आर्य समाज एवम् हिंदू समाज            

आर्य समाज एवम् हिंदू समाज            


       आओ! आर्य समाज को जानने समझने का प्रयास करें।


      


आर्य समाज क्या है ? 


आर्यसमाज के बारे में फैली भ्रान्तिया और उसका निवारणआप के सामने प्रस्तुत है।


 


आर्य समाज एक क्रन्तिकारी आन्दोलन है


आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य संसार का उपकार करना - अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना - करवाना। वेद का पढ़ना - पढ़ाना, सुनना - सुनाना। 


सामाजिक उन्नति में बाधक , समाज में फैले विभिन्न-प्रकार के पाखंड, मत-मतान्तर,जाति-पाती, अनेक-प्रकार के सम्प्रदायो ,मूर्ति-पूजा,आदि अन्धविश्वास को दूर करने हेतु सतत प्रयास करना। 


यह एक विश्वव्यापी आन्दोलन है, जो वैदिक धर्म की पुन:स्थापना करके पूरे विश्व को एक कुटुंब बनाना चाहता है, इसके प्रवर्तक - संस्थापक  महर्षि  दयानन्द सरस्वती है ! जिन्होंने *सन् 1875 में प्रथम आर्य समाज मुंबई में स्थापित किया था।


 


आर्यसमाज के बारे में भ्रान्तिया:


 


1 .आर्यसमाजी ईश्वर को नहीं मानते?


उत्तर:- यह सत्य नहीं है। प्रत्येक आर्य को प्रतिदिन प्रातः एवं सायंकाल  ईश्वर की स्तुति- प्रार्थना - उपासना करनी होती है।


आर्य समाजी आस्तिक ईश्वरवादी होतें है।


आर्य सिर्फ एक निराकार - सर्वव्यापक ईश्वर की उपासना करतें हैं।(अन्य तो किसी गुरु, पाषाण, वृक्ष, प्रतिमा या मज़ार की पूजा करते है ईश्वर


की नहीं।)


 


2 .आर्यसमाज एक अलग पंथ या सम्प्रदाय है?


उत्तर:- यह बात भी सत्य नहीं है भाई !


आर्यसमाज हिन्दू धर्म का शुद्धतम रूप है। अंधविश्वासों के विरुद्ध चलने वाला आंदोलन है कोई अलग मत, पंथ या सम्प्रदाय नहीं।


 


3 .आर्यसमाजियों का धार्मिक ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश " है?


उत्तर:- गलत।


आर्य समाजियों का धार्मिक ग्रन्थ सिर्फ वेद हैं। वेद सर्वोच्च हैं। महर्षि दयानंदजी द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश मूलतः वेदों की ओऱ लौटने में सहायक एक ग्रन्थ है इस से हम मार्गदर्शन प्राप्त करतें है किन्तु ये धार्मिक ग्रन्थ की श्रेणी में नहीं है।


 


4 आर्यसमाज राम और कृष्ण को नहीं मानता?


उत्तर:- किसने कहा ? आर्य समाजी और


आर्यसमाज प्रभु राम और योगेस्वर कृृष्ण को महापुरुष की श्रेणी में रखता है। अपना आदर्श मानता है। अपना पूर्वज मानता है। उनके बताये रास्ते पर चलने


का आग्रह करता है। उनके चित्रों को दीवारों पर स्मरण एवम् प्रेरणा हेतु लगता है, किन्तु इनकी मूर्ति बना कर पूजने को इन महापुरुषों का अपमान मानता है। उनके चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करता है। क्योंकि यह सभी भी परमपिता परमात्मा की ही उपासना करते थे!


 


5. आर्यसमाज ऋषि दयानंद के अतिरिक्त किसी अन्य महर्षि को महत्त्व नहीं देता?


उत्तर:- यह बात सत्य कैसे हो सकती है क्योंकि महर्षि दयानंद जी ने स्वंय कहा की यदि मै ऋषि कणाद या ऋषि जैमिनी के काल में होता तो उनके समक्ष मैं अपने आप को कुछ भी नहीं मानता हूँ। 


अर्थात् ऋषि के ह्रदय में अपने सभी वैदिक ऋषियों के प्रति असीम सम्मान था। आर्यसमाज भी समस्त वैदिक ऋषियों के प्रति सम्मान रखता है। इसमें आदिगुरु शंकराचार्य जी भी है जिन्होंने वैदिक धर्म की पुनःस्थापना की और समाज को अवैदिक [अर्थात् पाखण्ड से] मार्ग पर जाने से बचाया।


 


6 .आर्यसमाज अन्य विचारधारों का सम्मान नहीं करता?


उत्तर:- गलत।


आर्यसमाज अन्य विचारधाराओं का सम्मान करता है एवं उनकी उपयोगिता से परिचत है। आर्यसमाज समझता है


की मनुष्य का एक ही धर्म है जो वैदिक


आलोक में हो किन्तु समाज में एक सी बुद्धि न होने के कारन विचारधारा भिन्न हो सकती है। आर्यसमाज वेदों का विरोध करने वाले बुद्ध को भी "महात्मा" बुद्ध कहता है। अनीश्वरवादी जैन धर्म के प्रवर्तक को भी "भगवान" महावीर कहता है। किन्तु किया असत्य को असत्य न कहा जाये ??? समाज को न बताया जाए की सही मार्ग (वैदिक मार्ग ही उचित है) क्या है ???


सत्य कटु होने के कारण लोगों को चुभता है। सत्य कहने के लिए साहस चाहिये जिसमे आर्यसमाज हमेशा आगे है।


 


7 . आर्यसमाज ऋषि दयानंद को गुरु मानता है।


उत्तर:- गलत।


हमारे गुरु मात्र वेद है। हम अपना दिशा निर्देशन वेदों से प्राप्त करतें है। जो जो वैदिक हो उसे ग्रहण करते है और अवैदिक का त्याग करते हैं। ऋषि दयानंद जी के प्रति अपने हर्दय में सम्मान रखतें हैं किन्तु कभी भी कहीं भी ऋषि की पूजा नहीं करते हम उनके द्वारा दिखाए गए सत्य मार्गो का अनुसरण करते है!


हमारा संकल्प है विश्व को आर्य अर्थात् श्रेष्ठ गुण - कर्म - स्वभाव वाले बनाना।


 


        आर्य समाज के प्रति अटल जी और पंडित मदन मोहन मालवीय  जी के विचार 


 


     जीवन काल में


जब आर्य समाज दौड़ेगा, 


तब हिंदू समाज चलेगा!


जब आर्य समाज चलेगा, 


तब हिंदू समाज बैठ जाएगा।


जब आर्य समाज बैठ जाएगा,


 तब हिंदू समाज लेट जाएगा।


जब आर्य समाज लेट जाएगा,


 तब हिंदू समाज सो जाएगा।


जब आर्य समाज सो जाएगा, 


तब हिंदू समाज समाप्त हो जाएगा।।


       अंतिम समय


अंतिम समय जब पंडित मदन मोहन मालवीय जी की तबीयत अधिक खराब होने पर बहुत से हिंदू भाई उनके पास पहुंचे और कहने लगे आप के बाद अब हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा तो मालवीय जी ने तकिया के नीचे से एक पुस्तक निकाली और कहा सब हिंदुओं के घर में इसे पहुंचा दो-"यह है मेरे बाद का मार्गदर्शक सत्यार्थ प्रकाश"


            शिलालेख


काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंदर स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर की दीवार पर एक शिलालेख लगा है जिसमें देश को आर्यावर्त और देश के लोगों को आर्य लिखा गया है तथा आर्य धर्म के अंतर्गत हिंदू , सिख, जैन आदि को बताया गया है लेकिन आज हिंदू के अंतर्गत आर्य को बताया जा रहा है


 


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