दिवास्वप्न के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।


        प्रत्येक मनुष्य में आत्मविश्वास का होना बहुत आवश्यक है,  क्योंकि बिना आत्मविश्वास के कोई भी मनुष्य सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है और न ही वह अपना भविष्य स्वर्णिम कर सकता है।


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